Categories: Featuredकॉलम

उत्तराखंड के जननायक शमशेर सिंह बिष्ट की पहली बरसी पर अल्मोड़ा में शमशेर स्मृति का आयोजन

कल उत्तराखंड के जननायक शमशेर सिंह बिष्ट की पहली बरसी है. पिछले बरस 22 सितम्बर के दिन उनका देहांत हुआ था.

इस अवसर पर उनके सभी संगी साथियों और प्रशंसकों द्वारा अल्मोड़ा में शमशेर स्मृति कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है.

रामजे इंटर कालेज में कल होने वाले इस कार्यक्रम को दो सत्रों में आयोजित किया जाएगा. प्रथम सत्र में आगन्तुक अतिथियों द्वारा डॉ. शमशेर सिंह बिष्ट को श्रद्धांजलि दी जायेगी, इसके बाद शमशेर सिंह बिष्ट के जीवन पर आधारित पुस्तक का विमोचन किया जायेगा. जननायक डॉ. शमशेर सिंह बिष्ट नामक इस पुस्तक के लेखक डॉ. कपिलेश भोज हैं. इसी सत्र में कुमाऊंनी मासिक पत्रिका ‘पहरू’ के शमशेर पर केन्द्रित अंक का विमोचन भी किया जायेगा.

दोपहर दो बजे शुरू होने वाले दूसरे सत्र में डॉ. शमशेर सिंह बिष्ट के विचारों के आधार पर वर्तमान परिस्थितियों में आगे बढ़ने का रास्ता निकालने के लिये चर्चा की जायेगी. इस सत्र में तमाम बुद्धिजीवियों, सामाजिक और राजनैतिक कार्यकर्ताओं, लेखकों , रंगकर्मियों तथा छात्रों के बीच इस विषय पर गहन विचार विमर्श किया जायेगा. यह विचार विमर्श देर रात तक जारी रहेगा.

आयोजकों ने यह भी कहा है कि इस बातचीत को जरूरत पढ़ने पर अगले दिन भी जारी रखा जा सकता है.

शमशेर सिंह बिष्ट उत्तराखण्ड के ख्यातिलब्ध आन्दोलनकारी, सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक, पत्रकार और बुद्धिजीवी थे. अभावग्रस्त बचपन को अपनी ताकत बना लेने वाले शमशेर सिंह बिष्ट ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 80 के दशक के आरम्भ में अल्मोड़ा कॉलेज के छात्र संघ अध्यक्ष के रूप में की. इसके बाद राजनीतिक, सामाजिक सरोकारों के लिए प्रतिबद्ध शमशेर उत्तराखण्ड के सभी महत्वपूर्ण आंदोलनों के ध्वजवाहक बने रहे . विभिन्न छात्र आंदोलनों के अलावा वे नशा नहीं रोजगार दो, चिपको आन्दोलन, राज्य आन्दोलन समेत कई आंदोलनों के प्रमुख योद्धा रहे. राज्य गठन के बाद भी वे सत्ता के गलियारों में जगह तलाशने के बजाय आजीवन जनसंघर्षों का हिस्सा बने रहे.

-काफल ट्री डेस्क

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

3 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

3 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

4 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

5 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

5 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago