स्वातंत्रोत्तर भारत में समाजवाद विचारधारा को धार देने में आचार्य नरेन्द्र देव, डॉ. राम मनोहर लोहिया और जय प्रकाश नारायण अग्रणी थे, यद्यपि उस दौर में इस आन्दोलन में मधुलिमये, मधु दण्डवते, जॉर्ज फर्नाण्डीज सरीखे समाजवादियों की जमात भी तैयार हो चुकी थी, ये समाजवादी विचारधारा के प्रबल पोषक भले रहें हों लेकिन गैर कांग्रेसवाद एवं समाजवादी चिन्तन को नई धार देने व पथ-प्रदर्शक की भूमिका आचार्य नरेन्द्र देव, डॉ. लोहिया व जयप्रकाश नारायण के कन्धों पर था. Ram Manohar Lohia
23 मार्च 1910 को अकबरपुर फैजाबाद में जन्मे डॉ. रामनोहर लोहिया की माता जी का स्वर्गवास उनके बाल्यकाल में ही हो गया था, पिता स्वयं भी स्वतंत्रता आन्दोलन के सेनानी थे तथा महात्मा गांधी के सम्पर्क में थे. उनके पिता बालक राममनोहर लोहिया को अपने साथ गांधी जी से मिलने ले जाते, यहीं से वे गांधी जी के सम्पर्क में आये. जमुना लाल बजाज भी एक बार लोहिया जी को गांधी से मिलाने ले गये और गांधी जी का बताया कि यह लड़का राजनीति में आना चाहता है. लेकिन शादी का प्रस्ताव आने पर वे कलकत्ता चले गये. कई अखबारों में लेख लिखकर अथवा विश्वविद्यालयों में व्याख्यान देकर वे इधर-उधर सम्मेलनों में जाने का खर्चा जुटाते.
वर्ष 1934 में आचार्य नरेन्द्र देव की अध्यक्षता में कांग्रेस समाजवादी पार्टी की स्थापना की गयी. डॉ. लोहिया मदन मोहन मालवीय तथा जवाहर लाल नेहरू के सम्पर्क में आ चुके थे लेकिन नेहरू से उनका मतैक्य कम ही रहता. सन् 1942 में कांग्रेस का इलाहाबाद में सम्मेलन हुआ जहां लोहिया ने नेहरू के विचारों का खुलकर विरोध किया. अल्मोड़ा जिला सम्मेलन में तो डॉ. लोहिया ने नेहरू को ‘झट पलटने वाला नट’ तक कहा डाला.
डॉ. लोहिया एक ऐसी व्यवस्था के हिमायती थे, जिसमें पुलिस व सैन्य बल की आवश्यकता ही न पड़े. वे दुनियां के सभी देशों की राजनैतिक आजाद के पक्षधर होने के साथ ही विश्व नागरिकता की बात करते थे, जिसमें किसी भी देश का कोई नागरिक निर्बाध रूप से किसी देश में आ जा सके. वे विश्व सरकार बनाये जाने की बात करते थे, जो एक प्रकार से संयुक्त राष्ट्र संघ की अवधारणा के करीब था.
विश्व सरकार की परिकल्पना पर अपने कार्यकर्ताओं से वे सुझाव लेते रहते. इसी का एक दिलचस्प वाकया प्रताप भैया जो उनकी विचारधारा के अनुयायी थे, ने बताया कि जब लोहिया ने कार्यकर्ताओं से विश्व सरकार के मॉडल पर सुझाव आमंत्रित किये तो वे पानी से चलने घराट कर मॉडल बनाकर उनके पास ले गये, जिसमें पानी काटने वाले फितौड़े प्रत्येक देश का प्रतिनिधित्व करते दिखाये और चलने वाले घराट को विश्व सरकार का प्रतीक. प्रताप भैया बताते थे कि उन्हें यह मॉडल काफी पसन्द आया. Ram Manohar Lohia
डॉ. लोहिया के राजनैतिक दर्शन के साथ ही उनका व्यक्तिगत् जीवन भी कम प्रेरणास्पद नहीं था. उनके फक्कड़पन का अन्दाज इसी बात से लगाया जा सकता है, कि ताउम्र उनका कोई स्थाई पता नहीं था. अकबरपुर का पुश्तैनी मकान टूट चुका था और फर्रूखाबाद से चुनाव लड़ने के बाद यही उनकी कर्मभूमि बन गई. जब लोग उनसे घर बनाने को कहते तो वे जवाब देते हर कार्यकर्ता का घर ही मेरा घर है. चुनाव में नामांकन भरने के लिए जब स्थायी पते की आवश्यकता हुई तो अपने एक कार्यकर्ता का ही घर का पता उसमें लिख डाला. उन्होंने शादी तो नहीं की लेकिन बताया जाता है कि वे किसी महिला के साथ ‘लिव इन रिलेशन’ में रहे लेकिन चोरी छुपे नहीं वे खुलकर इसे स्वीकारते थे.
एक सांसद के रूप में कब वे क्या सवाल उठा दें, यह नेहरू के लिए चुनौतीपूर्ण रहता. उनका कोई भी बयान बिना राजनैतिक नफा-नुकशान का आकलन किये स्पष्ट व बेवाक हुआ करता. कहते है कि जनवरी 1967 में जब कन्नौज लोकसभा सीट से वे चुनाव लड़ रहे थे तो कांग्रेस की सोची समझी चाल के तहत प्रेस कांफ्रेंस में उनसे एक मौलवी से प्रश्न पुछवाया गया कि मुसलमानों में चार बीबियां रखने के बारे में उनकी क्या राय है? वे चाहते तो उत्तर घुमा फिराकर दे सकते थे, लेकिन डॉ. लोहिया ने तपाक से उत्तर दिया “पति के लिए भी पत्नीब्रता होना जरूरी है. एक से अधिक बीबियां कतई नहीं होनी चाहिये.’’ इस बेवाक उत्तर का खामियाजा न केवल उन्हें बल्कि पूरी सोशलिस्ट पार्टी को भुगतना पड़ा और एक समुदाय विशेष का समर्थन न मिलने से उनकी पार्टी का चुनाव सफाया हो गया.
अंग्रेजी के प्रति इसी तरह उनका मत बिना राजनैतिक लाग-लपेट के स्पष्ट था. उन्होंने लोकसभा में बल देकर कहा था – “अंग्रेजी को खत्म कर दिया जाय. मैं चाहता हॅू कि अंग्रेजी का सार्वजनिक प्रयोग बन्द हो. लोकभाषा के बिना लोकराज्य असंभव है. कुछ भी हो अंग्रेजी हटनी ही चाहिये, उसकी जगह कौन सी भाषाऐं आती हैं, यह प्रश्न नहीं है. हिन्दी और किसी भाषा के साथ आपके मन में जो आये सो करें, लेकिन अंग्रेजी तो हटनी ही चाहिये और वह भी जल्दी. अंग्रेज गये तो अंग्रेजी चली जानी चाहिये.’’ लेकिन आजादी के 73 साल बाद भी हिन्दी राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त करने को तरस रही है.
नैनीताल की यादें भी डॉ. लोहिया से जुड़ी हैं, जब यहां उनकी संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के सिपह सालार स्व. नारायण दत्त तिवारी तथा प्रताप भैया के नेतृत्व में स्थानीय ग्रामीणों के श्रमदान से खुटानी-विनायक मोटर मार्ग का निर्माण किया गया. एकदिन में ग्रामीणों के श्रमदान से एक किलोमीटर रोड बनकर तैयार हो गयी और डॉ. राममनोहर लोहिया को इस रोड के उद्घाटन के लिए आमंत्रित किया गया था. Ram Manohar Lohia
इस संबंध में प्रताप भैया रोचक किस्सा बताते थे कि जब पं. गोबिन्द बल्लभ पन्त देश के गृहमंत्री थे, तो वे ओखलकाण्डा तक सड़क बनाने की मांग को लेकर उनसे दिल्ली में मिलने गये. लेकिन पं. पन्त जी ने यह कहकर उनकी मांग अस्वीकार कर दी कि यदि मोटर आ जायेगी तो घोड़े खच्चर वाले बेरोजगार हो जायेंगे. प्रताप भैया बताते है कि उनका यह उत्तर सुनकर मैंने उसी समय उनसे कह दिया कि पन्त जी मैं आपकी धोती धो सकता हॅू लेकिन आपकी जय जयकार नही करूंगा और न भविष्य में क्षेत्र की किसी मांग के लिए आपसे गिड़गिड़ाऊंगा. यह प्रसंग इसलिए कि शायद इसी की परिणति से खुटानी-विनायक मोटरमार्ग श्रमदान से कराने की प्रेरणा मिली.
वर्ष 1967 में प्रोस्टेट के ऑपरेशन के बाद उनकी तबियत बिगड़ती गयी. ऑपरेशन में प्रोस्टेट का संक्रमण बढ़ता गया. लोगों ने विदेश जाकर इलाज करवाने की उन्हें सलाह दी. आज एक सामान्य विधायक छोटी-मोटी बीमारी के लिए उपचार कराने विदेश चला जाता है लेकिन दुर्भाग्य था कि उस समय इसका खर्च 12 हजार रूपये बताया गया जो धनराशि जुटाना उनके सामर्थ्य की बात नहीं थी और सरकारी खर्च पर इलाज करवाना उनके उसूलों के खिलाफ था. परिणाम स्वरूप 12 अक्टूबर 1967 को अल्पायु में ही समाजवादी चिन्तन का यह सितारा असमय अस्त गया. Ram Manohar Lohia
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
भवाली में रहने वाले भुवन चन्द्र पन्त ने वर्ष 2014 तक नैनीताल के भारतीय शहीद सैनिक विद्यालय में 34 वर्षों तक सेवा दी है. आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से उनकी कवितायें प्रसारित हो चुकी हैं.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…
इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …
तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…
उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…