प्रमोद साह

मेरे हिस्से के चंडी प्रसाद भट्ट

यह वर्ष 1986 था जब मैं द्वाराहाट जैसे ग्रामीण पृष्ठभूमि से बी.ए पास कर आगे इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई का इरादा रखकर, इलाहाबाद गया. लेकिन सत्र के 2 साल विलंब होने के कारण वहां प्रवेश पाना संभव नहीं था, तब वापस लौटना पड़ा. तब तक कुमाऊं यूनिवर्सिटी में उस वर्ष प्रवेश का समय बीत चुका था. इधर साल बर्बाद होने का भय.

डिग्री कॉलेज में मेरे गुरु ओमप्रकाश गंगोला जी ने मुझे इलाहाबाद के लिए भी साधन मुहैया कराया. और अब जब गाड़ी फंस गई,  तो उन्होंने ही खोज बीन कर पता लगाया कि गढ़वाल यूनिवर्सिटी में अभी एल.एल.बी में प्रवेश का समय बाकी है. उन दिनों टेलीफोन की आज जैसी सुविधा नहीं थी, इस कारण संपर्क साधना कठिन था. तब गोपेश्वर डिग्री कॉलेज में एडमिशन का मन बनाया .

लेकिन वहां कोई जान पहचान नहीं थी. जहां जाएं और सहारा पाएं ऐसे में ओमप्रकाश गंगोला जी, जो पहले गोपेश्वर डिग्री कॉलेज में सेवा दे चुके थे, ने दशोली ग्राम स्वराज मंडल के श्री चंडी प्रसाद भट्ट जी के नाम एक सादे लिफाफे में पत्र लिखा, जिसमें दो-चार दिन मुझे संस्था में सहारा देने का आग्रह किया गया था. उन दिनों हमने कंपटीशन की तैयारी शुरू कर दी थी हमारी जानकारी में था, कि श्री चंडी प्रसाद भट्ट जी को 1982 में रमन मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त हो चुका है.

रमन मैग्सेसे पुरस्कार जैसे बड़े पुरस्कार से सम्मानित व्यक्ति के लिए पत्र और वहां रुकने की बात से मैं नर्वस था, मन में कई प्रकार की आशंकाएं थी. इतने बड़े व्यक्ति से कैसे बात करूंगा और वहां कैसे रहूंगा. एक संकोची पहाड़ी छात्र के लिए यह बड़ी समस्या थी, लेकिन जैसे तैसे हिम्मत कर वह पत्र अपने पास संभाल लिया और सुबह गोपेश्वर के लिए उपलब्ध एक मात्र बस रानीखेत- गोपेश्वर बस में गोपेश्वर के लिए एक बिस्तर बंद और एक टीन का बॉक्स लेकर सवार हो गया, यह अपने घर से बाहर निकलने की दूसरी बड़ी यात्रा थी.पहली यात्रा इलाहाबाद की थी जिसने जोश ठंडा कर दिया था.

उन दिनों रानीखेत गोपेश्वर की बस, बस कम, और सब्जी का ट्रक ज्यादा थी. छत और बस का पिछला हिस्सा सब्जी से भरा रहता था. पंडवा खाल के बाद हर छोटे स्टेशन में ड्राइवर साहब गाड़ी रोक रोक कर सब्जी का ब्यापार करते थे. जगह-जगह सब्जी उतारने चढ़ाने से बहुत विलंब हो गया था और शाम 4:30 बजे करीब गोपेश्वर पहुंचा.

एक छोटा यह एक पर्वतीय कस्बा,  चौराहे पर चंद्र पान की दुकान, मंदिर मार्ग पूछा गया,  खुद ही वह बॉक्स और बिस्तर लेकर कोई 200 मीटर की दूरी पर दशोली ग्राम स्वराज मंडल के प्रांगण में पहुंच गया वहां कार्यालय प्रांगण में तिवारी जी मिले, मैंने पत्र उन्हें दिया अंदर कार्यालय में श्री चंडी प्रसाद भट्ट जी से मिलना हो गया. शांत छवि हल्की सफेद दाढ़ी मुख मंडल की आभा बढ़ा रही थी. उन्होंने पत्र पढ़कर बड़ी आत्मीयता से मुझसे कुशल क्षेम पूछते हुए नाम पूछा और आदरणीय गंगोला जी की कुशल क्षेम भी जानी.पास के छोटे कमरे में मेरा ठिकाना बन गया जहां में लगभग एक सप्ताह रहा.

चंडी प्रसाद भट्ट

डिग्री कॉलेज में एडमिशन हुआ तो लोकल गार्जियन के नाम पर भी भट्ट जी ने सहमति दी. इस प्रकार श्री चंडी प्रसाद भट्ट जी मेरे गांव से बाहर वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने मुझे सहारा दिया और यह एहसास भी नहीं होने दिया की वह एक अंतरराष्ट्रीय छवि के व्यक्ति हैं. उनके छोटे पुत्र ओमप्रकाश भट्ट मेरे हम उम्र ही थे शीघ्र उनसे दोस्ताना संबंध हो गए. एक सप्ताह बाद मैंने अपना ठिकाना बदल लिया लेकिन दशोली ग्राम स्वराज मंडल में लगातार आना जाना बना रहा पर्यावरण और उसके कामों की समझ उन दिनों थी नहीं,  जो धीरे-धीरे यहां विकसित हुई.

उसी साल 1986 नवंबर के महीने में पीपलकोटी के पास बेमरू नामक गांव में 3 दिन का पर्यावरण कैंप लगा. मैं भी उत्सुकतावस उस कैंप में गया. कैंप की भागीदारी मेरे जीवन की महत्वपूर्ण घटना थी जहां मुझे दुनिया को सामाजिक नजरिए से देखने का मौका मिला और यह सोच भी विकसित हुई भले ही हम एक व्यक्ति हैं लेकिन जब तक सामूहिक रूप से समाज के विषय में नहीं सोचते और समूह में काम करने का हमें अभ्यास नहीं है तब तक हम समाज के लिए कोई महत्वपूर्ण कार्य कर भी नहीं सकते. उस कैंप में सामूहिक कार्यों का महत्व मुझे पता चला साथ ही यह भी पता चला कि बाहर से हरी भरी देखने वाली दुनिया कितने कठिन पर्यावरण के संकट से गुजर रही है और कैसे अंतरराष्ट्रीय शख्सियत के व्यक्ति इस पृथ्वी की हरियाली और पर्यावरण के लिए चिंतित हैं.

पर्यावरण की थोडा समझ उसके महत्व का आंतरिक बोध इस कैंप के जरिए मुझे हासिल हुआ.  बाद में सोनला आदि दो-तीन अन्य स्थानों पर भी यह पर्यावरण कैंप करने का अवसर प्राप्त हुआ. यहां मेरी मुलाकात उन दिनों वाइल्डलाइफ के नामी फोटोग्राफर नरेश बेदी से हुई, अनुपम मिश्र,  श्री अनिल अग्रवाल जिन्होंने पर्यावरण के क्षेत्र में बेहतरीन कार्य किया, जैसी शख्सियतों से भी यहां मिलना हुआ.  कैंप में कई विदेशी मेहमानों की भी भागीदारी थी.

कैंप की दिनचर्या बहुत सामान्य थी. सुबह की प्रार्थना के बाद तय कार्यक्रम के अनुसार आसपास के गांव के जंगल में वृक्षों की देखभाल तथा वहां हो रहे परिवर्तनों पर बात होती थी दिन में परिचर्चा का सत्र जिसमें इस अवधि में देश, दुनिया के पर्यावरण में हो रहे परिवर्तन और उनके परिणामों पर चर्चा होती थी. साथ ही पर्यावरण संरक्षण की दिशा में किए गए महत्वपूर्ण कार्यक्रमों का रात्रि में स्लाइड शो होता था. प्रार्थना और भजन भी कैंप की दिनचर्या के अनिवार्य हिस्से थे. यहां सभी लोग भोजन आदि के बाद अपने बर्तन आदि धोने का कार्य खुद ही करते थे. कैंप के सभी प्रतिभागी बराबरी के भाव से रहते थे.  कुल मिलाकर बहुत नजदीक से ग्रामीण जीवन ऐसे कैंप को समझने का मौका मिला,  यह भी कि दुनिया में विकास की अवधारणा ने कैसे पर्यावरण का संकट का खड़ा किया है. जिन बड़ी और महानतम हस्तियों का कैंप में आना होता था उन सब में एक सामान्य बात यह थी कि सब बड़े सादगी पसंद थे. सब के साथ बराबरी और सम्मान का व्यवहार करते थे.

इन कैंपों में प्रतिभाग करने से मेरे व्यक्तिगत नजरिए में समाज और सामूहिकता का दृष्टिकोण शामिल हुआ, बड़े फलक पर सोचने का अभ्यास बढ़ा जिसने आगे चलकर मेरी जीवन की बहुत सी कठिन परिस्थितियों को सरल बना दिया .

यह बात भी बहुत प्रभावित करती रही कि गांधीवादी, सर्वोदयी कर्म के सिद्धांत में चकाचौंध और दिखावे के लिए कोई स्थान नहीं है. सब कुछ चुपचाप और सामूहिकता के धर्म से किया जाना ही गांधी का रास्ता है.

बाद के दिनों में भी श्री चंडी प्रसाद भट्ट जी से लगातार मिलना होता रहा. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इनकी पहचान बढ़ती गई, पदमश्री,  पद्मभूषण,  गांधी शांति प्रतिष्ठान पुरस्कार सहित कई अन्य अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिलते गए लेकिन श्री चंडी प्रसाद भट्ट जी का सादगी भरा प्रेरक व्यक्तित्व सदा पूर्ववत बना रहा. चंडी प्रसाद जी के सानिध्य में रहना एक विद्यालय की सी यात्रा है जहां आप लगातार कुछ न कुछ सीखते रहते हैं. श्री चंडी प्रसाद भट्ट जी को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार मिलना हम सबके लिए खुशी एवं गर्व की बात है इस मौके पर मैं उनके उत्तम स्वास्थ्य की कामना करता हूं. बहुत शुभकामनाएं.

प्रमोद साह
हल्द्वानी में रहने वाले प्रमोद साह वर्तमान में उत्तराखंड पुलिस में कार्यरत हैं. एक सजग और प्रखर वक्ता और लेखक के रूप में उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफलता पाई है. वे काफल ट्री के नियमित सहयोगी.

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