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साझा कलम: 9 पदमिनी अबरोल

[एक ज़रूरी पहल के तौर पर हम अपने पाठकों से काफल ट्री के लिए उनका गद्य लेखन भी आमंत्रित कर रहे हैं. अपने गाँव, शहर, कस्बे या परिवार की किसी अन्तरंग और आवश्यक स्मृति को विषय बना कर आप चार सौ से आठ सौ शब्दों का गद्य लिख कर हमें kafaltree2018@gmail.com पर भेज सकते हैं. ज़रूरी नहीं कि लेख की विषयवस्तु उत्तराखण्ड पर ही केन्द्रित हो. साथ में अपना संक्षिप्त परिचय एवं एक फोटो अवश्य अटैच करें. हमारा सम्पादक मंडल आपके शब्दों को प्रकाशित कर गौरवान्वित होगा. चुनिंदा प्रकाशित रचनाकारों को नवम्बर माह में सम्मानित किये जाने की भी हमारी योजना है. रचनाएं भेजने की अंतिम तिथि फिलहाल 15 अक्टूबर 2018 है. इस क्रम में पढ़िए पदमिनी अबरोल की कहानी एकाकी भाभी – सम्पादक.]

“एकाकी भाभी”

हमारा घर तल्लीताल, बाज़ार में ही था. ठीक सामने वाले घर में ‘वो’ अकेली रहती थीं. उनका असली नाम क्या था ये तो याद नहीं पर बचपन से ही ‘भाभी’ उनके लिए शब्द सुना था. काफी सालों से वो अकेली ही उस दुमंजिले घर में रहती थीं. पर सालों पहले ऐसा नही था. बीमार श्वसुर और तीन-तीन बिन ब्याही लगभग तीस-चालीस की उम्र वाली ननदों की चाकरी करती हुई वह अपने एकमात्र पुत्र के साथ चुपचाप दिन-रात तल्लीनता से कामों में लगी, अपने दिन गुजार रही थी. उनके पति को कभी हमने देखा नहीं था. उनके चेहरे पर हमेशा शालीनता का भाव रहता था. मैने अपने 16 वर्ष के समय तक शायद ही उनके मुँह से कोई शब्द सुना हो, ऐसा मुझे याद नहीं पड़ता.

उनके एकमात्र पुत्र दीपू, के जन्मदिन की पांचवीं सालगिरह मनाई गयी तो पास-पड़ोस के हम सभी बच्चों को पहली और शायद आखरी बार उनके घर से बुलावा आया. वहाँ बहुत रौनक लगी थी, ढोलक की थाप पर गीत गाए जा रहे थे. भाभी उल्लास के साथ भाग-भाग कर मेहमानों की आव-भगत कर रही थीं. आज उनकी ख़ुशी का ठिकाना ना था. महिलाओं के बहुत इसरार करने पर आखिर उन्होंने भी एक गीत गाया- ‘जब-जब बहार आई,और फूल मुस्कुराये,मुझे तुम याद आये”.गाते-गाते लगा जैसे उनका कंठ भर आया हो.घर आ कर मैने माँ को बताया तो वो बोली, बेटा! उसके पति ने दूसरी शादी कर ली है और वह इसे अपनी पत्नी नही मानता. ये शादी तो उसने अपने माता पिता के दबाब में आकर कर ली थी. परिवार में उसके पिता का बहुत रोब-दाब था बेटा, देवी भी अपने पिता के आगे मुंह नहीं खोल सका था ना. उसकी नौकरी देहरादून में थी, पिछले आठ-दस सालों में वह सिर्फ एक बार घर आया था-वह भी अपनी शादी पर ,और दूसरे दिन ही चला गया था. फिर कभी वापस नहीं आया. पिता के बुलाने पर भी नहीं, और न ही पत्नी को अपने साथ ले गया. सुना था पिता से कह कर गया था कि आपकी जिद पर मैंने कर तो ली ये शादी पर, ये मेरी पत्नी नहीं सिर्फ आपकी बहू ही रहेगी. देहरादून में देवीदा ने पहले ही शादी कर रखी थी और वो वहाँ अपनी उसी पहली पत्नी के साथ रहता है. राम जाने बच्चे-उच्चे कितने है? मैं हैरानी से मां की बात सुनती रह गई.और दीपू ? वह तो उनका बेटा है ना ! तो उससे भी नही मिलने आते वो ? अरे बिटिया, वो तो सुहाग रात को रह गया था ना.शादी के बाद तो देवी कभी आया ही नही.बेटा होने पर भी नही ? मैंने आश्चर्य से पूछा. ना,री ! कभी नहीं. उसने तो दीपू का चेहरा भी नही देखा आजतक.और अपने इसी बेटे के कारण भाभी कभी मायके भी वापस नही जा पाई. उन्हें अपने पति के कभी न कभी मेहरबान होने का बहुत भरोसा था.

उनकी बातें सुनकर बहुत दुख हुआ. तो ऐसे जीतेजी निर्वासन काट रही थी भाभी.पर हम कर भी क्या सकते थे. शायद क्या कभी उनके दिन भी फिरेंगे ! किस इन्तजार में वो जी रही थी ? पर भाभी के चहरे को देख कर ऐसा लगता था जैसे सुनी-सुनाई बातों का उन पर कोई प्रभाव ही ना पड़ा हो. वो सदा की भाति बिने भूले रोज वर्षों से मांग में सिंदूर भरती और माथे पे बिंदी लगाती रहीं. बेचारी भाभी किसी श्रापग्रस्त कन्या की तरह जीवन ढो रहीं थी.

दिन यूँ ही बीत रहे थे कि उनके जीवन में अचानक हलचल मच गई. हुआ ये कि उनके श्वसुर का लंबी बीमारी के बाद देहांत हो गया. पूरे बाज़ार में खुसपुसाहट सुनाई देने लगी कि इस बार तो भाभी के पति का आना तय है. घर मे सारे पास-दूर के रिश्तेदारों ने आना शुरू हो गया. दोनों देवर पत्नियों सहित आ चुके थे.बड़ी वाली ननद पति और बच्चों के साथ आ पहुँची. अब सारे घर को सबसे बड़े बेटे का इन्तजार था.

भाभी अपने मन के अँधड़ों को पता नही कैसे अपने मन मे संभाले निर्विकार सा चेहरा लिए बैठी थीं, कि अचानक ‘देवी दा आ गए’ का स्वर उनके कानों में सुनाई पड़ा.देवी दाज्यू अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ कमरे में उपस्थित थे. उनके दस वर्षीय पुत्र को देख कर लोगों के सामने यह रहस्योद्घाटन होते देर ना लगी कि वह जब भाभी से शादी करने के लिए आये थे तो पहले से शादीशुदा थे. उन्होंने दुबारा ब्याह रचा कर भाभी के साथ ही नहीं बल्कि दीपू के साथ भी घोर अन्याय किया था. पर ये बात घर के सबसे बड़े पुत्र से कौन कह सकता था ? साथ आई उनकी पत्नी सादी परंतु कीमती साड़ी– गहनों से सज्जित थी. उसका चेहरा गर्वित मुस्कान से दमक रहा था.घर की बड़ी बहू के स्थान पर वह पल भर में आसीन हो गई, और सारा घर उसके आगे पीछे घूमने लगा. भाभी जो अभी तक श्वसुर की छत्र छाया में स्वयं को महफूज समझती रहीं, आज अचानक उन्हें अपने अनाथ होने का अहसास सालने लगा. अपने 5 साल के दीपू को छाती से लगा कर वो पहली बार फूट-फूट कर रो पड़ी.उनके आर्तनाद का चीत्कार सुनकर अपने तो अपने परायों का भी मन भर आया. क्षणभर मे ही घर में अपनी स्थिति में आये परिवर्तन को देख वे विस्मित रह गयीं. पदच्युत होते ही अपना सम्मान खोता देख वे अपनी पूरी शक्ति लगा कर उठीं और पुरूषों के मध्य जा कर देवी दा के सामने खड़ी हो गईं. कभी गलती से भी सर ना उठाने वाली और हर हुक्म का पालन करने वाली भाभी के साहस को देख बैठक में उपस्थित लोगों के मुंह आश्चर्य से खुले रह गए. अश्रुपूरित नेत्रो से देवी दा की ओर देखते हुए उनकी सारी शक्ति जैसे निचुड़ गई और बड़ी कठिनाई से उनके मुँह से सिर्फ यही शब्द निकल पाए’-मुझे न सही पर अपने बेटे को तो अपने साथ ले जाओ.‘ देवी दा, जो भाइयों के साथ महत्त्वपूर्ण मसले पर विचार कर रहे थे, भाभी की इस धृष्टता पर हतप्रभ रह गए. मानो ऐसे समय पर उन्हें कम से कम ये उम्मीद तो नहीं थी.

लोगों के सामने इस तमाशे को होता देख, और पास बैठी पत्नी से नज़र मिलते ही,उनका पौरुष जाग उठा. एक झन्नाटेदार थप्पड़ भाभी के चेहरे पर जड़ते हुए बोले, ‘कौन है तू और तेरी इतनी हिम्मत ! मेरा तुझसे कोई रिश्ता नहीं.’ नन्हा दीपू जो माँ का हाथ थामें खड़ा था, डर के मारे थर-थर कांपने लगा. पिता का पहला-पहला और ऐसा रौद्र रूप देखने की तो उसने कल्पना भी नहीं की थी. वह पूरी शक्ति से माँ से चिपट गया. आंसुओं से तर चेहरा उठा कर माँ से बोला, नहीं माँ ! मुझे इस आदमी के साथ मत भेजो. मेरा कोई पिता नहीं ! मेरी सिर्फ माँ है. देवी दा ने कठोर स्वर में कहा, लेजा मेरे सामने से इस मनहूस को और अपनी भी सूरत कभी मत दिखाना. फिर पुनः भाइयों के साथ बातचीत करने में ऐसे मशगूल हो गए मानों कुछ घटा ही ना हो. देखने-सुनने वालो ने गहरी सांस भरते हुए कहा – हाय री किस्मत ! ऐसी तकदीर भगवान दुश्मन को भी ना दे.

दिल्ली की रहने वाली पदमिनी अबरोल पिछले 22 वर्षों से अध्यापन कार्य में संलग्न हैं. वर्तमान में एस. डी. पब्लिक स्कूल पीतमपुरा नई दिल्ली में हिंदी की अध्यापिका हैं.

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Girish Lohani

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  • Women gives birth to all these thhekedaars of society. These rogues who ill treat women are real stink of the society. Women should not suffer in silence.....its time they empower themselves and have their say in every thing. For me the women suffers in life thousand time more than men basically because of her role as creator of humanity. I salute this formidable force who created us, nurtured us and sacrifice every thing for children and family. They deserve respect and dignity on this planet. Where women dont get respected...HELL falls on such homes! Nice write up lady...keep it up!

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