क्रिकेट में आउट होने का एक तरीका है ‘मैनकैडेड’. इसका मतलब हुआ की गेंदबाजी करते समय अपनी बांह घुमाने के बाद गेंदबाज गेंद डालने के बजाय नॉन-स्ट्राइकर एंड की गिल्लियां उड़ा दे और क्रीज से बाहर होने की सूरत में नॉन-स्ट्राइकर बल्लेबाज आउट हो जाय. यह तरीका एक भारतीय क्रिकेटर के नाम से जुड़ा हुआ है जिसका आज जन्मदिन है. इस महान भारतीय आल-राउंडर ने 1947 के सिडनी टेस्ट में ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी बिल ब्राउन को इस तरीके से आउट किया था.
दिलचस्प बात यह है कि इसी दौरे पर यही खिलाड़ी इसी तरह से इसी गेंदबाज के हाथों आउट हुआ था.
हालांकि ऑस्ट्रेलियाई दिग्गज डॉन ब्रैडमैन ने इस भारतीय आल-राउंडर की तारीफ की थी लेकिन ऑस्ट्रेलिया के मीडिया ने उसकी कड़ी निंदा की. जो भी हो किसी भी बल्लेबाज के इस तरह के आउट होने के साथ यह शब्द जुड़ ही गया. इस भारतीय खिलाड़ी का नाम था मलवंतराय हिम्मतलाल मांकड़ उर्फ़ वीनू मांकड़.
जामनगर में पैदा हुए वीनू मांकड़ भारतीय क्रिकेट इतिहास के श्रेष्ठतम आल-राउंडर्स में से एक थे. वे दाएं हाथ के ओपनिंग बल्लेबाज थे और बाएं हाथ से ऑर्थोडॉक्स गेंदबाजी किया करते थे. वर्ष 1956 में न्यूजीलैंड के खिलाफ मद्रास टेस्ट में बनाया गया उनका 231 का स्कोर बहुत लम्बे समय तक किसी भी भारतीय बल्लेबाज द्वारा बनाया गया सबसे बड़ा व्यक्तिगत स्कोर रहा जिसे वर्ष 1983 में सुनील गावस्कर ने वेस्ट इंडीज के खिलाफ 236 रन बनाकर तोड़ा. इसी पारी में पंकज रॉय के साथ वीनू मांकड़ ने 413 रन की पार्टनरशिप का वर्ल्ड रेकॉर्ड भी बनाया था. इस मैच की दूसरी पारी में वीनू मांकड़ ने 4 विकेट भी लिए और भारत यह टेस्ट एक पारी और 109 रनों से जीता.
इस मैच से चार साल पहले यानी 1952 में इसी मैदान पर भारत की पहली टेस्ट जीत में भी वीनू ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. विपक्षी अंग्रेज टीम के पास वीनू की स्पिन गेंदबाजी का कोई जवाब नहीं था जिन्होंने पूरे मैंच में 12 विकेट लिए और भारत ने मैच एक पारी और आठ रन से जीता.
मांकड अनेक विवादों में भी फंसते रहे. 1952 में इंग्लैण्ड के दौरे के लिए उन्हें टीम से बाहर निकाल दिया गया था क्योंकि वे सेलेक्शन ट्रायल्स के लिए नहीं पहुंचे थे. चूंकि उस समय वे इंग्लैण्ड में लंकाशायर के हैसलिंग्टन क्लब के साथ पेशेवर करार से जुड़े हुए थे वे ट्रायल्स के लिए नहीं पहुँच सके. तत्कालीन चेयरमैन कर्नल सी.के. नायडू मांकड़ के इस बर्ताव से बहुत नाखुश हुए.
इस बात पट जोर देते हुए कि टीम किसी एक खिलाड़ी पर निर्भर नहीं है, नायडू ने कहा था – “हम दर्ज़नों वीनू मांकड़ पैदा कर सकते हैं!”
नायडू के इस बयान के बावजूद दौरे में भारत की दुर्गति हुई. पहले मैंच में भारत की दयनीय हार के बाद वीनू को बुलाया गया. इस मैच में वीनू मांकड़ ने 72 और 184 रनों की पारियां खेलीं और इंग्लैण्ड की दूसरी पारी में पांच विकेट भी लिए.
उल्लेखनीय है की नायडू के उक्त फैसले के बाद वीनू संन्यास लेने का मन बना चुके थे लेकिन देशहित में उन्होंने ऐसा नहीं किया.
उन्होंने 44 टेस्ट के अपने करियर में इकत्तीस की औसत से दो हज़ार से ऊपर रन बनाए और कुल 162 विकेट भी लिए. आज देखने पर ये आंकड़े कुछ ख़ास नहीं लगते लेकिन इस बात पर ध्यान दिया जाय कि उन दिनों भारत की क्रिकेट का स्तर बेहद दयनीय था और यह भी कि वीनू के जीवन के सबसे चमकीली वर्ष द्वितीय विश्वयुद्ध की भेंट चढ़ गए थे, तो आपको इस खिलाड़ी की महानता का बोध हो सकेगा. 1946 में जब उन्होंने भारत के लिए पहला टेस्ट मैच खेला था तो उनकी आयु उनतीस की हो चुकी थी. उनसे बहुत अधिक गेंदबाजी करवाई जाती थी और बैटिंग आर्डर में उनका स्थान हमेशा अनिश्चित रहा करता था. इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने टेस्ट मैचों में पहले से लेकर ग्यारहवें तक सभी स्थानों पर बल्लेबाजी की थी.
आज उन्हें भारत के सर्वकालीन महानतमों में गिना जाता है. एक समय के स्टार बल्लेबाज सलीम दुर्रानी उन्हें अपना आदर्श मानते थे. गुजरात के जामनगर शहर में उनकी मूर्ति आज भी लगी हुई है.
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