आयरीन रूथ पंत का जन्म 13 फ़रवरी 1905 को सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में डेनियल पंत के घर में हुआ. आयरीन पंत एक ऐसे कुमाऊनी ब्राह्मण परिवार से थीं जिसने धर्मान्तरण कर ईसाई धर्म स्वीकार लिया था. आयरीन पंत के दादा तारादत्त पंत ने 1874 में ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था. तारादत्त पंत एक जाने-माने वैद्य थे और ऊंची धोती के कुलीन ब्राह्मण भी. अल्मोड़ा के ब्राह्मण समुदाय ने तब तारादत्त पंत के परिवार को मृत घोषित कर दिया था. यह समुदाय उनके धर्मांतरण से इतना क्षुब्ध हुआ था कि उनका श्राद्ध तक कर डाला.
(Raana Liaquat Ali Khan Hindi)
आयरीन पंत की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई अल्मोड़ा और नैनीताल में हुई और उसके बाद उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए वे लखनऊ चली गयीं. लखनऊ के इसाबेल थोबर्न कॉलेज से आयरीन ने अर्थशास्त्र और अध्यात्मिक अध्ययन की डिग्री ली. एमए की क्लास में वे अकेली लड़की थीं. 1927 में वे लड़की होने के बावजूद साइकिल चलाया करती थीं, जो उस दौर में बहुत दुर्लभ था. लड़के उनको परेशान करने के लिए उनकी साइकिल की हवा निकाल देते थे. लखनऊ में जब आयरीन अपनी डिग्री पूरी कर रही थीं तभी बिहार भीषण बाढ़ की चपेट में आ गया. कई अन्य छात्रों के साथ आयरीन बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए नाटकों व सांस्कृतिक कार्यक्रमों के जरिये पैसा इकठ्ठा करने की मुहीम में जुट गयीं. इसी दौरान फंड जुटाते हुए उनकी मुलाकात लियाक़त अली खाँ से हुई. सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए फंड जुटाने की गरज से आयरीन पंत टिकट बेचने के लिए लखनऊ विधानसभा पहुंची जहां उनकी मुलाकात लियाक़त से हुई. लियाक़त अली खाँ इसलिए टिकट नहीं खरीदना चाहते थे कि कार्यक्रम में साथ आने के लिए उनके पास कोई नहीं है, तब आयरीन ने उनसे कहा कि अगर वे अकेले ही रहे तो वे कार्यक्रम में लियाक़त अली के साथ बैठ जाएँगी. इस तरह दोनों की पहली मुलाक़ात हुई. कौन जानता था कि यही लियाक़त अली खाँ आगे चलकर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनेंगे और आयरीन रूथ पंत उनकी बेगम और मादर-ए-पकिस्तान.
लखनऊ से पढ़ाई करने के बाद आयरीन दिली के इन्द्रप्रस्थ कॉलेज में प्रोफ़ेसर बन गयीं. इसी दौरान लियाक़त खाँ को उत्तर प्रदेश विधानसभा का अध्यक्ष चुना गया. आयरीन ने इस मौके पर लियाक़त खाँ को बधाई संदेश भेजा. इस संदेश का लियाक़त ने धन्यवाद जताकर जवाब दिया और इस बात पर हैरानी भी जताई कि उन्हें आयरीन के दिल्ली में होने की जानकारी नहीं थी. उन्होंने आयरीन रूथ पंत को लिखा — “मुझे जान कर ख़ुशी हुई कि आप दिल्ली में रह रही हैं क्योंकि ये मेरे पुश्तैनी शहर करनाल के बिल्कुल पास है. जब मैं लखनऊ जाते हुए दिल्ली हो कर गुज़रूँगा तो क्या आप मेरे साथ कनॉट प्लेस के वेंगर रेस्तरां में चाय पीना पसंद करेंगी? आयरीन ने लियाक़त का न्यौता स्वीकार कर लिया. इस तरह दोनों की मुलाकातों का जो सिलसिला शुरू हुआ वह प्रेम और शादी तक पहुंचा.
लियाक़त अली खाँ पहले से न सिर्फ शादीशुदा थे बल्कि उनका बेटा विलायत अली ख़ाँ भी था. उन्होंने अपनी चचेरी बहन जहाँआरा से शादी की थी. लेकिन लियाक़त खाँ आयरीन के बुलंद व्यक्तित्व के मोहपाश में ऐसे बंधे कि उनसे शादी करने की इच्छा जताई. आखिरकार थोड़े उतार-चढ़ावों के बाद 16 अप्रेल 1933 को आयरीन और लियाक़त विवाह बंधन में बंध गए. यह शादी दिल्ली के सबसे आलीशान होटल मेंडेस में हुई. जामा मस्जिद के इमाम ने उनका निकाह पढ़वाया था. आयरीन ने इस्लाम धर्म क़बूल कर लिया और उनका नया नाम गुल-ए-राना रखा गया. 1947 में गुल-ए-राना लियाक़त खां और अपने दो बेटों अशरफ और अकबर के साथ दिल्ली के वेलिंगटन हवाई अड्डे से डकोटा विमान में कराची के लिए रवाना हुईं. आज़ादी और विभाजन के बाद लियाक़त अली खाँ पकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री बने और राना पकिस्तान की मादर-ए-वतन (फर्स्ट लेडी). उन्हें मंत्रिमंडल में अल्पसंख्यक और महिला मंत्री के तौर पर भी जगह दी गयी.
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चार साल बाद ही जब 16 अक्टूबर 1951 को रावलपिंडी में एक सभा को संबोधित करने के दौरान जब लियाक़त अली खाँ की हत्या कर दी गयी तो लोग सोचने लगे कि राना अब भारत वापस जाने का फैसला लेंगी. लेकिन राना अलग ही मिट्टी की बनीं थीं. लियाक़त की मौत के बाद शुरू में वे थोड़ा परेशान भी थीं. उनके पास लियाक़त की छोड़ी हुई संपत्ति या बैंक बैलेंस नहीं था. लियाक़त ने विभाजन के बाद अपनी दिल्ली वाली जायदाद बेचने के बजाय पाकिस्तान को दान दे दी थी, इसे आज भी पकिस्तान हाउस के नाम से जाना जाता है जहां भारत में पकिस्तान के राजदूत रहा करते हैं. लियाक़त की मौत के समय राना के पास सिर्फ 300 रुपये नगद थे. पकिस्तान सरकार ने उन्हें 2000 रुपये महीना देना शुरू किया. बाद में उन्हें हॉलेंड और इटली में पाकिस्तान का राजदूत बनाकर भेजा गया, इसके बाद उनकी गाड़ी चल निकली. हॉलैंड की रानी की उनसे दोस्ती हो गई. हॉलैंड ने उन्हें अपना सबसे बड़ा नागरिक सम्मान ‘औरेंज अवॉर्ड’ भी दिया. उन्होंने अपने आख़िरी वक़्त तक पाकिस्तान में रहकर महिला अधिकारों की लड़ाई लड़ी और कट्टरपंथियों के खिलाफ भी मोर्चा लिया. उन्होंने जियाउल हक़ के खिलाफ भी मोर्चा लिया. जब भुट्टो को फांसी दी गयी तो राना ने सैन्य तानाशाही के खिलाफ अभियान और तेज कर दिया. उन्होंने ज़ियाउल हक़ द्वारा इस्लामिक कानून लागू किये जाने के खिलाफ भी लड़ाई लड़ी.
आयरीन पंत ने अपने 86 वर्ष के जीवन का आधा हिस्सा भारत और आधा पकिस्तान में बिताया. उन्होंने इतिहास बनते देखा और इस प्रक्रिया में भी शामिल रहीं. आइरीन को पाकिस्तान में मादर-ए-वतन का खिताब मिला. जुल्फिकार अली भुट्टो ने उन्हें काबिना मंत्री बनाया और वह सिंध की गर्वनर और कराची यूनिवर्सिटी की पहली महिला वाइस चांसलर भी बनी. इसके अलावा वह नीदरलैंड, इटली, ट्यूनिशिया में पाकिस्तान की राजदूत रहीं. उन्हें 1978 में संयुक्त राष्ट्र ने ह्यूमन राइट्स के लिए सम्मानित किया.
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