उत्तराखण्ड के गढ़वाल मंडल के रुद्रप्रयाग जिले में है भगवान शिव का मंदिर रुद्रनाथ. रुद्रनाथ पंचकेदारों में से एक है, इसे चौथा केदार माना जाता है.
रुद्रनाथ में शिव के एकानन रूप यानि मुख की पूजा-अर्चना की जाती है. इस सम्बन्ध में ज्यादा जानने के लिए पढ़ें:— गुप्तकाशी: जहाँ शिव गुप्तवास पर रहे
रुद्रप्रयाग गोपेश्वर-केदारनाथ मार्ग में स्थित है. गोपेश्वर से मंडल के लिए चलने पर 5-7 किमी आगे ही एक गाँव है सग्गर. सग्गर से पैदल रास्ता रुद्रनाथ के लिए जाता है. सग्गर से आगे मंडल से भी अनुसूया, पंचगंगा होते हुए भी रुद्रनाथ जाया जा सकता है.
रुद्रनाथ और इसके रास्ते में केदारनाथ, तुंगनाथ तृतीय केदार: तुंगनाथ की तरह रुकने के बंदोबस्त नहीं हैं. आपको सग्गर से ही स्थानीय ग्रामीणों की मदद से बंदोबस्त पक्के करने होते हैं, या फिर आपके पास खुद रुकने के लिए पर्याप्त साधन होने चाहिए. पूर्व सूचना पर स्थानीय ग्रामीण यात्रियों के ठहरने की व्यवस्था किया करते है.
पैदल रास्ते में पांचेक किमी की दूरी में एक खुबसूरत हिमालयी बुग्याल है— पुंग बुग्याल. इसके बाद मौलि खरक गाँव और लीटी बुग्याल भी है, इसके बाद आता है पनार बुग्याल. सग्गर से पनार होते हुए पित्रधार तक आप बुग्याल तक आप दुर्गम पहाड़ी रास्ते पर चलते हैं, रास्ता बहुत तीखी चढ़ाई लिए हुए है. रुद्रनाथ पंचकेदार समूह में सबसे बीहड़ और चुनौतीपूर्ण रास्ते वाला माना जाता है. पित्रधार के बाद ढलान शुरू हो जाती है. पित्रधार में नारायण और शिव-पार्वती के मंदिरों में श्रद्धालु अपने पित्रों के नाम के पत्थर रखा करते हैं. द्वितीय केदार: मदमहेश्वर
पित्रधार के बाद दसेक किमी की चढ़ाई आपको ले आती है रुद्रनाथ, चौथा केदार. रुद्रनाथ का मंदिर प्राकृतिक पत्थर के गुफा में बना है. गुफा के बाहरी हिस्से को कुछ इस तरह कमरानुमा शक्ल दी गयी है जिससे भक्त यहाँ बैठ सकें.इस विशाल प्राकृतिक गुफा में भगवान शिव की स्वयंभू पत्थर की मूर्ति स्थापित है, इस मूर्ति की गर्दन टेढ़ी है.
किवदंती है की भूमि से प्रकट हुई यह मूर्ति जमीन के अन्दर कितना धंसी है इसकी थाह लगाना भी मुश्किल है.
मुख्य मंदिर के पास ही सभी पांडवों के मंदिर भी मौजूद हैं. मंदिर के बाहर नारद कुंड में श्रद्धालु स्नान करते हैं.
रुद्रनाथ से हिमालय का नयनाभिराम दृश्य दिखाई देता है. समूचा इलाका हिमालयी वन संपदा और जैव विविधता से भी लबरेज है.
रुद्रनाथ मंदिर के कपाट शीतकाल में बंद कर दिए जाते हैं. इस दौरान शिव के पूजा गोपेश्वर के गोपीनाथ मंदिर में की जाती है.
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