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सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद उत्तराखण्ड में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट नीति का मसौदा तैयार

सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद राज्य सरकार ने उत्तराखंड में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट नीति का मसौदा तैयार सुप्रीम कोर्ट को भेज दिया है. नीति के मसौदे में अवशिष्ट पदार्थों की शुरूआत में ही पहचान कर लेने पर जोर दिया गया है. यानी वह जैविक या अजैविक किस प्रकृति का है. इसके अलावा, डोर टू डोर कलेक्शन में इसी अनुरूप उसे उठाने की व्यवस्था होगी. प्लास्टिक के इस्तेमाल पर रोक है. इसलिए ये सुनिश्चित कराया जाएगा कि प्लास्टिक का उपयोग न हो. अपरिहार्य स्थिति में यदि इस्तेमाल होता भी है, तो उसका कचरा न्यूनतम स्तर पर हो. इसी तरह, तमाम तरह के कचरे का प्रबंधन वैज्ञानिक आधार पर किया जाए उत्तराखंड में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट नियमवाली तो अस्तित्व में थी, लेकिन एक्शन प्लान के तहत थी. सभी आवश्यक बिंदुवों को अब नीति में शामिल कर लिया गया है.

गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने ठोस कचरा प्रबंधन नीति तैयार नहीं करने पर उत्तराखंड सरकार को आड़े हाथ लिया था. सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड, महाराष्ट्र, चंडीगढ़ सहित कुछ राज्यों द्वारा कचरा प्रबंधन को लेकर नीति नहीं बनाने पर नाराजगी जताते हुए निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी थी,जब तक वे पॉलिसी नहीं बना लेते. उत्तराखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद आनन-फानन में मसौदा तैयार किया है.

पीठ ने कहा, ‘‘यदि इन राज्यों के मन में जनता के हित और स्वच्छता तथा सफाई के विचार होता तो उन्हें ठोस कचरा प्रबंधन नियमों के अनुरूप नीति तैयार करनी चाहिए ताकि राज्य में स्वच्छता रहे. राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों का दो साल बाद भी नीति तैयार करने के मामले में रवैया दयनीय है”.

वहीं पिछले दस साल के उतार-चढ़ाव के बाद आखिर सूबे का पहला सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट एंड रिसाइक्लिंग प्लांट, शीशमबाड़ा सेलाकुई प्लांट अस्तित्व में आ गया है. मुख्यमंत्री व शहरी विकास मंत्री ने दावा किया कि एक साल के भीतर प्रदेश के सभी 92 निकायों  में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्रक्रिया शुरू कर की जाएगी. देहरादून में जेएनएनयूआरएम के अंतर्गत वर्ष 2008 में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट बनाने की कवायद शुरू हुई थी. उस दौरान इसका बजट 24 करोड़ रुपये था, मगर यह प्रक्रिया तमाम कानूनी दांवपेंचों में फंस गई और साल-दर-साल प्लांट का निर्माण पीछे होता चला गया.

देशभर में प्रति वर्ष 62 मिलियन टन कचरा उत्पन्न होता है, जिसमें से 5.6 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा, 0.17 मिलियन टन जैव चिकित्सा अपशिष्ट, 7.90 मिलियन टन खतरनाक अपशिष्ट और 15 लाख टन ई-कचरा है. भारतीय शहरों में प्रति व्यक्ति 200 ग्राम से लेकर 600 ग्राम तक कचरा प्रतिदिन उत्पन्न होता है. प्रतिवर्ष 43 मिलियन टन कचरा एकत्र किया जाता है, जिसमें से 11.9 मिलियन टन संसाधित किया जाता है और 31 मिलियन टन कचरे को लैंडफिल साइट में डाल दिया जाता है. नगर निगम अपशिष्ट का केवल 75-80 प्रतिशत ही एकत्र किया जाता है और इस कचरे का केवल 22-28 प्रतिशत संसाधित किया जाता है.उत्पन्न होने वाले कचरे की मात्रा मौजूदा 62 लाख टन से बढ़कर वर्ष 2030 में लगभग 165 मिलियन टन तक पहुँचने की संभावना है.

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