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दून घाटी में साल के वन और उनमें विराजमान चार सिद्ध

दून घाटी में प्रवेश करते ही साल के खूबसूरत जंगल आपका स्वागत करते हैं. इस घाटी में आप चारों तरफ कहीं भी चले जांये छ सात किलोमीटर के बाद आपको सदाबहार साल के जंगल आपका मन मोह लेंगे. साल का पेड़ इमारती लकड़ी के काम आता है. यहां दरवाजों खिड़कियों की चोखट साल की लकड़ी की ही बनती थी. यह एक मजबूत पेड़ है. इसके बारे में कहावत है कि ’’खड़ा सौ साल, पड़ा सौ साल और सड़ा सौ साल’’. इन्हीं साल के जंगलों के बीच स्थित हैं यहां के सिद्ध मंदिर.
(Sidh temples of Dehradun)

जी हां देहरदून की खासियत यह है कि इस नगर के चारों कोनों में साल के जंगलों के बीच चार सिद्ध विराजमान हैं. पूर्वोत्तर दिशा में कालू सिद्ध, दक्षिण पूर्व में लक्ष्मण सिद्ध, पश्चिमोत्तर दिशा में माड़ू सिद्ध और पश्चिम दक्षिण की ओर मानक सिद्ध हैं. यह चारों सिद्ध यहां के लोक में आज भी आस्था के केन्द्र बने हुये हैं. देहरादून के ग्रामीण किसान अपनी खेती से प्राप्त उपज का एक हिस्सा सामुहिक रूप से एकत्र कर हर साल यहां भण्डारा करते हैं. दुधारू पशुओं के ब्याहने के बाद अपने प्रयोग से पहले दूध को यहां भेंट करते हैं और खेती व जानवरों की सलामती की मंगत मांगते हैं. स्थानीय देवी देवताओं से आस्थावान लोग वैसे भी परलोक की जगह इसी लोक की बात करते नजर आते हैं.

सिद्ध हमें भारतीय उपमहाद्वीप में सिद्ध नाथ परंपरा की याद दिलाते रहते हैं. सातवीं शताब्दी में बौद्ध धर्म में आये विचलन से हीनयान-महायान के बाद बज्रयान शाखा का जन्म हुआ. यह भक्ति की वाम मार्गी शाखा है. इसमें भोग तंत्र-मंत्र योग साधना आदि की प्रमुखता थी. इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप सिद्ध व नाथ परंपरा का जन्म हुआ.
(Sidh temples of Dehradun)

राहुल सांकृत्यायन नाथ संप्रदाय को सिद्ध परंपरा का ही विकसित स्वरूप मानते है. हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार नाथ संप्रदाय के सिद्ध मत सिद्ध मार्ग योग मार्ग या योग संप्रदाय, अवधूत संप्रदाय आदि नामों से प्रचलित है. गोरखनाथ को नाथ परंपरा का प्रर्वतक माना जाता है जो मछेन्द्रनाथ के शिष्य थे और इन दोनों की गिनती सिद्धों में भी होती है.

गोरखनाथ ब्राह्मणवाद के खिलाफ और मानवता के पक्ष में ईश्वर के सारतत्व को मानने वाले थे. उनके सबद पर एक नजर डालते हैं

हिन्दू ध्याने देहुरा मुसलमान मसीत,
जोगी ध्याने परम पद जहां देहुरा न मसीत

काजी मुल्ला कुराण लगाया ब्रह्म लगाया वेद,
कापड़ी सन्यासी तीरथ भरमाया,
न पाया नृबाण पद का भेद.

इस तरह नाथ संप्रदाय को मानने वाले हिन्दू मुसलमान दलित आदि सभी लोग रहे. गढ़वाल से नाथ और सिद्धों का गहरा रिश्ता रहा है. राजाओं द्वार दून उपत्यका के कुछ गांवों का राजस्व धर्मस्व में दिया हुआ था जो गोरखा शासन काल में भी ज्यों का त्यों चलता रहा. इसमें डोभाल वाला गांव का राजस्व बद्रीनाथ मंदिर को, प्रेमपुर जाखन का राजस्व केदारनाथ मंदिर को ऋषिकेश, तपोवन का भरत मंदिर तथा जोगीवाला व गोरखपुर गांव का राजस्व गोरखनाथ मंदिर को जाया करता था.

सिद्ध जंगलों के बीच योग साधना किया करते थे, देहरादून के चारों सिद्ध भी जंगलों के बीच में ही हैं. हर रविवार को इन सि़द्धों में दर्शनार्थियों की भीड़ रहती है. परंपरागत रूप से इन चारों सिद्धों में गुड़ की भेली का प्रसाद चढ़ता है तथा धूने के भभूत की पुड़िया परसाद स्वरूप मिलती है.
(Sidh temples of Dehradun)

17 नवंबर 2020 को साथी त्रिलोचन भट्ट के साथ मैं व इंद्रेश नोटियाल मानक सिद्ध मंदिर गये थे. यह सहसपुर ब्लाक के शिमला बायपास रोड पर कारबारी ग्रांट में स्थित है. कारबारी ग्रांट कभी ठाकुर दास का जमीदारा था जिन्होंने यह जमीदारा डुमराव स्टेट के रामारण विजय सिंह को बेच दी थी. स्थानीय निवासी अमर बहादुर शाही बताते हैं कि राणाजण विजय सिंह के साथ सड़क को लेकर बड़ा जनआंदोलन चला था जिसमें ग्राम वासियों की जीत हुई. अमर बहादुर शाही आगे बताते हैं कि मानक सिद्ध मंदिर जहां आज स्थित है यहां इसकी स्थापना 1930 के लगभग की गई. इससे पहले मानक सिद्ध का स्थान इस मंदिर से लगभग दो ढाई किलोमीटर दूर जंगल के बीच में था. सहुलियत के हिसाब से और मंदिर के विस्तार के लिये जंगल से कुछ शिलाओं को यहां लाकर स्थापित किया गया.

ढाई किलोमीटर पैदल जंगलों के बीच चलकर हम प्राचीन मानक सिद्ध साधना स्थली पर पहुंचे. यह काफी रमणीक स्थान है. यहां अब ईटों का एक गोल चबूतरा बना दिया गया है जिस पर एक शिला, पीतल का नाग व शिवलिंग रखे हुये हैं. जंजीरों के साथ त्रिशूल भी है.

साल के घने जंगल के बीच यहां बड़े-बड़े आम के पेड़ भी हैं जो निश्चित तौर पर किसी आदमी ने ही लगाये होंगे. एक आम के पेड़ के तने की मोटाई तो लगभग साड़े चार मीटर की थी जिससे इस जगह की प्राचीनता का पता चलता है. यहीं से कुछ पाषाण की शिला व मूर्ति नये वाले मानक सिद्ध मंदिर के गृभगृह में रखी गई हैं. इस मंदिर में साधू भी रहते हैं. आज भी यह स्थान स्थानीय ग्रामीणों की आस्था का केन्द्र है. हर साल दोनों मंदिरों में भण्डारे होते हैं जिसमे बड़ी संख्या में स्थानीय लोग शामिल होते है.
(Sidh temples of Dehradun)

विजय भट्ट

इस श्रंखला को यूट्यूब पर ” बात बोलेगी ” चैनल साथी त्रिलोचन भट्ट, को भी देखिएगा.

देहरादून के रहने वाले विजय भट्ट सामजिक कार्यों से जुड़े हैं. विजय ज्ञान और विज्ञान के माध्यम से लोगों को उनके अधिकारों के प्रति सचेत करते हैं.

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