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रेशमी सलवार कुर्ता जाली का

14 अप्रैल, 1919 को अविभाजित भारत के लाहौर में पैदा हुईं शमशाद बेगम को गायन का शौक बचपन से ही था. वे अपने स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में गाने के अलावा वे तमाम पारिवारिक मंगल कार्यक्रमों में भी गाया करती थीं. उनके गायन में एक ख़ास तरह की खनक थी जिसने उन्हें एक विशिष्ट गायिका में तब्दील किया. उनका परिवार उनके गायन का विरोधी था अलबत्ता यह विरोध उनकी मार्ग में रोड़े खड़े न कर सका.

उन्होंने अपने धर्म से परे जाकर कुल पंद्रह साल की आयु में एक हिन्दू युवक गणपतलाल से विवाह किया और भारत के विभाजन के बाद बंबई में आकर रहना शुरू कर दिया. परिवार के अन्य सभी सदस्यों से अलग उनके चाचा उन्हें हर समय गाने के लिए प्रोत्साहित किया करते थे. वे ही उन्हें बंबई के एक ग्रामोफोन स्टूडियो में लेकर गए. संगीतकार गुलाम हैदर उस स्टूडियो में पहले से मौजूद थे और वे शमशाद की गायन प्रतिभा से खासे प्रभावित हुए और उन्होंने उनके चमकीले भविष्य की भविष्यवाणी की.

1940 से 1960 के दशक तक उन्होंने अपने गायन से संगीत के रसिकों को सम्मोहित किये रखा और एक से एक गाने गाये. शमशाद बेगम के गाये अमर गीतों में कजरा मोहब्बत वाला, लेके पहला पहला प्यार, मेरे पिया गए रंगून, कभी आर कभी पार, सैंया दिल में आना रे, रेशमी सलवार कुर्ता जाली का, ओ गाड़ी वाले गाड़ी धीरे हांक रे, कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना, पी के घर आज प्यारी दुल्हनिया चली शामिल हैं.

फिल्म मदर इंडिया में नर्गिस

फिल्म ‘मदर इंडिया’ में नर्गिस के लिए गाये गए उनके गीत आज तक फिल्म प्रेमियों के लिए आनंद का स्रोत बने हुए हैं.

विख्यात फ़िल्मी संगीत विशेषज्ञ अशरफ अज़ीज़ ने उन्हें भारत के फिल्म संसार की सबसे मीठी आवाजों में शुमार किया है. सार्वजनिक जीवन से परहेज करने वालीं और अपनी तस्वीरें खिंचवाने से गुरेज़ करने वाली इस महान गायिका का निधन 23 अप्रैल, 2013 को हुआ.

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