सालों पहले की बात है. राज कपूर क्लासिक ‘मेरा नाम जोकर’ की नाकामी के बाद लव स्टोरी ‘बॉबी’ (1973) बना रहे थे. विलेन के लिए छोटी सी जगह थी. उन्हें याद आये प्रेम चोपड़ा. अब तक प्रेम उपकार, दो रास्ते, पूरब और पश्चिम आदि दर्जन भर से ऊपर फ़िल्में करके बहुत लोकप्रिय हो चुके थे.
प्रेम चोपड़ा से राज साब का बहुत करीबी रिश्ता भी था. साढ़ू भाई थे दोनों. यानी राजसाब की पत्नी कृष्णा की छोटी बहन उमा से शादी हुई थी उनकी. प्रेमनाथ और राजेंद्र नाथ उनके साले थे. मगर प्रेम चोपड़ा फिल्मों में अपने दम पर थे। राज साब के साथ वो पहली बार फिल्म कर रहे थे.
बहुत खुश थे प्रेम कि एक बड़े फ़िल्ममेकर के साथ काम करने का मौका मिला है. मगर राज साब ने जब उन्हें रोल सुनाया तो प्रेम का दिल बैठ गया. बहुत मायूस हुए वो. सिर्फ़ एक लाईन बोलनी है – प्रेम नाम है मेरा, प्रेम चोपड़ा.ये क्या बात हुई? उन्होंने राज साब से बहुत रिक्वेस्ट की, एक लाईन और दे दीजिये. लेकिन राज साब नहीं माने. बाकी तो तुम्हारा चेहरा बोलेगा. पक्के बदमाश दिखोगे तुम. प्रेम को यक़ीन नहीं हुआ। बड़े साले साहब प्रेमनाथ के पास दरयाफ़्त लेकर गए. प्रेमनाथ बहुत बड़ी भूमिका कर रहे थे बॉबी में.बोले, राज साब ने कुछ सोच कर ही तुम्हें ये रोल दिया होगा. तुम इफ़ेक्ट देखना बस. उन पर यक़ीन करो और ख़ुद को उनके हवाले कर दो.
प्रेम का मन हुआ कि छोड़ दें फ़िल्म को.लेकिन उनकी पत्नी ने समझाया। राजसाब बड़े आदमी हैं, गुणी हैं।.लोग तरसते हैं उनके साथ काम करने को। प्रेम भारी मन से मान गए. शूटिंग हुई और फिर कुछ दिनों बाद फ़िल्म रिलीज़ हो गयी। बाकी तो हिस्ट्री है.
प्रेम चोपड़ा का पांच मिनट की भूमिका और ये वन लाईन डॉयलाग हिट हो गया – प्रेम नाम है मेरा, प्रेम चोपड़ा.
आगे चल कर प्रेम चोपड़ा की कई फ़िल्में उनके वन लाईन डायलॉग के कारण याद की गयीं. मैं वो बलां हूं, जो शीशे से पत्थर को तोड़ता है (सौतन)…नंगा नहायेगा क्या और निचोड़ेगा क्या( दूल्हे राजा)…भैंस पूंछ उठायेगी तो गाना तो नहीं गायेगी, गोबर ही करेगी (आज का अर्जुन)… अजगर नाम है मेरा, मैं खाता नहीं हूं, निगल जाता हूं (बेवफ़ा से वफ़ा)… तुम तो जानते हो मैंने हर जानवर से कुछ न कुछ सीखा है (जवाब)… लिस्ट बहुत लंबी है.
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