Featured

रुहेलों की फ़ौज की हार हुई थी काठगोदाम में

अंग्रेजों ने 1815 में कुमाऊं का अधिग्रहण किया था. उससे पहले काठगोदाम एक छोटा सा गांव था जिसे बाड़ाखोड़ी या बाड़ाखेड़ी के नाम से जाना जाता था. राजा कल्याणचन्द के समय में उनके सेनापति शिवदत्त जोशी ने सन 1743-44 में रुहेलों की फ़ौज को इसी जगह परास्त किया था और उसके बाद वे कभी भी इस तरफ आने की हिम्मत नहीं कर सके.

अंग्रेजों के शासनकाल में पहाड़ से इमारती लकड़ी के परिवहन की कोई सुविधा न थी. जंगलों के ठेकेदार गौला नदी के बहाव के माध्यम से लकड़ी के लठ्ठों और शहतीरों को बहाकर यहाँ तक लाया करते थे और नदी से निकाल कर यहीं उनका भंडारण किया करते थे. व्यवसायी लोग यहीं उन्हें खरीदते थे और दूसरी जगहों तक पहुंचाया करते थे. इसी कारण इस जगह का नाम काठगोदाम यानी लकड़ी का भण्डार रख दिया गया.

उन्नीसवीं सदी के पहले पचास सालों तक इसकी गिनती यहाँ के कस्बों में भी न होती थी. 1824 में जब बिशप हैबर रुद्रपुर से भीमताल होता हुआ अल्मोड़ा गया था तो उसने अपने यात्रावृत्त में भी इस स्थान का ज़िक्र नहीं किया है.

1883-84 में पहली बार लखनऊ से काठगोदाम रेलगाड़ी पहुँची. इसके कुछ समय बाद उत्तर प्रदेश की छोटी लाइन की गुवाहाटी तिरहुत मेल को काठगोदाम तक बढ़ा दिया गया. शुरुआत में यहाँ मालगाड़ियां ही अधिक चला करती थीं. बाद में यात्रियों की संख्या बढ़ना शुरू हुई.

डेढ़ सौ सालों के बाद 4 मई 1994 को काठगोदाम की छोटी लाइन को ब्रॉड गेज यानी बड़ी लाइन में तब्दील किया गया.

वाट्सएप में काफल ट्री की पोस्ट पाने के लिये यहाँ क्लिक करें. वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

View Comments

  • काठगोदाम का एक नाम "बमौरी घाटा" भी कहा गया है l बद्री दत्त पांडे ज़ी ने अपनी कालजयी पुस्तक "कुमाऊँ का इतिहास" में ऐसा ही कुछ लिखा है l

Recent Posts

स्वयं प्रकाश की कहानी: बलि

घनी हरियाली थी, जहां उसके बचपन का गाँव था. साल, शीशम, आम, कटहल और महुए…

14 hours ago

सुदर्शन शाह बाड़ाहाट यानि उतरकाशी को बनाना चाहते थे राजधानी

-रामचन्द्र नौटियाल अंग्रेजों के रंवाईं परगने को अपने अधीन रखने की साजिश के चलते राजा…

14 hours ago

उत्तराखण्ड : धधकते जंगल, सुलगते सवाल

-अशोक पाण्डे पहाड़ों में आग धधकी हुई है. अकेले कुमाऊँ में पांच सौ से अधिक…

1 day ago

अब्बू खाँ की बकरी : डॉ. जाकिर हुसैन

हिमालय पहाड़ पर अल्मोड़ा नाम की एक बस्ती है. उसमें एक बड़े मियाँ रहते थे.…

1 day ago

नीचे के कपड़े : अमृता प्रीतम

जिसके मन की पीड़ा को लेकर मैंने कहानी लिखी थी ‘नीचे के कपड़े’ उसका नाम…

2 days ago

रबिंद्रनाथ टैगोर की कहानी: तोता

एक था तोता. वह बड़ा मूर्ख था. गाता तो था, पर शास्त्र नहीं पढ़ता था.…

2 days ago