गढ़वाल की राजधानी देवलगढ़ से श्रीनगर स्थानान्तरित हो चुकी थी. राजा महिपति शाह की मृत्यु के बाद उनके पु़त्र पृथ्वीपति शाह राज गद्दी के उत्तराधिकारी हुये. उस समय पृथ्वीपति शाह की उम्र महज सात वर्ष की थी. इतनी छोटी उम्र में वे राजकाज कहां संभालते, इस कारण राजमाता कर्णावती ने पृथ्वीपति शाह हेतु राजकाज अपने हाथों में ले लिया.
(Rani Karnavati of Garhwal)
पृथ्वीपति शाह के लिये रानी कर्णावती ने कई सालों तक कुशलता के साथ गढवाल पर शासन किया. रानी कर्णावती ने जहां खेती को सिंचाई के साधनों से उपजाऊ बनाने का काम किया, वहीं सैनिक क्षमता को भी सुदृढ़ करने का काम किया. दुश्मनों को हराते हुए उनके शासन काल में गढ़वाल ने अपनी सीमाओं की सुरक्षा बहादुरी के साथ की थी. उस समय हिन्दुस्तान का बादशाह शाहजहां था.
एक बार शाहजहां की सेना ने सेनापति नजाबत खां के नेतृत्व में तीस हजार घुड़सावार सेना और पैदल सैनिकों के साथ हरिद्वार के रास्ते गढ़वाल राज्य पर हमला कर दिया. रानी ने रणनीतिक सूझ-बूझ के साथ नजाबत खां व उसकी सेना को पहले पहाड़ में प्रवेश करने दिया. मुगल सेना के प्रवेश करने पर गढ़वाली सेना ने पीछे वापिस जाने के रास्ते बंद कर दुश्मन सेना को दोनों तरफ से घेर लिया था और रसद पानी की आपूर्ति बंद कर दी गई.
पहाडों पर भूखी प्यासी थकी सेना आखिर कैसे युद्ध लड़ती. कुछ सैनिक गढ़वाली सेना के हाथों मारे ही गये थे हताश मुगल सेना के सेनापति नजाबत खां ने संधि प्रस्ताव भेजा जिसको ठुकरा दिया गया. रानी ने जीवनदान के लिये शर्त रख दी कि जीवित बचे मुगल सेनिकों को जीवनदान दिया जायेगा पर हमले के अपराध के दण्ड स्वरूप उनकी नाक जरूर काटी जायेगी. जिंदा रहने के लिये आदमी क्या-क्या नहीं करता.
(Rani Karnavati of Garhwal)
आखिर रानी ने मुगल सैनिकों की नाक काट दी और उन्हें वापिस जाने दिया गया. हारा हुआ नाक कटा सेनापति अब बादशाह को कैसे मुंह दिखाता. इस आत्मग्लानि का शिकार हुऐ सेनापति नजाबत खां को खुदकुशी करनी पड़ी. फिर दुबारा आक्रमण करने का साहस मुगल सेना ने कभी नहीं किया. इसी कारण रानी कर्णावती को नककटी रानी भी कहा जाने लगा था. यहां बता देना जरूरी है कि रानी कर्णावती का सिपहसलार मुसलमान था जिनका नाम दोस्त बैग था. यह घटना 1640 ईसवी के आस-पास की है. ऐसी वीरांगना थी रानी कर्णावती.
रानी कर्णावती (1640 ईसवी) से लेकर राजा प्रदीप शाह (1750-80) के कार्यकाल तक दून की राजधानी/मुख्यालय नवादा रही. नवादा नागसिद्ध पहाड़ियों के उत्तरी ढलान पर है. नागसिद्ध पहाड़ी को आज शिवालिक की पहाड़ियां कहा जाता है. इस प्रकार नवादा देहरादून का प्राचीन गांव हुआ. यहां रानी कर्णावती द्वारा एक महल का निर्माण भी कराया गया था. कुछ सालों पहले तक नवादा में इस महल के भग्नावेश ओर मौत की सजा देने वाला स्थान कुआं मौजूद था.
नवादा में उंचाई वाले इस स्थान के नजदीक बामण गांव है निचली तरफ गोरखाली लोग रहते हैं. बामण गांव में तिवारी और उनियाल लोग रहते हैं. उनियाल राजपुरोहित हुए. यहां बसे उनियाल लोगों का मूल गांव टिहरी जिले का टिंगरी गांव है. आज महल कुंआ सब जमींदोज हो गया है. उस जगह पर प्लाटिंग हो गई है. उस जगह केवल प्राचीन कालीन टाइलनुमा ईंटे ही दिखलाई पड़ रही हैं.
(Rani Karnavati of Garhwal)
इस गांव में अभी प्राचीन शिव मंदिर और बंद पडी धर्मशाला यहां के अतीत की याद दिला रही है. इस महादेव मंदिर में श्रावण के महिने देहरादून के कई जगहों से सोमवार को जल चढाने जाया करते थे. महादेव मंदिर के बगल में एक उजड़ा हुआ टीन की छत का कमरा भी है जहां कभी माईयां मतलब संयासिनें निवास करती थी, आज बंद है.
नीचे की तरफ एक प्राचीन कुआं भी अतीत की याद दिला रहा है. इस कुंए के निचली ढलान की तरफ संसारी माता का मंदिर है. यहां गोरखा लोग दशहरे में बलि दिया करते थे. सरकारें रानी कर्णावती के स्मृति चिन्ह महल को बचाने में नाकाम रही हैं. रानी की बनायी नहर भी जमींदोज हो गई हैं. रानी के नाम पर करनपुर और पोते मतलब पृथ्वीपति शाह के पुत्र अज्बू कुंवर के नाम पर अजबपुर गांव अभी तहसील के दस्तावेजों में जरूर मौजूद हैं.
सबंधित तस्वीरें देखिये :
स्रोत- हिमालय परिचय, एटकिन्सन गजेटियर, गजेटियर आफ दून.
(Rani Karnavati of Garhwal)
विजय भट्ट
देहरादून के रहने वाले विजय भट्ट सामजिक कार्यों से जुड़े हैं. विजय ज्ञान और विज्ञान के माध्यम से लोगों को उनके अधिकारों के प्रति सचेत करते हैं.
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कर्णावती ने जहांगीर को राखी भेजी थी इस पर जहाःगीर ने अपनी सेना भेज कर मुगल सेनापति को भगाने दिया था इतिहास के मेरे यही पढ़ा था आप का लिखा इतिहास समझ के परे है ।
जफर आलम इतिहास वह नहीं जो किताबों में लिखा होता है । असली व सही इतिहास वह होता है जो स्थानीय समाज में प्रचलित होता है ।