प्रदेश के विद्यालयों में नया शिक्षण सत्र शुरू हो चुका है, पर पढ़ाने को शिक्षक नहीं हैं. कुछ दिन पूर्व ही पिथौरागढ़ के होकरा गांव में शिक्षा, सड़क और संचार जैसी मूलभूत मांगों को लेकर 83 लोग आमरण अनशन पर बैठे थे.
6 दिन बाद प्रशासन ने सुध ली और आश्वासन देकर गांव वालों को उठा दिया, स्थानीय लोगों को कहना है कि गांव में संचार सुविधा तो कुछ हद तक काम करने लगी है लेकिन सड़क और शिक्षकों की नियुक्ति अभी आश्वासनों तक ही सीमित है.
अब शिक्षकों की मांग को लेकर सैणराथी गांव के लोग गांव वासियों के ही संगठन ‘सबकी संघर्ष समिति’ के बैनर तले आमरण अनशन पर बैठ गए हैं.स्थानीय लोगों की मांग है कि है कि स्थानीय विद्यालय में मानकानुसार शिक्षकों की नियुक्ति की जाए.
इसके लिए गांव के कुछ लोग आमरण अनशन पर बैठ गए हैं, और पूरा क्षेत्र के छात्र-अभिभावक शिक्षकों की नियुक्ति हेतु सड़कों पर भी प्रदर्शन कर रहे हैं.
सैणराथी ग्रामसभा पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय से 110 किलोमीटर दूर थल मुनश्यारी मोटर मार्ग में पड़ती है.
स्थानीय कस्बे नाचनी से इसकी दूरी 22 किलोमीटर और तहसील मुख्यालय मुनश्यारी 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.
सैणराथी के ग्राम प्रधान ‘गंगासिंह मेहता’ का कहना है कि –
” सैणराथी ग्रामसभा के साथ साथ दो अन्य ग्राम सभाओं ‘किमखेत’ और बेडूमहर के लिए एकमात्र इंटर कॉलेज सैणराथी में स्थित है. तीनों ग्राम सभाओं में कुल 530 परिवार हैं और जनसंख्या 3000 के करीब है, ऐसे में विद्यालय में शिक्षकों का न होना क्षेत्र की समस्त जनता के साथ धोखा है और इसकी परिणीति क्षेत्र से भारी संख्या में पलायन के रूप में हो रही है.”
ज्ञात हो कि ऐसी ही स्थिति होकरा ग्राम सभा की भी थी, जिस तरह सीमान्त क्षेत्र में शिक्षकों को लेकर जगह-जगह आंदोलन हो रहे हैं, वैसे वैसे शिक्षा व्यवस्था की पोल खुलती जा रही है.
स्थानीय छात्रा ‘सीमा मेहता’ बताती हैं कि
सन 2014 में सैणराथी में इंटरमीडिएट कक्षाओं की शुरुआत हो गयी थी पर इंटरमीडिएट के विषयों को पढ़ाने के लिए कोई प्रवक्ता नहीं है. विद्यालय में मात्र 4 शिक्षक हैं, जो 6 से लेकर 12 तक कि कक्षाओं को पढ़ाते हैं. विज्ञान के विषयों को पढ़ाने वाला कोई शिक्षक ही नहीं है.
वहीं 19 जुलाई 2019 को मुख्य शिक्षा अधिकारी पिथौरागढ़ द्वारा माध्यमिक शिक्षा निदेशक को शिक्षकों की नियुक्तियों के संदर्भ में भेजे गए पत्र में साफ कहा गया है कि विज्ञान संकाय में शिक्षकों के न होने के कारण 35 छात्रों को विद्यालय छोड़ कर अन्यत्र जाना पड़ा है और शिक्षकों की कमी से बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो चला है.
मुख्य शिक्षा अधिकारी के 19 जुलाई 2019 इस पत्र के अनुसार सैणराथी के इंटर कॉलेज में स्वीकृत 9 पदों में से सभी पद रिक्त हैं. इसी पत्र में 1 अगस्त 2019 तक शिक्षकों की नियुक्ति न होने पर गांव वासियों द्वारा आंदोलनरत करने का पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम भी लिखा गया है.
सरकारी व्यवस्था के आदतन इस पत्र पर भी कोई कार्यवाही नहीं हुई और सैणराथी के नागरिकों को मजबूरन अपने बच्चों के भविष्य के लिए आमरण अनशन पर बैठना पड़ रहा है.
सैणराथी के पंचायत घर में 9 लोग आमरण अनशन पर बैठे हैं, जिनमें 86 वर्ष के मोहन सिंह मेहता भी हैं, इस उम्र में अपने नाती-पोतों के भविष्य की चिंता और शिक्षा के लिए पलायन के कारण खाली होते गांव का दर्द ही उनके मन में है, जिस कारण उन्हें अनशन पर बैठना पड़ा.
वृद्ध दादाजी के अनशन में बैठने की बात पर सीमा मेहता कहती हैं कि
” उच्च शिक्षा के लिए मैं 2 साल पहले ही पिथौरागढ़ आ गयी थी और गांव के विद्यालय में शिक्षक न होने के कारण बेहतर शिक्षा के लिए छोटे भाई का दाखिला भी इस साल पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय में 9वीं में करा दिया गया. अब ऐसे हालात में शिक्षकों के अभाव में अपने नाती-पोतों से बिछड़ने का दर्द गांव के हर अभिभावक में है शायद सब यही सोचते हैं कि विद्यालय में शिक्षक होते तो अपने बच्चे भी साथ रह कर गांव में ही पढ़ते.”
अपने स्कूली पढ़ाई के संदर्भ में बात करने पर सीमा कहती हैं कि
मैंने गांव के ही विद्यालय से पढ़ा और तब भी शिक्षकों का अभाव था, छठीं कक्षा के अध्यापक हमें बाहरवीं के विज्ञान के विषय पढ़ाते थे अब ऐसे हालात में शिक्षा के स्तर और शिक्षा के लिए गांव से हो रहे पलायन को आसानी से समझा जा सकता है.
आमरण अनशन पर बैठे प्रह्लाद राम का कहना है कि
शिक्षकों की मांग को लेकर सालों से प्रशासन के स्तर पर बात रखी जा रही और कइयों बार शिक्षा मंत्री और मुख्य मंत्री को पत्र लिखे जा चुके हैं, पर स्थिति जस की तस है शायद हम जिला मुख्यालय से दूर हैं या प्रभावशाली नहीं हैं कि हमारी बात सुनी जाए. गांव के विद्यालय में नेता और अफसरों के बच्चे तो पढ़ते नहीं गरीब का बच्चा पढ़े न पढ़े या मर भी जाए तो कौन पूछने वाला है ?
आमरण अनशन के तीसरे दिन 3 अगस्त को उपजिलाधिकारी और खंड शिक्षा अधिकारी ने गांव जाकर आंदोलनकारियों से मुलाकात की और 2 प्रवक्ता जल्द दिए जाने व अन्य की नियुक्ति के लिए यथासंभव कोशिश किये जाने की बात कही पर अनशन कर रहे लोगों और ग्रामीणों का कहना है कि जब तक सभी रिक्त पद भरे नहीं जाते आंदोलन जारी रहेगा.
पिथौरागढ़ महाविद्यालय में पढ़ रहे स्थानीय छात्रों द्वारा भी अपने गांव की समस्याओं के निवारण और आंदोलन के समर्थन में 3 अगस्त को छात्रसंघ के नेतृत्व में जिलाधिकारी कार्यालय का घेराव किया गया औऱ असंवेदनशील शासन – प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी की गयी तथा प्रदर्शन के बाद एक छोटी सभा का भी आयोजन किया गया जिसमें शिक्षा से जुड़े मुद्दों पर बात हुई.
आंदोलन को लेकर छात्रसंघ अध्यक्ष राकेश जोशी का कहना है कि
जिस तरह पिथौरागढ़ महाविद्यालय का शिक्षक-पुस्तक आंदोलन धीरे-धीरे पूरे राज्य में फैलता जा रहा है, उसने राज्य की शिक्षा व्यवस्था की पोल खोल दी है. हम सभी नागरिकों से अपील करते हैं कि शिक्षा के इस मुद्दे को अपने अपने क्षेत्र में उठाएं और इसके समर्थन में आगे आएं.
महाविद्यालय में चल रहे शिक्षक पुस्तक आंदोलन पर बात करते हुए राकेश आगे कहते हैं कि ‘महाविद्यालय में 15 दिनों के लिए आंदोलन को स्थगित किया गया है परंतु 10 दिन बीत जाने के बाद भी अभी तक आगे की कोई सकारात्मक कार्यवाही होती नहीं दिख रही जल्द ही शासन-प्रशासन का ऐसा ही रवैय्या रहता है तो जल्द ही छात्र फिर धरने पर बैठने और सड़कों पर उतरने को बाध्य होंगे.’
जगह जगह हो रहे आंदोलन पर बात रखते हुए वह कहते हैं कि ऐसे सभी आंदोलनों को उनका समर्थन है जो शिक्षा और जनसरोकारों से जुड़े हों.
पिथौरागढ़ महाविद्यालय के शिक्षक-पुस्तक आंदोलन की तर्ज पर ही कुछ दिन पूर्व नेपाल सीमा से लगे कस्बे झूलाघाट में भी शिक्षकों की मांग को लेकर मौन रैली का आयोजन किया गया.
जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस सीमान्त कस्बे के इंटर कॉलेज में दूर दूर से छात्र पढ़ने आते हैं परंतु शिक्षकों की कमी से शिक्षा की गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ रहा है.
स्थानीय निवासी और सामाजिक कार्यकर्ता अंजली का कहना है कि
जी.आई.सी. झूलाघाट में 18 शिक्षकों के पद स्वीकृत हैं, जिनमें से वर्तमान में केवल 9 शिक्षक ही कार्यरत हैं. विद्यालय में छात्रों की संख्या 191 है ,LT मै कला और हिन्दी के शिक्षक नही हैं और Lecturar में हिन्दी , इंग्लिश , अर्थशास्त्र , समाजशास्त्र , रासायन विज्ञान , भौतिक विज्ञान के शिक्षक नही हैं और स्थायी प्रधानाचार्य भी नही हैं.
ऐसे में आसानी से समझा जा सकता है कि प्रदेश भर में शिक्षा के क्या हालात हैं ? सरकार द्वारा जिस तरह साजिशन विद्यालयों में शिक्षकों की संख्या कम करके विद्यार्थियों को प्राइवेट स्कूलों में जाने को मजबूर किया जा रहा है और फिर छात्रसंख्या कम होने का बहाना बना कर विद्यालयों को बंद किया जा रहा है, उससे यह स्पष्ट है कि प्रदेश सरकार शिक्षा व्यवस्था को बेच चुकी है.
एक तरह बजट का रोना रोते हुए सरकार द्वारा शिक्षा में किये जा रहे खर्चों पर कटौती की जा रही है, तो दूसरी तरफ मंत्री – विधायकों की तनख्वाह में बढ़ोतरी लगातार जारी है.
जब राज्य सरकार द्वारा गठित ‘पलायन आयोग’ की रिपोर्ट जो कि 2018 में सार्वजनिक कर दी गयी है, में साफ तौर पर शिक्षा और रोजगार को पलायन का मुख्य कारण माना गया है, और उसके बाद भी शिक्षा को लेकर कोई सकारात्मक कदम न उठाया जाना राज्य सरकार के निकम्मेपन को दिखाता है.
‘गाय ऑक्सीजन लेकर ऑक्सीजन ही छोड़ती है’ जैसे मूर्खतापूर्ण बयान के बाद कहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री यह न कह दें कि बिना शिक्षकों के बच्चे आपस में ही पढ़ लें ये किताबों और शिक्षकों से ज्यादा बेहतर है.
जिस तरह पिथौरागढ़ महाविद्यालय से उठे शिक्षक-पुस्तक आंदोलन के बहाने प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था का खोखलापन सामने आया है और जगह जगह आंदोलन उठने लगे हैं वो इस आंदोलन की सार्थकता तो दर्शाता ही है साथ ही एक सवाल भी खड़ा करता है कि आखिर राज्य बनने के 19 साल बाद भी शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधा के लिए लोग सड़कों पर हैं तो इसका जिम्मेदार कौन है ? ऐसे में पिछले दिनों सोशियल मिडिया में चले एक पोस्टर से राज्य की स्थिति का काफी हद तक अंदाजा हो जाता है.
–शिवम पाण्डेय की पिथौरागढ़ से रपट
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