बसंत के इस्तकबाल का त्यौहार है फूलदेई

ऋतुराज बसंत का स्वागत

उत्तराखण्ड को देवभूमि के साथ उत्सवों की भी भूमि कहा जाय तो गलत नहीं होगा. यहाँ साल भर उत्सव, पर्व, त्यौहार, मेलों की धूम रहती है. बसंत के आगमन का स्वागत भी उत्तराखण्ड ) में बाकायदा त्यौहार मनाकर किया जाता है. कुमाऊँ और गढ़वाल मंडल में इस त्यौहार को फूलदेई कहा जाता है और जौनसार बावर में गोगा. फूलदेई को पुष्प संक्रांति, फूल संक्रांति आदि के नामों से भी जाना जाता है. चैत्र मास के पहले दिन मनाया जाने वाला यह त्यौहार हिन्दू कैलैंडर के हिसाब से नए साल का भी स्वागत करता है. (Phool Dei Festival Utarakhand)

इस दिन घर की महिलाएं सुबह उठकर घर की साफ़-सफाई करने के बाद देहरी को ऐपण से सजा देती हैं. पारंपरिक मिट्टी के फर्श वाले घरों को लीपकर ऐपण से सजाया जाना बेहद खुबसूरत हुआ करता है. ऐपण उत्तराखण्ड की पारंपरिक चित्रकला को कहा जाता है. ऐपण का उत्तराखण्ड के सभी पर्व-त्यौहारों और धार्मिक अनुष्ठानों में महत्वपूर्ण स्थान है. इसमें शुभ-मांगलिक चित्रकला को जमीन व दीवारों पर बनाया जाता है. ऐपण प्राकृतिक रंगों, गेरू एवं पिसे हुए चावल व आटे के बिस्वार (घोल) से बनाये जाते हैं. ऐपण के बारे में विस्तार से जानने के लिए पढ़ें– कुमाऊं की पारंपरिक चित्रकला ऐपण

फोटो: हरीश राणा, नैनीताल

बच्चों का विशेष महत्त्व

घर के छोटे बच्चे इकट्ठा होकर पास के जंगल से जाकर फूल तोड़कर ले आते हैं. इन फूलों में बसंत के मौके पर श्वेतकुंज, सिल्फोड़ा, प्योंली, बुरांस, बासिंग, आडू, खुमानी, पय्याँ, पुलम आदि के फूल हुआ करते हैं. बच्चों का यह समूह सभी नाते-रिश्तेदारों, पड़ोसियों के घरों में घूम-घूमकर सभी की देहरी को इन फूलों और चावल से सजाता है और कोरस गाकर घर की सुख-शांति व समृद्धि की मंगल कामना करता है

फूल देई, छम्मा देई,
देणी द्वार, भर भकार,
ये देली स बारम्बार नमस्कार,
फूले द्वार…फूल देई-छ्म्मा देई.
फूल देई माता फ्यूला फूल
दे दे माई दाल-चौल.

यह सिलसिला चैत्र संक्रांति (चैत्र महीने का पहला दिन) से शुरू होकर अष्टमी तक लगातार आठ दिनों तक चला करता है. घर आकर देहरी सजाकर मंगलकामना करने वाले बच्चों का गुड़ व पकवानों से मुंह मीठा किया जाता है. प्योंली की लोककथा

बच्चे जिस थाली में चावल और फूल लेकर आते हैं उनमें गृहस्वामियों द्वारा भेंट डाली जाती है. इस भेंट में गुड़, चावल, सूजी आदि के साथ ही पैसा भी शामिल होता है. इस तरह इकट्ठा सामग्री से बच्चे शाम को सामूहिक रूप से पुए पकाया करते हैं. इसके लिए जरूरी सामग्री की कमी नगद पैसों से सामान खरीदकर पूरी कर ली जाती है. इन पुओं को बच्चे बड़े चाव से खाते हैं. किन्हीं क्षेत्रों में आठ दिनों बाद भी बच्चों द्वारा पकवान बनाये जाने की परंपरा है. इन पकवानों को तैयार करने में सयाने लोग बच्चों की मदद किया करते हैं लेकिन वे इन्हें खाते नहीं.

एक दिन से लेकर महीने भर मनाया जाता है

उत्तराखण्ड के विभिन्न हिस्सों में फूलदेई का त्यौहार एक या आठ दिन से लेकर महीने भर तक भी मनाया जाता है. जितना विविधता भरी बसंत ऋतु है उतनी ही विविधता फूलदेई के त्यौहार में भी पायी जाती है.

बहनों-बेटियों को भिटौली देने की शुरुआत

इस दिन से ही बसंत पंचमी के दिन से ही गाये जाते आ रहे लोकगीतों का स्वरूप भी बदल जाता है. फाग की रंगत में डूबा लोक ऋतुरैण की धुनों में भी डूबने लगता है. बहनों-बेटियों के लिए भिटौली भिजवाना शुरू कर दिया जाता है. ब्याहतायें बेसब्री के साथ अपने परिजनों से मिलने का इन्तजार करने लगती है.
-सुधीर कुमार 

काफल ट्री के फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार

लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…

1 week ago

भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …

1 week ago

ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए

तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…

2 weeks ago

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

2 weeks ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

3 weeks ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

3 weeks ago