Featured

घर पर ऐसे बनता था उत्तराखंड में पिठ्या

उत्तराखंड में सभी मांगलिक कार्यों की शुरुआत पिठ्या लगाकर ही होती है. पिठ्या को यहां अत्यंत शुभ माना जाता है. वर्तमान में पिठ्या जिसे रोली भी कहा जाता है, बाजार में आसानी से मिल जाता है लेकिन उत्तराखंड के गावों में आज भी पिठ्या घर पर ही बनाया जाता है.

पिठ्या बनाने के लिए कच्ची हल्दी, पहाड़ी निम्बू जिसे पहाड़ों में चूक कहा जाता है और सुहागा या बोरेक्स की आवश्यकता होती है. पिठ्या बनाने के लिए जिस रीति का प्रयोग किया जाता है उसे अग्निपाक और भानूपाक रीति कहा जाता है. अग्निपाक का अर्थ आग में पकाने से है और भानूपाक का अर्थ सूर्य में सुखाने से है.

पिठ्या बनाने का कार्य प्रायः सुहागन महिलाएं ही करती हैं क्योंकि पुराने समय में इसी का प्रयोग सिंदूर के रूप में भी होता था. पिठ्या का माह सामन्य रूप से पौष का माह माना जाता है. इसके अतिरिक्त इसे अन्य किसी शुभ दिन ही बनाया जाता है.

जिस घर पर पिठ्या बनता है उस दिन पिठ्या बनने वाली महिला उपवास रखती हैं. पिठ्या जो अत्यंत शुद्ध मानने के कारण इसे ख़ास विधि द्वारा ही बनाया जाता है.

सबसे पहले कच्ची हल्दी को साफ़ कर धोया जाता है. इसके बाद कच्ची हल्दी को एक बड़े बर्तन में उबाला जाता है. इसे इतना उबाला जाता है कि हल्दी के छिल्के आसानी से निकल जायें.

इसके बाद कच्ची हल्दी के छिलके उतार कर रख दिया जाता है. इसके बाद थोड़ा सुहागा या बोरेक्स सिलपट्टे में पीसा जाता है. बोरेक्स एक प्रकार का सफेद यौगिक होता है जो हल्दी के साथ मिलकर लाल रंग देता है.

सिलपट्टा पहाड़ों में मसाला पीसने वाला एक पत्थर होता है. इसमें पिठ्या की हल्दी को पीसने से पहले पूरी सफाई से धोया जाना बहुत जरुरी है. सिलपट्टे में कच्ची हल्दी पीसने से अधिक उपयुक्त शब्द कच्ची हल्दी को थेचना है.

जब कच्ची हल्दी थेच ली जाय तो चूक का रस निकाला जाता है. चूक का रस इसमें रंग पक्का करने के लिये मिलाया जाता है. इसके बाद चूक के रस, थेची हुई कच्ची हल्दी और थोड़े बोरेक्स या सुहागा को एक साथ मिलाया जाता है.

इसे अच्छी तरह से मिलाने के बाद धूप में सुखाया जाता है. धूप में इसे अगले एक हफ्ते तक हर रोज सुखाया जाता है. रात के समय इसे हर रोज मंदिर में ही रखा जाता है.

एक हफ्ते बाद इसका रंग लाल होता है और हल्दी के सख्त लाल टुकड़ों को अब फिर से सिलपट्टे में पीसकर तैयार हो जाता है पिठ्या.

फोटो: मेरा पहाड़ फेसबुक पेज से

– काफल ट्री डेस्क

वाट्सएप में काफल ट्री की पोस्ट पाने के लिये यहाँ क्लिक करें. वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री के फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online

इसे भी पढ़ें- पिछौड़ा उत्तराखण्ड का एक पारम्परिक परिधान

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Girish Lohani

Recent Posts

‘पत्थर और पानी’ एक यात्री की बचपन की ओर यात्रा

‘जोहार में भारत के आखिरी गांव मिलम ने निकट आकर मुझे पहले यह अहसास दिया…

3 days ago

पहाड़ में बसंत और एक सर्वहारा पेड़ की कथा व्यथा

वनस्पति जगत के वर्गीकरण में बॉहीन भाइयों (गास्पर्ड और जोहान्न बॉहीन) के उल्लेखनीय योगदान को…

3 days ago

पर्यावरण का नाश करके दिया पृथ्वी बचाने का संदेश

पृथ्वी दिवस पर विशेष सरकारी महकमा पर्यावरण और पृथ्वी बचाने के संदेश देने के लिए…

6 days ago

‘भिटौली’ छापरी से ऑनलाइन तक

पहाड़ों खासकर कुमाऊं में चैत्र माह यानी नववर्ष के पहले महिने बहिन बेटी को भिटौली…

1 week ago

उत्तराखण्ड के मतदाताओं की इतनी निराशा के मायने

-हरीश जोशी (नई लोक सभा गठन हेतु गतिमान देशव्यापी सामान्य निर्वाचन के प्रथम चरण में…

1 week ago

नैनीताल के अजब-गजब चुनावी किरदार

आम चुनाव आते ही नैनीताल के दो चुनावजीवी अक्सर याद आ जाया करते हैं. चुनाव…

1 week ago