नीचे की फोटो को ध्यान से देखिये.
एक निगाह में आप ताड़ जाएंगे कि यह उत्तराखंड के किसी बड़े नगर का रोडवेज स्टेशन है. ऑनलाइन बुकिंग का बोर्ड बताता है कि टेक्नोलॉजी के मामले में हमने बहुत तरक्की कर ली है. टिकट खिड़कियों के नीचे मार्बल दाने के फर्श पर पांच प्राणी स्थापित हैं जिनमें दो मनुष्य और तीन कुत्ते हैं.
कूड़ेदान की बगल में इसी जगह से अभी-अभी बाहर निकल रही गुलाबी पतलून वाली एक लड़की अपने मोबाइल पर मुब्तिला देखी जा सकती है. आप अफ़सोस कर सकते हैं कि उसकी बस पीठ दिखाई दे रही है. दुर्लभ और आउट ऑफ़ फैशन हो गया पीला एसटीडी बूथ है. स्कूटी से उतरता एक जोड़ा है और उसके पीछे बैकग्राउंड में प्लास्टिक की जुगाड़ छत से छाये गए ठेले पर लाल कपड़े से ढंका जलजीरे का घड़ा, एक बस और अपनी देहभाषा से यात्री लग रहे तीन-चार लोग दिखाई दे रहे हैं.
अब आपको वापस मार्बल दाने के फर्श पर आना होगा. टिकट खिड़की के ठीक नीचे बैठा आदमी फुरसत में दिखाई देता है. उसने अपने जूते उतार लिए हैं. उसका थैला और पानी की बोतल इस कदर दरिद्र हैं कि उन्हें चोरों से सम्हाल कर रखे जाने की जरूरत नहीं है. वह शायद अपने बचे-खुचे पैसे गिन रहा है या किसी कागज को पढ़ रहा है. हो सकता है उसकी बस के आने में देर हो. यह भी हो सकता है कि उसने कहीं न जाना हो और रात हो जाने से पहले वह अपना बिस्तर रेडी कर रहा हो.
फोटो के केंद्र में हवाई चप्पल पहने एक बूढ़ा सोया हुआ है. अपने किसी कपड़े या थैले का उसने सिरहाना बनाया हुआ है. इस आदमी को तीन कुत्तों की संगत में सोते देख पहली प्रतिक्रिया की जा सकती है कि वह दारू पी कर टुन्न है.
अब आपको अपना ध्यान इसी बूढ़े पर लगाना है. आप देखेंगे उसकी पेंट की कमर से बाहर निकल रही रबर की नली के सिरे पर पेशाब की थैली टंगी हुई है.
हल्द्वानी में यह बीमारियों का सीजन चल रहा है. हजारों लोगों के डेंगू से ग्रस्त होने और दर्जनों के मर जाने की ख़बरें अखबार लगातार बताते रहे हैं.
अखबार यह भी बता रहे हैं कि देश में नए खरीदे गए लड़ाकू विमान की खेप आ चुकी है. देश की रचनात्मकता उस पर नीबू मिर्च की माला टांगे जाने को लेकर मीम बनाने में व्यस्त है. इक्कीसवीं सदी अपनी दो दहाइयां पूरी कर चुकी है.
मेरा फर्ज बनता है कि आपको बता दिया जाय कि यह फोटो गेटवे ऑफ़ कुमाऊं के नाम से जाने जाने वाले मेरे नगर हल्द्वानी के रोडवेज स्टेशन का है. सैकड़ों बसों का आना-जाना लगा रहता है. इसके बावजूद यहाँ आम जनता के लिए इतनी सुविधा बची हुई है कि इसके मार्बल वाले अहाते में सोया जा सकता है चाहे आपको पेशाब की थैली लगी हो, चाहे आप दो या तीन घंटों में मर जाने वाले हों.
–अशोक पाण्डे
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…
इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …
तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…
उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…