उच्च हिमालयी क्षेत्रों के पैदल रास्तों से लौटते हुए सैलानियों से दवा मांगते ग्रामीणों का मिलना आम है. ये ग्रामीण बहुत विनम्रता के साथ शहरों को लौटते सैलानियों से दवा मांगते हुए उसकी कीमत चुकाने की भी पेशकश करते हैं. सबसे नजदीकी कस्बों से मीलों के पैदल रास्तों पर बसे ये गाँव चिकित्सा सुविधाओं से विहीन हैं.
अक्सर ही इन गांवों से मीलों दूर के करीबी पहाड़ी कस्बों में दवा की कोई दुकान नहीं होती, डॉक्टर या अस्पताल तो दूर की बात है. सरकारी जन औषधि केंद्र भी यहाँ चढ़ने से पहले हांफ जाते हैं. इसलिए यहाँ जिंदगियां भगवान भरोसे ही हैं.
स्वास्थ्य एवं शिक्षा किसी भी समाज की खुशहाली का बुनियादी पैमाना है. इन दोनों ही क्षेत्रों में 18 साल के उत्तराखण्ड की हालत दयनीय ही बनी हुई है. भीषण पैदल रास्तों से डोली में बैठकर इलाज के लिए लाये जा रहे बुजुर्ग और जच्चाओं का दम तोड़ने का दृश्य आम है. बागेश्वर की एक शादी में दूषित भोजन की वजह से बीमार 300 से ज्यादा लोगों में से कई ने इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया.
नीति आयोग द्वारा जारी 21 राज्यों के स्वास्थ्य सूचकांक में उत्तराखण्ड पन्द्रहवें स्थान पर है, झारखंड की स्थिति हमसे काफी बेहतर है. हमसे भी ज्यादा दुर्गम हिमालयी राज्य हिमाचल प्रदेश इस सूचकांक में पांचवे स्थान पर है. इनता ही नहीं यहाँ स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति लगातार और ज्यादा खराब होती जा रही है. स्वास्थ्य सूचकांक में हमारी रैंकिंग लगातार गिरती चली जा रही है.
उत्तराखण्ड में 257 पीएचसी, 60 सीएचसी, 3 बेस अस्पताल, 06 जिला महिला अस्पताल, 15 संयुक्त चिकित्सालय, 1847 उपकेन्द्र, 17 सब डिवीजनल हॉस्पिटल, 13 टीबी अस्पताल, 20 जिला अस्पताल और 1 मानसिक चिकत्सालय समेत एक अपर्याप्त सरकारी स्वास्थ्य तंत्र है. लेकिन यह तंत्र भी पूरी तरह बीमार है. राज्य के सभी जिलों के विभिन्न अस्पतालों में डॉक्टरों के 2500 से ज्यादा स्वीकृत पदों में से 1100 से ज्यादा पड़ रिक्त हैं. इसके अलावा एएनएम के 21%, स्टाफ नर्स के 39%, एक्सरे टेक्निशियनों के 50%, लैब टेक्निशियन के 31% पड़ रिक्त हैं.
कुल मिलाकर डॉक्टरों और सहायक स्टाफ के अभाव में पहले से ही अपर्याप्त स्वास्थ्य तंत्र और भी ज्यादा नकारा साबित होता है. राज्य के 4 मैदानी जिलों, देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल, ऊधम सिंह नगर के अलावा शेष 9 पर्वतीय जिलों में स्थितियां ज्यादा ख़राब हैं. पर्वतीय जिलों की अधिकांश आबादी आज भी मध्ययुगीन तौर तरीकों से इलाज करने के लिए शापित है. सरकारी अस्पताल मामूली बीमारों को भी रेफरकर दे रहे हैं. रेफरल सेंटर जरा भी गंभीर बीमार को या तो यहाँ से बाहर रवाना कर दे रहे हैं या फिर प्राइवेट अस्पतालों का दरवाजा दिखा रहे हैं.
बीमार सरकारी स्वास्थ्य तंत्र का फायदा उठाकर प्रदेश में छोटे-बड़े 600 से भी ज्यादा प्राइवेट अस्पताल अपना धंधा चमका रहे हैं. इन प्राइवेट अस्पतालों के चंगुल में फंसकर मरीज जिंदगी भर के लिए कर्जदार होकर ही बाहर निकलते हैं.
—सुधीर कुमार
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