संत राम और आनंदी देवी की जोड़ी में उत्तराखण्ड का लोक संगीत बसता है कहना बिलकुल गलत नहीं होगा. इस सुरीले दंपत्ति का ताल्लुक उत्तराखण्ड के शिल्पकार समाज की उस उपजाति से है गीत-संगीत जिनकी धमनियों में खून बनकर बहता है. लगभग 70 साल के संत राम-आनंदी देवी आज भी सुरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं और अल्मोड़ा के नन्दा देवी मेले की भी शान हैं. यह जोड़ी झोड़ा, चांचरी, छपेली, न्यौली, बैर, भगनौल, राजुला मलुसाई समेत उत्तराखण्ड की कई संगीत विद्याओं में सिद्धहस्त हैं. (Sant Ram Anandi Devi)
संत राम का जन्म सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा के ग्राम पीली, ब्लॉक धौलछीना में चनर राम और देवकी देवी के घर हुआ. पांच भाई और दो बहनों के इस परिवार में तब दुखों का पहाड़ टूट पड़ा जब जन्म के तीसरे महीने अज्ञात बीमारी की वजह से संत राम की आँखों की ज्योति जाती रही. उस समय सामान्य बच्चों तक को शिक्षित कर पाना इस दुर्गम पहाड़ी इलाके में संभव नहीं था तो संत राम भला स्कूल क्या जाते. शिक्षा तो मिली नहीं लेकिन उन्होंने संगीत से लगन लगा ली. कान सुरों को ऐसे पकड़ते कि फिर आत्मा में विलीन होकर ही बाहर फूटते. उनकी संगीत प्रतिभा को देख कर एक स्थानीय जगरिये प्रताप राम ने उन्हें लोक संगीत की बारीकियों से शिक्षित किया. इस तरह संत राम उत्तराखण्ड के लोक संगीत के स्तम्भ बन गए.
नेत्रहीन होने के बावजूद संतराम अपनी जरूरत भर के सारे काम खुद ही निपटा लिया करते थे. बड़े हुए तो लोक संगीत से थोड़ा बहुत नजराना भी मिलने लगा. स्थानीय तीज-त्यौहारों और मेलों में गाते हुए वे संगीत के पारखियों की नजर में आये. उत्तराखण्ड के जाने-माने संगीतकार शंकर उप्रेती ने उन्हें सबसे पहले आकाशवाणी के लिए रिकॉर्ड किया. आकाशवाणी से प्रसारित ‘रामसेरा’ छपेली ने उनकी लोकप्रियता का दायरा बहुत बढ़ा दिया. बाद में उनके पिता ने उनकी सरकारी पेंशन लगवा दी जो आधार कार्ड का दौर आने तक जारी रही. आधार कार्ड की अनिवार्यता के बाद पेंशन बंद हो गयी. तब स्थानीय ग्रामीण दरबान सिंह ने जरूरी कागजात तैयार कर पुनः पेंशन बहाल करवाई.
आनंदी देवी भी अल्मोड़ा के ही गरुड़ाबांज के निकट गांव भैना, पो. ओ. पनुआनौला में जन्मीं. नाथू राम और बसंती देवी के घर पैदा हुईं आनंदी देवी आंशिक तौर पर नेत्रहीन थीं. वे अपनी एक आँख से देख सकती थीं. तीन बहनों और एक भाई के परिवार की सदस्य भी बचपन से ही गीत-संगीत में रुचि रखती थीं.
अभाव और दुर्दिनों ने कभी भी इस सुरीले युगल का साथ नहीं छोड़ा. कोई तीन दशक पहले दोनों के विवाह का संयोग बना. मित्रों शुभचिंतकों ने संत राम और आनंदी देवी का रिश्ता ठहरा दिया. यह सोचा गया कि आंशिक तौर पर देख पाने वाली आनंदी देवी को एक ठौर मिल जाएगा और उनकी आँखों की ज्योति संत राम की जिंदगी में भी थोड़ा रौशनी भर सकेगी. संत राम को रोजमर्रा के काम निपटने में थोड़ा आसानी भी हो जाएगी. गोलू देवता ने इस संयोग को जन्म दिया ऐसा संत राम कृतज्ञता के साथ बताते हैं.
विवाह के बाद जीवन की गाड़ी तो ठीक से चलने ही लगी दोनों के ही सुरों को भी संगत मिल गयी. संत राम हुड़के की थाप पर गाते और आनंदी देवी जीवंत भाव-भंगिमाओं के साथ उनका साथ देतीं. कुछेक साल पहले आनंदी देवी की एक आँख की ज्योति भी जाती रही.
जीवन के लगभग सात दशक जी चुके इस दंपत्ति ने ज्यादातर समय घोर अभाव में बिताया. सरकारों ने इनके जीवन की बेहतरी और इनकी लोक कला के संरक्षण के गंभीर प्रयास कभी नहीं किये. अलबत्ता लोगों का बेइन्तहां प्यार इनके हिस्से में जरूर आया. कला के पारखियों ने आकाशवाणी के लिए इन्हें यथासंभव रिकॉर्ड किया. स्थानीय ग्रामीणों ने इन्हें हर संभव सहारा दिया. सोशल मीडिया में अपने इन लोकगायकों की बेहतरी के लिए कई तरह के अभियान चलाये गए. लोक की इसी तरह की गतिविधियों की वजह से हाल ही के सालों में अल्मोड़ा के तत्कालीन जिलाधिकारी नितिन भदौरिया को इन लोककलाकारों के समाज कल्याण विभाग के जीर्ण-शीर्ण भवन में रहने की जानकारी मिली. उन्होंने खुद की अध्यक्षता में ‘संतराम आनंदी देवी सेवा समिति’ का गठन किया. समिति ने सबसे पहले इस दंपत्ति के लिए पक्का घर बनाने की पहल की. पिछले साल के आखिर में दंपत्ति को इस समिति के प्रयासों से पक्के घर में प्रवेश मिल गया.
यह कहा जाना जरूरी नहीं है कि संत राम और आनंदी देवी की यात्रा उत्तराखण्ड की लोक संस्कृति की भी यात्रा है. हरदा सूरदास, कबूतरी देवी जैसे कई लोक कलाकारों को न हमने सहेजा न सम्मान दिया. लोक कलाकारों के इस तिरस्कार का परिणाम यह हुआ कि लोक कलाओं की कई विधाएं लुप्त हो गयीं कई हो जाएँगी. भिखारियों सा वंचित जीवन जीने को अभिशप्त उत्तराखण्ड के जाने-माने लोक कलाकारों की अगली पीढ़ियों ने विरासत को आगे बढ़ाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. (Sant Ram Anandi Devi)
(यू ट्यूब चैनल उत्तराखण्ड मेरी जन्मभूमि के लिए नीरज भट्ट द्वारा गायक दंपत्ति से की गयी बातचीत के आधार पर)
कबूतरी देवी की पहली पुण्यतिथि के बहाने हमारे लोकगायकों का हाल
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