Featured

कल है फूलदेई

पहाड़ के लोग अपनी विशिष्ट संस्कृति के लिये जाने जाते हैं, जाने जाते हैं प्रकृति से अपने प्रेम के लिये. उत्तराखंड के लोग प्रकृति की गोद में पलते और बढ़ते हैं सो उनके जीवन में प्रकृति का हर रंग लोक संस्कृति के रूप में मौजूद रहता है. फूलदेई, पहाड़ियों की इसी विशिष्ट संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है.
(Phooldei 2021)

पहाड़ियों का प्रकृति से लगाव उनकी लोक संस्कृति में भर-पूर दिखता है. पहाड़ी हर मौसम का स्वागत बकायदा त्यौहार की तरह करते हैं. हमारी लोक संस्कृति में बसंत के इस्तकबाल का त्यौहार है फूलदेई. कुमाऊँ और गढ़वाल मंडल में इसे फूलदेई कहा जाता है तो जौनसार बावर में गोगा. चैत के महीने की पहली गते को पहाड़ी फूलदेई का त्यौहार मनाते हैं.
(Phooldei 2021)

सौरपक्षीय पंचांग चलने के कारण उत्तराखंड में चैत महीने की शुरुआत संक्रान्ति के दिन से मानी जाती है. सुबह सवेरे महिलायें घर की लिपाई पुताई करती हैं और बच्चे नहा-धोकर फूल तोड़ लाते हैं. इसके बाद फूल और चावल के दाने से गांव के हर घर की देहली में ले जाकर उसका पूजन करते हुये गीत गाते हैं:

फूल देई, छम्मा देई,
देणी द्वार, भर भकार,
ये देली स बारम्बार नमस्कार,
फूले द्वार…फूल देई-छ्म्मा देई.
फूल देई माता फ्यूला फूल
दे दे माई दाल-चौल.

इस दौरान देहली कफ्फू, भिटोर, आडू-खुमानी आदि के फूलों से पूजी जाती है. देहली पूजने के बाद बच्चों को घर की सबसे बड़ी महिला चावल, गुड़ और कुछ पैसे दिये जाते हैं. बच्चे इन चावलों को अपने घर ले जाते हैं इन चावलों से रात को घर में त्यौहार मनाया जाता है.

पहाड़ों में आज भी बच्चों की टोलियां पतली पगडंडियों पर फूलदेई के दिन एक घर से दूसरे घर जाते दिख जाती हैं. पिछले कुछ सालों में सोशियल मिडिया के चलते देश-विदेश में रहने वाले पहाड़ियों की तस्वीरें भी खूब देखने को मिलती हैं.
(Phooldei 2021)

काफल ट्री डेस्क

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

उत्तराखंड में सेवा क्षेत्र का विकास व रणनीतियाँ

उत्तराखंड की भौगोलिक, सांस्कृतिक व पर्यावरणीय विशेषताएं इसे पारम्परिक व आधुनिक दोनों प्रकार की सेवाओं…

3 days ago

जब रुद्रचंद ने अकेले द्वन्द युद्ध जीतकर मुगलों को तराई से भगाया

अल्मोड़ा गजेटियर किताब के अनुसार, कुमाऊँ के एक नये राजा के शासनारंभ के समय सबसे…

1 week ago

कैसे बसी पाटलिपुत्र नगरी

हमारी वेबसाइट पर हम कथासरित्सागर की कहानियाँ साझा कर रहे हैं. इससे पहले आप "पुष्पदन्त…

1 week ago

पुष्पदंत बने वररुचि और सीखे वेद

आपने यह कहानी पढ़ी "पुष्पदन्त और माल्यवान को मिला श्राप". आज की कहानी में जानते…

1 week ago

चतुर कमला और उसके आलसी पति की कहानी

बहुत पुराने समय की बात है, एक पंजाबी गाँव में कमला नाम की एक स्त्री…

1 week ago

माँ! मैं बस लिख देना चाहती हूं- तुम्हारे नाम

आज दिसंबर की शुरुआत हो रही है और साल 2025 अपने आखिरी दिनों की तरफ…

1 week ago