Featured

अब मैं सूरज को नहीं डूबने दूंगा

अब मैं सूरज को नहीं डूबने दूंगा 
- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

देखो मैंने कंधे चौड़े कर लिये हैं
मुट्ठियाँ मजबूत कर ली हैं 
और ढलान पर एड़ियाँ जमाकर 
खड़ा होना मैंने सीख लिया है.

घबराओ मत 
मैं क्षितिज पर जा रहा हूँ.
सूरज ठीक जब पहाडी से लुढ़कने लगेगा
मैं कंधे अड़ा दूंगा
देखना वह वहीं ठहरा होगा.

अब मैं सूरज को नही डूबने दूँगा.
मैंने सुना है उसके रथ में तुम हो
तुम्हें मैं उतार लाना चाहता हूं
तुम जो स्वाधीनता की प्रतिमा हो
तुम जो साहस की मूर्ति हो
तुम जो धरती का सुख हो
तुम जो कालातीत प्यार हो
तुम जो मेरी धमनी का प्रवाह हो
तुम जो मेरी चेतना का विस्तार हो
तुम्हें मैं उस रथ से उतार लाना चाहता हूं.

रथ के घोड़े 
आग उगलते रहें
अब पहिये टस से मस नही होंगे
मैंने अपने कंधे चौड़े कर लिये है.

कौन रोकेगा तुम्हें
मैंने धरती बड़ी कर ली है
अन्न की सुनहरी बालियों से
मैं तुम्हें सजाऊँगा 
मैंने सीना खोल लिया है
प्यार के गीतो में मैं तुम्हे गाऊँगा
मैंने दृष्टि बड़ी कर ली है
हर आँखों में तुम्हें सपनों सा फहराऊँगा.

सूरज जायेगा भी तो कहाँ
उसे यहीं रहना होगा
यहीं हमारी सांसों में
हमारी रगों में
हमारे संकल्पों में
हमारे रतजगों में
तुम उदास मत होओ
अब मैं किसी भी सूरज को
नही डूबने दूंगा.
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

15 सितम्बर 1927 को उत्तर प्रदेश के बस्ती में जन्मे सर्वेश्वर दयाल सक्सेना हिन्दी के बड़े कवि थे. उनके संग्रह ‘खूँटियों पर टंगे लोग’ के लिए उन्हें वर्ष 1983 में साहित्य अकादमी पुरुस्कार से सम्मानित किया गया था. इसके अलावा उन्हें हिन्दी साहित्य के अनेक महत्वपूर्ण सम्मान भी प्राप्त हुए. अपनी सचेत राजनैतिक प्रतिबद्धता के लिए जाने जाने वाले सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने लम्बे समय तक बच्चों की मशहूर पत्रिका ‘पराग’ का सम्पादन भी किया और बच्चों के लिए बहुत सी रचनाएं भी कीं. उनकी प्रेम कविताएं भी बहुत विख्यात हुईं. 24 सितम्बर 1983 को उनका देहावसान हुआ.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

12 hours ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

1 day ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

1 day ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

6 days ago

साधो ! देखो ये जग बौराना

पिछली कड़ी : उसके इशारे मुझको यहां ले आये मोहन निवास में अपने कागजातों के…

1 week ago

कफ़न चोर: धर्मवीर भारती की लघुकथा

सकीना की बुख़ार से जलती हुई पलकों पर एक आंसू चू पड़ा. (Kafan Chor Hindi Story…

1 week ago