Featured

उत्तराखण्ड में शीतला देवी के विशिष्ट रूप

शीतलादेवी के मंदिर उत्तराखण्ड के अनेक स्थानों में हैं. कुमाऊं में यह बरौरी, द्वाराहाट, शीतलाखेत, अल्मोड़ा तथा काठगोदाम में हैं. काठगोदाम स्थित शीतलादेवी के विषय में मान्यता है कि इसे बदायूं के वैश्य, जो कि यहाँ के पुराने बाजार शीतलाहाट में व्यवसाय करते थे, अपने साथ लाये. इस मंदिर में देवी की काले पत्थर की एक सुन्दर प्रतिमा है. पास ही में काली, दुर्गा, हनुमान आदि के भी छोटे मंदिर हैं. लोगों की आस्था है कि शीतलादेवी की कृपा से अनेक रोगों का निवारण होता है. उत्सव, त्यौहारों के अवसर पर श्रद्धालु पास के जलस्रोत में स्नान भी किया करते हैं.

शीतलादेवी के नाम से एक मंदिर अल्मोड़ा जनपद के शीतलाखेत में भी है. द्वाराहाट में शीतलादेवी का मंदिर स्याल्दे (शीतला-देवी) के नाम से जाना जाता है. माना जाता है कि यहाँ इसकी स्थापना 1257 में की गयी. इसी प्रकार गढ़वाल मंडल में भी टिहरी में माता का मंदिर है. इसका एक मंदिर इसकी मध्यकालीन राजधानी श्रीनगर के निकटस्थ ग्राम भक्तियावण में गुरु गोरख्नात गुफा के नजदीक ही है. यहाँ महिलाएं होलिका दहन के उपरान्त बच्चों के साथ जाकर शीतला माता की पूजा-अर्चना करती हैं.

यूँ तो शीतलादेवी को छोटीमाता (चेचक) की अधिष्ठात देवी माना जाता है किन्तु उत्तराखण्ड में इनके मंदिरों का अपना स्वतंत्र रूप देखने को मिलता है. नैनीताल जिले के मुक्तेश्वर के पास शीतला में स्थापित शीतलादेवी को शिवशक्ति (उमा) के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है. 1892 में हल्द्वानी-अल्मोड़ा मोटर मार्ग के बनने से पहले बद्रीनाथ, केदारनाथ, जागेश्वर की यात्रा पर जाने वाले व्यक्ति इसी मार्ग से होकर जाया करते थे. शीतलादेवी के इस मंदिर के पास यात्रा मार्ग पर एक बहुत बड़ा बांज का पेड़ है. इसके संबंध में मान्यता है कि इसके नीचे भगवती (उमा देवी) ने विश्राम किया था. इसके मूल में स्थापित 3-4 लिंगात्मक पाषाणों को उमा-पार्वती का प्रतीक मानकर पूजा जाता है.

देहरादून और अजमेर में शीतलादेवी को पीताम्बर वस्त्र धारण किये हुए गोद में एक शिशु को लिए दिखाया गया है. एटकिंसन के अनुसार इसकी समानता नेपाल की बौद्ध परंपरा की देवी ‘हरिति’ से की जा सकती है. उनके अनुसार अधिकतर स्थानों में इसके पुजारी निम्न जाति के लोग हुआ करते हैं. शीतलादेवी को रोली, सिंदूर, चावल, फूल व मिठाई अर्पित किये जाने की परम्परा है.

उत्तराखण्ड ज्ञानकोष, प्रो. डी. डी. शर्मा के आधार पर

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

उत्तराखंड में सेवा क्षेत्र का विकास व रणनीतियाँ

उत्तराखंड की भौगोलिक, सांस्कृतिक व पर्यावरणीय विशेषताएं इसे पारम्परिक व आधुनिक दोनों प्रकार की सेवाओं…

2 days ago

जब रुद्रचंद ने अकेले द्वन्द युद्ध जीतकर मुगलों को तराई से भगाया

अल्मोड़ा गजेटियर किताब के अनुसार, कुमाऊँ के एक नये राजा के शासनारंभ के समय सबसे…

6 days ago

कैसे बसी पाटलिपुत्र नगरी

हमारी वेबसाइट पर हम कथासरित्सागर की कहानियाँ साझा कर रहे हैं. इससे पहले आप "पुष्पदन्त…

6 days ago

पुष्पदंत बने वररुचि और सीखे वेद

आपने यह कहानी पढ़ी "पुष्पदन्त और माल्यवान को मिला श्राप". आज की कहानी में जानते…

6 days ago

चतुर कमला और उसके आलसी पति की कहानी

बहुत पुराने समय की बात है, एक पंजाबी गाँव में कमला नाम की एक स्त्री…

6 days ago

माँ! मैं बस लिख देना चाहती हूं- तुम्हारे नाम

आज दिसंबर की शुरुआत हो रही है और साल 2025 अपने आखिरी दिनों की तरफ…

6 days ago