पिछले वर्ष आज ही के दिन हिमालय पुत्र प्रो. खड्ग सिंह वल्दिया निधन हुआ था. प्रो. खड्ग सिंह वल्दिया का जाना उत्तराखंड के लिये एक अभिभावक के जाने के समान था. आधिकारिक कागजों में उनका जन्मदिन 20 मार्च है पर उनके करीबी इस बात को जानते हैं कि उनका जन्म भी आज ही के दिन बर्मा के कलौ नगर में हुआ था. प्रो. वल्दिया का पूरा जीवन हमारे पहाड़ की तरह खुरदुरा पर मजबूत रहा है. प्रो. वल्दिया की पहली पुण्यतिथि पर पढ़िये उन्होंने आत्मकथा ‘पथरीली पगडंडियों पर‘ में अपने गृहनगर पिथौरागढ़ में घटी तीन महत्वपूर्ण घटनाओं को कैसे बयाँ किया है. इसमें पहली घटना 15 अगस्त 1947 के दिन पिथौरागढ़, दूसरी महात्मा गांधी के निधन के दिन पिथौरागढ़ और तीसरी घटना सेनानायक जनरल करिअप्पा के पिथौरागढ़ आने की है.
(Prof. Kharak Singh Valdiya 2021)
आखिर पन्द्रह अगस्त 1947 को भारत माता की गुलामी की जंजीरें टूट गयी. उस दिन पिथौरागढ़ नगर में जन-समुद्र उमड़ आया था. गाँव-गाँव से आये लम्बे-लम्बे जुलूस, ढोल-नगाड़े बजाते हुए छलिया नर्तकों की टोलियों के साथ. उल्लास और उन्मेष का पारावार न था. हमारे घर में स्वतंत्रता सेनानी जमन सिंह वल्दिया जी, लक्ष्मण सिंह महर जी, चन्द्रशेखर जोशी जी आदि का मिलन कभी न भूल पाऊँगा. नेताजी ने नारा लगाया था, ‘चलो दिल्ली. लाल किले में तिरंगा लहरायेंगे.’ आज पंडित जवाहरलाल नेहरू लाल किले पर स्वतंत्र भारत का राष्ट्र ध्वज फहरा रहे हैं. मन बल्लियों उछल रहा था. पैर ज़मीन पर पड़ते ही न थे.
उन दिनों पिथौरागढ़ में दो-एक व्यक्तियों के ही घर रेडियो थे- दो-दो बैटरियों से चलने वाले रेडियो. एक दिन देखा पुराने डाक बंगले के बरामदे पर रेडियो रखा हुआ और आँगन में बैठकर भीड़ समाचार सुन रही है. रेडियो था नगर के संभ्रांत एवं प्रसिद्ध वकील गंगाराम पुनेठा जी का. आँगन की भीड़ में हम बच्चे भी शरीक हो गये. सुना पंडित नेहरू भर्राये हुए स्वर में, रुआंसी आवाज़ में बोल रहे हैं “प्रकाश बुझ गया है और चारों तरफ़ अँधेरा छा गया है। हमारे प्यारे नेता राष्ट्रपिता बाबू नहीं रहे… अभी-अभी मैंने कहा कि रोशनी चली गयी है. मगर मैं गलत कह रहा था. वह प्रकाश जिसने देश को कई-कई बरसों से रोशन किया, वह रोशनी अभी सालों-साल मुल्क को रोशन करती रहेगी, और दुनिया के करोड़ों लोगों को शान्ति देती रहेगी…”.
नगर के घर-घर में मातम फैल गया. कई घरों के चौकों में आग नहीं जली. बड़ी मार्मिक घड़ी थी, भुलाये नहीं भूलती.
(Prof. Kharak Singh Valdiya 2021)
पिथौरागढ़ की एक और अविस्मरणीय, शायद ऐतिहासिक घटना थी भारतीय स्थल सेना के सेनानायक जनरल करिअप्पा का आगमन. पता नहीं कैसे घाट का पुल पार कर उनकी जीप पिथौरागढ़ पहँची. जनरल करिअप्पा स्वयं जीप चला रहे थे. उनके बगल में बैठे थे जनरल विलियम्स. पुराने बंगले के आँगन में नगर के सम्भ्रान्त नागरिकों ने उनका स्वागत किया. सोल्जर्स बोर्ड के सैक्रेटरी कैप्टन शाही ने नागरिकों का परिचय कराया. कस्टम-डिजाइन सूट पहने मालदार दानसिंह बिष्ट जी ने अपना फैल्ट हैट उतार कर बड़ी अदा से उनका अभिनन्दन किया था.
अगले दिन खेल के मैदान में विशाल भीड़ इकट्ठा हुई थी. सम्पूर्ण पिथौरागढ़ प्रदेश (आज का पूरा जिला) के कोने-कोने से सेवानिवृत्त और सक्रिय सैनिक आये, परिवार सहित. फील्ड खचाखच भरा था. अनेक स्थानों से छलिया नर्तकों के दल आये. प्रत्येक दल अपने में अनूठा था. हर टोली ने अपने-अपने कौशल दिखाये. जनरल करिअप्पा प्रत्येक दल से मिले और प्रत्येक को सौ-सौ रुपयों की बख्शीश दी. जब जनरल ने अपना सम्बोधन आरम्भ करते हए कहा, ‘प्यारे जवानों और जवानियों’ तो आह्लाद से बजी तालियों की गड़गड़ाहट से सारा वायुमण्डल गूंज उठा. अदभुत उत्साह था, उमंग थी, अभूतपूर्व उल्लास था. वैसी सभा अपने जीवन में फिर कभी नहीं देखी.
(Prof. Kharak Singh Valdiya 2021)
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