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अब दिखावे का ही रह गया है भारत-तिब्बत व्यापार

नाभीढांग की सुबह खुशनुमा था. चाय पीकर हमने वापसी की राह पकड़ी. कालापानी पहुंचने पर पता चला कि आगे कहीं गर्म पानी का स्रोत है. पुल पार कुछ दूर गए ही थे कि एक जगह पर नजर पड़ी, ‘सल्फर के गर्म पानी का स्रोत.’ नीचे काली नदी को एक पतले से रास्ते से उतरते चले गए. दो बाथरूम दिखे. बाहर एक नल से गर्म पानी का स्पर्श हुवा तो झटपट कपड़े उतार स्नान का आनंद लिया. धारचूला के बाद आज नहाने का मौका मिला था.  (Sin La Pass Trek 12)

आगे गुंजी तक का पैदल सफर कब तय किया पता ही नहीं चला. दोपहर एक बजे हम सब अर्चना बहन की कुटिया में थे. उसने हमारे लिए खाना बनाना शुरू किया तो गपशप भी शुरू हो गई. तिब्बत के व्यापार पर उसका मत था कि अब खाली दिखावे का व्यापार रह गया है. असली व्यापार तो सन बासठ की लड़ाई से पहले हुआ करता था. लोग एक-दूसरे पर भरोसा करते थे. अब तो बस सरकारी टाइप का व्यापार है. (Sin La Pass Trek 12)

अब लिपुलेख दर्रे पर भेड़-बकरियों के आने-जाने के लिए एक स्प्रे वाला एक कालीन बिछा रहता है. भेड़-बकरियां इधर-उधर गई नहीं कि पड़ी गालियां. वह तो अच्छा है कि उनकी गालियां समझ में नहीं आती हैं.. लेकिन उनके तमतमाए चेहरे से पता चल ही जाता है कि ये आर्शीवाद तो दे नहीं रहे होंगे.अब तो खाली कैलाश दर्शन के बहाने ही व्यापार हो रहा है. यहां से तकलाकोट सामान ले जाने तक काफी महंगा हो जाता है. अब इस जगह में सड़क तो हम लोगों के लिए सपना जैसी हुई. रास्तों के हाल तुम लोगों ने देख ही लिए होंगे न.

खाना बन चुका था और खाना परोसते हुए अर्चना के किस्से भी थम गए. दिन ढलने में अभी समय था तो आगे कुट्टी की ओर बढ़ने का निश्चय किया. अर्चना बहन से विदा लेकर हमने अपना रुकसेक उठाया और आगे नाबी गांव की ओर निकल पड़े. गुंजी गांव की गलियों से गुजरते हुए देखा कि यहां ज्यादातर मकान तीन मंजिले हैं. घरों के आगे ऊंचे खम्भों में रंगीन कपड़े बंधे हुए थे. अभी कुछ दिन पहले गांव में बौराणी पूजा हुई थी. दूर-दराज पलायन कर चुके परिवारों के सदस्य भी इस सालाना पूजा में शिरकत करने जरूर आते हैं. (Sin La Pass Trek 12)

घंटे भर में हम नाबी गांव की सीमा में थे. ऊपर की खड़ी चट्टानों को देखकर हमने गांव से आगे रुकने का मन बनाया. नाबी गांव में पंचायत घर के आंगन में बनी दुकान में कुछ देर रुक चाय पी. बुजुर्गों से ज्यादा बातें नहीं हो पाईं. रास्ते में टैंट लगाने का विचारकर कुछ जरूरी सामान ले लिया और दो-एक किलोमीटर चलने के बाद टेंट लगाने की सही जगह की तलाश में पंकज आगे चला गया. कुछ देर बाद उसने आवाज दी कि यह जगह टैंट लगाने के लिए सही है तो हम भी आगे चल पड़े. जगह शानदार थी. दोनों टैंट तान दिए गए. स्टोव, बर्तन निकालकर मैगी बनाने की तैयारी करनी शुरू की, लेकिन स्टोव ने काम करने से मना कर दिया.

बाहर चूल्हा बनाकर सूखी टहनियां जलाईं और जब मैगी खदबदाने लगी तो फटाफट उसे उदरस्थ कर लिया. सामने शांत बहती कुट्टी नदी और चांद की मंद रोशनी में अन्नपूर्णा समेत कई चोटियां जैसे हमें पुकारती सी महसूस हो रही थी. टैंट में आज पहला दिन था और हम काफी देर तक बाहर बैठकर आग सेंकते हुए ठंड का मजा लेते रहे. (Sin La Pass Trek 12)

जारी…

– बागेश्वर से केशव भट्ट

पिछली क़िस्त: घंटों निहार सकते हैं ॐ पर्वत के प्राकृतिक श्रृंगार को

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बागेश्वर में रहने वाले केशव भट्ट पहाड़ सामयिक समस्याओं को लेकर अपने सचेत लेखन के लिए अपने लिए एक ख़ास जगह बना चुके हैं. ट्रेकिंग और यात्राओं के शौक़ीन केशव की अनेक रचनाएं स्थानीय व राष्ट्रीय समाचारपत्रों-पत्रिकाओं में छपती रही हैं.

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