पर्यावरण

प्रस्तावित पंचेश्वर बांध से जैव-विविधता पर पड़ने वाले प्रभावों पर एक रपट

7 फरवरी में चमोली में आए सैलाब ने हिमायली राज्यों में हो रहे प्रकृति के दोहन पर एक नयी बहस छेड़ दी है यहाँ तक की लाहौल-स्पीति घाटी के लोगों ने बाँधों का पुरजोर विरोध करने फैसला तक किया है. रोटी-बेटी के सामाजिक सरोकार के अलावा पंचेश्वर जैसे बाँध हिमालय की जैव विविधता के लिए संकट पैदा करेंगे और किन प्रजातियों को विलुप्ति की कगार पर खड़ा करेंगे?
(Report on Proposed Pancheshwar Dam)

भारत-नेपाल की सांझी विरासत, हजारों हेक्टेयर में फैले साल (Sal) के जंगल, पाथर वाली बाखलियाँ, सीढ़ीदार खेतों की नक्काशी और विशाल गोल्डन महाशीर का घर- यह परिचय पंचेश्वर क्षेत्र को बखूबी परिभाषित करता है. अब यह क्षेत्र 1996 की महाकाली जल संधि के तहत लाखों डॉलर के संयुक्त पंचेश्वर बहुउद्देशीय पनबिजली परियोजना का केंद्र है.
(Report on Proposed Pancheshwar Dam)

एक अनुमान के तहत, उत्तराखंड के तीन जिलों में लगभग 31,000 परिवार इस परियोजना के कारण विस्थापित हो जाएंगे और साथ ही कई वन्यजीव जंतु जैसे, च्यूरा (Indian butter tree), बाघ (Tiger) और गोल्डन महाशीर (Golden Mahseer) भी इस परियोजना से प्रभावित होंगे, जिनके लिए यह नदी घाटी घर है. वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (WII) और फाउंडेशन ऑफ इकोलॉजिकल सिक्योरिटी (FES) द्वारा किये गए एक सर्वे में गोरीगंगा घाटी से लेकर डूब क्षेत्र तक में तक़रीबन 227 पक्षी प्रजातियों के होने की पुष्टि की है. यह पूरी घाटी अपनी ऑर्किड (Orchid) विविधता के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है, जिसमे इनकी 120 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं.

नदी का प्रवाह, मीठे पानी की मछली और नदी के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए मुख्य आधार हैं जो कि बांधों द्वारा नष्ट हो जाता है. महाकाली नदी में तीन दुर्लभ ऊदबिलाऊ (पनौत) की प्रजातियां, यूरेशियन (Euarasian Otter), स्मूथ कोटेड (Smooth Coated Otter) और छोटे पंजे वाले (Small Clawed Otter) भी पायी जाते हैं. नेपाली वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक अध्ययन में लगभग 72 मछलियों की प्रजातियों का भी होना पाया गया है जिसमें महाकाली नदी की लुप्तप्राय गोल्डन महाशीर भी शामिल है.

दो वन्यजीव अभयारण्यों का होना ही इस क्षेत्र की जैव-विविधता को दर्शाता है, जिनमे से एक प्रस्तावित परियोजना के ऊपरी भाग और दूसरा निचले तराई इलाकों तक फैला है, और ये परियोजना अधिकारियों के लिए एक परेशानी है, जिसके लिए नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्डलाइफ (NBWL) से अतिरिक्त मंजूरी की आवश्यकता होगी. चूँकि प्रस्तावित परियोजना का उत्तरी भाग अस्कोट अभ्यारण से सिर्फ 300 मीटर की दूरी पर है जो हिमालयी कस्तूरी मृग, हिम तेंदुआ, असमी बन्दर और अब, धारीदर बाघ के साथ-साथ कई और लुप्तप्राय प्रजातियों का आवास है. 2016 में, डब्ल्यूआईआई के वैज्ञानिकों ने इस संरक्षित क्षेत्र से 3,274 मीटर की ऊंचाई पर एक बाघ की उपस्थिति दर्ज की थी.
(Report on Proposed Pancheshwar Dam)

यह पहली बार था, जब देश में इस ऊंचाई पर एक बाघ पाया गया है. इस दुर्लभ रिकॉर्ड ने भूटान के बाद भारत को जैव विविधता के श्रेणी में अद्वितीय स्थान दिलवाया है, जो अब तीन बड़ी बिल्ली प्रजातियों,: हिम तेंदुआ, तेंदुआ (कुकुरिया बाघ) और धारीदर बाघ का आवास स्थल है. प्रभावित क्षेत्र दक्षिण की तरफ से नंधौर अभ्यारण से लगा है. महाकाली घाटी में बाघ के ऐतिहासिक रिकॉर्ड मिलते आये हैं, लेकिन अनुसंधान की कमी के कारण, जानकारी बहुत कम है. इस घाटी में बाघ की लुभावनी कहानियों को फील्ड डेज़: ए नेचुरलिस्ट्स जर्नी थ्रू साउथ एंड साउथ ईस्ट एशिया जैसी किताबों में एo जेo टीo जॉनसिंह और जिम कॉर्बेट ने भी अपनी शिकारी कहानियों में लिखा है.

एक बार निर्माण के बाद, पूरी परियोजना 116 वर्ग किमी कृषि और जंगलों की भूमि,को जलमग्न कर देगी, जिनमें से 46.87 वर्ग किमी वन भूमि (आरक्षित, संरक्षित और वन पंचायत वन) की श्रेणी में है. निर्माण के इस पैमाने से इन संरक्षित क्षेत्रों के जंगलों के बीच प्रमुख संपर्क कट जाएगा. तराई में विस्थापित परिवारों के “पुनर्वास” के लिए घने जंगलों को भी शायद उजाड़ा दिया जाएगा जहाँ हाथी और बाघ मिलते हैं.

एक प्राकृतिक आवास जो तराई के बाढ़ के मैदानों से लेकर उच्च हिमालयी बुग्यालों तक संरक्षण के एक प्रतीक के रूप में होने की क्षमता रखता था, अब विकास के लिए न्योछावर होने जा रहा है. वैज्ञानिक बारीकियों की कमी के कारण, पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) रिपोर्ट अटपटे निष्कर्ष दर्शाती है जैसे की रिपोर्ट में लिखा है

जलमग्न और आसपास के क्षेत्र में कोई बड़ा वन्यजीव नहीं पाया जाता है. इसलिए, परियोजना के कारण स्थलीय जीवों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा है.

अन्य बातों के अलावा, ईआईए रिपोर्ट इस क्षेत्र के निवासियों के बारे में बताना भूल गई, जहाँ सदियों से एक विलुप्तमय जनजाति समूह Particularly Vulnerable Tribal Group (PVTG), “वन राजि / बनरौत” भी रहवासी है. फिलहाल वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की पर्यावरण मूल्यांकन समिति (EAC) ने इस परियोजना के प्रभाव अध्ययन में कुछ आपत्तियों के कारण इस परियोजना को मंजूरी देने से मना किया है. हालाँकि, हमने देखा है कि विकास की वेदी पर पारिस्थितिक सरोकारों का बलिदान कैसे होता आया है और इस बार क्या कुछ नया होगा? इसका कोई कारण नहीं नज़र आता क्योंकि खिसकते पहाड़ और हिमनद कहीं न कहीं ‘विकास’ की होड़ को बतलाते हैं जिसके भुग्तभोगी यहाँ के रहवासी हैं और आगे भी होंगे.
(Report on Proposed Pancheshwar Dam)

नीरज महर

पिथौरागढ़ के रहने वाले युवा नीरज महर, वाइल्ड लाइफ बायोलाजिस्ट हैं. हिमालयी वन्य जीव पर विशेष पकड़ रखने वाले नीरज का यह लेख Daily Pioneer में 27 जुलाई 2019 को अंग्रेजी में प्रकाशित हो चुका है.

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इसे भी पढ़ें: हिमालयी विकास मॉडल और उनसे जुड़ी आपदाएं

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