उत्तराखंड का इतिहास भाग – 6
भारत के इतिहास में केवल मौर्य, मुग़ल और ब्रिटिश ही अपने स्वर्णिम दिनों में नन्दवंश से बड़ा साम्राज्य स्थापित करने में सफल रहे. महापद्मनंद ऐसा पहला शासक था जिसने इतना बड़ा साम्राज्य खड़ा किया था. उसका राज्य हिमालय से नीलगिरी और व्यास से गंगा के मुहाने तक विस्तृत बताया जाता है. नन्द वंश के काल में मध्य हिमालय क्षेत्र के किसी राजा का कोई स्पष्ट साक्ष उपलब्ध नहीं है. साहित्यिक स्त्रोतों के आधार पर यह अनुमान लगाया जाता है कि यह क्षेत्र नन्द वंश के अधीन रहा होगा.
अंतिम नंद शासक घनानंद के समय सिकंदर की सेना द्वारा व्यास नदी से आगे बढ़ने से मना कर दिया गया. इस विरोध के संबंध में यूनानी लेखकों ने एक कारण नंद वंश की विशाल सेना को बताया है. इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि व्यास नदी के पूर्व से नंद वंश की सीमा शुरू हुआ करती होगी.
चन्द्रगुप्त द्वारा घनानंद को पराजित करने और नंद वंश का अंत करने के संबंध में मध्य हिमालय की महत्त्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है. मुद्राराक्षस, जैन ग्रन्थ आदि में इस बात का उल्लेख है कि घनानंद को पराजित करने के लिये चन्द्रगुप्त मौर्य ने मध्य हिमालय के एक राजा की सहायता ली थी.
मुद्राराक्षस नाटक के अनुसार इन पर्वतीय राज्यों का नेतृत्व पर्वतेश्वर नाम के राजा के हाथों में था. चाणक्य ने मगध जीतने के बाद आधा राज्य उसे सौंपने का प्रलोभन दिया था. नाटक के अनुसार चाणक्य ने पर्वतेश्वर को वचन दिया था कि वह मगध जीतने के बाद दो भागों में राज्य चन्द्रगुप्त मौर्य और पर्वतेश्वर के मध्य बांटा जायेगा लेकिन मगध जीतने के बाद चाणक्य ने कूटनीति से पर्वतेश्वर की हत्या करा दी. चन्द्रगुप्त मौर्य ने पर्वतेश्वर का श्राद्ध किया जिसके आधार पर यह अनुमान लगाया जाता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य और पर्वतेश्वर के मध्य कोई रक्त संबंध रहा होगा. इसी के आधार पर चन्द्रगुप्त मौर्य को मध्य हिमालय के वंश से जोड़ा जाता है.
पर्वतेश्वर के ऐतिहासिक अस्तित्व की पुष्टि जैन साहित्यों से भी होती है. लेकिन पर्वतेश्वर पहाड़ी क्षेत्र का शासक था यह कहना कठिन है. जैन ग्रंथों में कहा गया है कि हिमवन्तकूट के किसी शासक ने चन्द्रगुप्त मौर्य की सहायता घनानंद को पराजित करने में की थी और पर्वतेश्वर को हिमवंतकूट का राजा बताया गया है. हिमवंत कूट हिमालय कोई भी हिस्सा हो सकता है. कालिदास के अनुसार हेमकूट गंदमाधन पर्वत पर मंदाकिनी का उदगम स्थल पर था.
विशाखदत्त के एक शती बाद ब्रहमपुर के पौरव राजाओं ने अपने अभिलेखों में अपने राज्य वर्तमान उत्तराखंड के लिये पर्वताकार राज्य नाम का प्रयोग किया है. जिसके आधार पर पर्वतेश्वर के संबंध की कल्पना पर्वता राज्य से की जा सकती है.
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि वर्तमान उत्तराखंड नंद वंश के काल में नन्द साम्राज्य के अधीन रहा होगा. इस क्षेत्र द्वारा घनानंद के विरुद्ध चन्द्रगुप्त मौर्य का साथ देना इस बात की अधिक पुष्टि करता है कि यह क्षेत्र भी घनानंद के प्रशासन और क्रूरता से संभवतः त्रस्त होता होगा.
पिछली कड़ी नन्दवंश से पूर्व उत्तराखण्ड
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