उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के गाजणा के ठांडी में हर तीन साल में भेड़ों का एक पौराणिक मेला आयोजित होता है. तीन दिन तक चलने वाले इस मेले में अनेक प्रकार के रंगारंग कार्यक्रम आयोजित होते हैं. मेले के तीसरे दिन गांव वाले बौल्याराज मंदिर प्रांगण की सजावट करते हैं फिर भेड़ और बकरियों की झांकियां निकालते हैं.
इस साल मेले का आयोजन 5 से 7 सितंबर के मध्य किया गया. बौल्याराज मंदिर प्रांगण में ग्रामीणों ने देव-डोलियों के साथ रासौ नृत्य किया और उनसे अपनी सुख-शांति का आशीर्वाद लिया. इन देव डोलियों में हरिमहाराज, बोलिया राजा, कालीनाग, ओणेश्वर, ज्वालपा माता, दुधयाड़ी देवी, नन्दा देवी, भद्रकाली, गुरू चैंरंगीनाथ, की देव डालियों से सुख समृद्धि का आशीर्वाद लिया जाता है. इनके एक साथ दर्शन के लिये गाजणा पट्टी के अनेक लोग इसमें शामिल होते हैं.
इस वर्ष भी ग्रामीणों ने विधिवत भेंड़ बकरियों की पूजा की और परिवार व क्षेत्र की सुख-शांति के लिए कामना की. इस मौके पर सभी ग्रामीणों ने देवी-देवताओं की डोलियों के साथ रासौ तांदी नृत्य किया. आंतरिक हिमालयी क्षेत्रों के जीवन में पशुपालन का महत्तवपूर्ण योगदान है. भेड़ों के इस पौराणिक मेले में भी भेड़ों की ऊन निकाल कर बुग्यालों में उनके स्वस्थ जीवन की कामना की जाती है.
इस वर्ष पौराणिक भेड़ मेले को पर्यटन से जोड़ कर इस मेले को सरकारी मेले के रूप में आयोजित किये जाने की घोषणा भी की गई है
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…