उत्तराखण्ड में भगवान सूर्य के मंदिरों की बात चलती है तो सबसे पहले अल्मोड़ा-रानीखेत मार्ग पर स्थित कटारमल के सूर्य मंदिर का ध्यान आता है. यहाँ स्थापित सूर्य देवता को बड़ादित्य के नाम से पुकारा जाता है. अपने स्थापत्य शिल्प में कोणार्क से सूर्य मंदिर से खासा साम्य रखने वाले इस मंदिर को उसके वृहद आकार के कारण बड़ादित्य का नाम दिया गया है. उड़ीसा के सूर्य मंदिर की तर्ज़ पर इस मंदिर का निर्माण इस तरह किया गया है की सूर्य की प्रथम किरण ही इसके गर्भगृह में प्रवेश करती है. इसमें भगवान सूर्य की एक मूर्ति है जिसमें वे आसनमुद्रा में विराजमान हैं. ऐसी मूर्तियाँ बहुत दुर्लभ मानी जाती हैं.
इस मंदिर की दक्षिणी दिशा में पानी का एक नौला है जिसे सूर्यकुंड कहा जाता है. जैसा कि शास्त्रोक्त है उसमें एक समय शेषशैय्या पर विराजमान नारायण की एक प्रतिमा थी जिसे वर्तमान में गर्भगृह में सम्हाल दिया गया है. पुराने समय में इसी नौले के जल से आदित्यदेव का दैनिक अभिषेक किया जाता था.
नवीं शताब्दी में निर्मित इस मंदिर परिसर में विभिन्न आकारों व रूपों के 54 मंदिर परिवार हैं जिनके मध्य बड़ादित्य का देवालय अवस्थित है.
उत्तराखंड के सबसे पुरातन सूर्य मंदिरों में पलेठी का भानु-मंदिर का नाम सबसे ऊपर है. इसे सातवीं शताब्दी में बनाया गया था. यह मन्दिर गढ़वाल मंडल के टिहरी जनपद के हिंडोलाखाल से तीन किलोमीटर नीचे भागीरथी नदी के तट पर स्थापित है. यह मंदिर कटारमल के मंदिर की तरह बड़ा तो नहीं है अलबत्ता मंदिरों से जुड़ी सभी विशेषताएं इस मंदिर के स्थापत्य में देखी जा सकती हैं.
अपनी अनूठी और मूल्यवान आदित्य-मूर्ति के लिए गुणादित्य का मंदिर भी बहुत विख्यात है. यह मंदिर अल्मोड़ा से करीब 60 किलोमीटर दूर पिथौरागढ़ मार्ग पर काफलीखान से निकलने वाले एक दूसरे रास्ते पर धौलादेवी विकास खंड के पालो गाँव में मौजूद है. वास्तुशिल्प की दृष्टि से विशेष उल्लेखनीय न होने के बावजूद यह मंदिर गुणादित्य की दुर्लभ अष्टधातु प्रतिमा के लिए जाना जाता है. यह मूर्ति 1982 में चोरी हो गयी थी लेकिन उसे बाद में खोज लिया गया और फिलहाल अल्मोड़ा के संग्रहालय में सुरक्षित रख लिया गया है.
उत्तरकाशी जिले की टकनौर पट्टी में क्यार्क और रैथल गाँवों के बीच एक पुराना आदित्य-मंदिर था जिसके अब अवशेष ही बचे हुए बताये जाते हैं.
उत्तरकाशी जिले के ही नौगाँव के उत्तर-पश्चिम में मंज्याली गाँव में मुसादेवी का एक मंदिर है जो मूलतः सूर्य को समर्पित था.
चम्पावत जिले के चमदेवल नामक स्थान के समीप मड़ गाँव में भी भगवान सूर्य का एक मंदिर है. इसके अलावा अल्मोड़ा जिले की बारामंडल तहसील के कनरा गाँव में, जैंती के निकट पुभाऊँ गाँव में, जागेश्वर मंदिर समूह में, चम्पावत के भिंगराड़ा से आगे रमक गाँव में, डीडीहाट के नजदीक चौपाता गाँव में, चम्पावत के खेतीखान में और पिथौरागढ़ जिले के चौपखिया चौमू में भी सूर्य मंदिरों के होने के प्रमाण पाए जाते हैं.
(प्रो. डी. डी. शर्मा की पुस्तक ‘उत्तराखंड का पौराणिक देवकुल’ के आधार पर)
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