समाज

पिथौरागढ़ में पुरानी बाजार और आजादी से पहले फुटबाल मैदान

1920 के दशक में पिथौरागढ़ की बाजार में केवल तीस-बत्तीस दुमंजिले मकान हुआ करते थे. इन घरों के निचली मंजिल पर छोटी-छोटी दुकानें हुआ करती थी.

सिमलागैर से नीचे आज जिसे हम पुराना बाजार या सुनार गली के नाम से जानते हैं बीसवीं सदी में यही पूरे पिथौरागढ़ का केंद्र हुआ करता था यही इस शहर की मुख्य बाजार थी.

इतिहासकारों का मानना है कि पिथौरागढ़ का पुराना बाजार ही पहले पुराना शहर था. इसमें अधिकांश रूप से दुकानें हुआ करती थी. जो बजेटी, चंडाक जैसे आस-पास के गांव वालों की हुआ करती थी. ये लोग दिन में दुकान खोलते और शाम को अपने गांवों को निकल जाते.

1920 के दशक में यहां शिवधारे के पास कुमैया शिवलाल साह की मिठाई की दुकान, बगल में ऊपर को जयभान मेहरा, भवान दास साह, रामकिशन साह, जयलाल खत्री, मीर साहब के साथ साथ दयाराम खर्कवाल व कुछ सुनारों व पटुओं की दुकानें थी.

साथ ही एक कतार में बंजारों व घोड़ियों के रुकने के लिये सराय व फड़ थे. बजेटी में घोड़ों के चरने का एक ढालू मैदान था यहीं पर तब यहां बजेटी मिडिल स्कूल खुला था.

1940 के दशक में खीम सिंह सौन, त्रिलोक बसेड़ा, भैरव जंग थापा आदिने मिलकर एक फुटबाल टीम बनाई थी जिसका नाम स्टेशन टीम था. संभवतः यह पूरे पिथौरागढ़ शहर की पहली फुटबाल टीम थी. फुटबाल के शुरूआती मुकाबले स्टेशन टीम हाईस्कूल टीम के बीच हुआ करते थे. हाईस्कूल टीम जार्ज कारोनेशन हाईस्कूल की टीम को कहा जाता था.

घुड़साल-बजेटी, टकाना-चौड़, धपड़पट्टा, लिंठूड़ा-रई-चटकेश्वर, कुमौड़, बिण, चौंसर, सलेटी, झौलखेत आदि इस शहर के सबसे पुराने फुटबाल के मैदान हैं हालांकि फ़ुटबाल टूर्नामेंट हमेशा से देवसिंह मैदान पर ही होते रहे हैं. फुटबाल का सीजन जुलाई से सितम्बर अंत तक रहता था. देवसिंह मालदार ट्राफी, जनरल करियप्पा सील्ड, महर कप आदि यहाँ के मुख्य रनिंग कप हुआ करते थे.

पहाड़ पत्रिका में ललित पंत के लेख़ के आधार पर.

-काफल ट्री डेस्क

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Girish Lohani

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  • मैं काफल tree के पूरी टीम को उनके सार्थक प्रयासों के लिए और पहाड़ में जन जागरूकता बढ़ाने के लिए धन्यवाद देता हूं वर्तमान समय में केंद्र सरकार बहुत सी लाभकारी योजनाओं को लॉन्च कर रही है परंतु इन असंख्य योजनाओं का कुमाऊं क्षेत्र से कोई वास्ता नहीं है दरअसल पहाड़ का केंद्र से वास्तविकता में कोई संबंध ही नहीं है तभी तो आज पहाड़ की हालत बद से बदतर हो चुकी है सरकार योजनाओं की शुरुआत तो बड़ी धूमधाम से करती है परंतु वह यह जानने की कोशिश नहीं करती किस का लाभ देश के प्रत्येक नागरिक को पहुंच रहा है या नहीं और पहाड़ में तो लोगों को इन योजनाओं का नाम ही नहीं पता तो लाभ तो बहुत दूर की बात है आज केंद्र सरकार अथवा राज्य सरकार दोनों ही निरर्थक साबित हुई है

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