अमित श्रीवास्तव

अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित विनोद कुमार शुक्ल

हमारे समय के सबसे महत्वपूर्ण किन्तु सबसे शांत कवियों में से एक विनोद कुमार शुक्ल की कविता `मुझे बिहारियों से प्रेम हो गया’ में एक बात आती है-

     एक भाषा में बचाओ
     दूसरे प्रदेश की भाषा में
    जान से मारे जाने का
     कारण बन जाता है

दिखने में बहुत सीधा-सादा सा लगने वाला ये वक्तव्य समकालीन अलगाववादी राजनीति, असहिष्णुता, नफ़रत और क्षेत्रवाद की मुखालिफ़त में कितना सशक्त बयान है. जितना सरल उतना ही मार्मिक और उतना ही चमकीला. `फ्लैश पोएट्री’ की तरह. अंग्रेज़ी एवं अन्य विदेशी भाषाओं में `फ्लैश प्रोज़’ की तर्ज पर `फ्लैश पोएट्री’ का चलन बढ़ रहा है. एक ही नज़र में पढ़ी जाने लायक छोटे आकार की ये कवितायेँ आज के भागम भाग भरे जीवन जिसका एक बड़ा हिस्सा बस, लोकल ट्रेन, या गाडियों में बीतता है के लिए मुफीद हैं. आकार छोटा होने की वजह से बात में वैचित्र्य पैदा करना मुश्किल काम होता है. विनोद कुमार शुक्ल की कविताओं में ये मुश्किल आसान हुई मिलती है.
(PEN/Nabokov Award 2023)

कौन हैं ये विनोद कुमार शुक्ल? क्या वो, जिनकी कविताओं ने हिन्दी कविता को एक नई भाषा दी? जिसने `वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहिनकर विचार की तरह’, ‘सब कुछ होना बचा रहेगा’, ‘अतिरिक्त नहीं’, ‘कविता से लंबी कविता’, ‘आकाश धरती को खटखटाता है’, ‘कभी के बाद अभी’ जैसे आकर्षक और अनूठे शीर्षकों वाले संग्रह की कविताओं में अपने समय को समझने बूझने और उससे भिड़ने की ताब देने के साथ-साथ उस समृद्ध परंपरा से पूरी नेकनीयती और ज़िम्मेदारी से निबाह करने की सलाहियत दी जो अदब की रीढ़ रही आई है पर भुला दी गई है.

कौन हैं ये विनोद कुमार शुक्ल? क्या वो, जिनके ‘नौकर की कमीज़’, ‘खिलेगा तो देखेंगे’, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’, ‘हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़’, ‘यासि रासा त’, या ‘एक चुप्पी जगह’ जैसे उपन्यासों या कहानियों के जादुई गद्य ने यथार्थ को एक नई बिल्कुल नए इलाक़े की उड़ान दी? क्या वो, जिनके गद्य को अगरचे छूने का संयोग बने तो सोंधी-गीली-सनी, चाक पर धरी हुई मिट्टी छूने का अहसास हो. इस तरह का गद्य जिसके शरीर में ऐसा लगता है कि किसी कविता की आत्मा ने घर बसा लिया हो.

कौन हैं ये विनोद कुमार शुक्ल? क्या वो, जिन्हें PEN America ने  2023 का PEN/Nabokov Award for achievement in International Literature देने का ऐलान किया है.

आह! अब इसे विडंबना नहीं तो और क्या कहेंगे कि हमारे प्रिय कवि विनोद कुमार शुक्ल को लोग अब जानेंगे. इस तरह से जानेंगे. पुरस्कार कोई बड़ी बात नहीं है ख़ास तौर पर विनोद कुमार शुक्ल जैसे लेखकों के लिए. इससे बड़ी बात निर्णायक समिति की संस्तुति की पंक्तियों में उभर जाने वाला एक वाक्य है –

Shukla’s prose and poetry are marked by acute, often defamiliarizing, observation. The voice that emerges is that of a deeply intelligent onlooker; a daydreamer struck occasionally by wonder. Writing for decades without the recognition he deserves…

बस इसके बाद मैं नहीं पढ़ पाता. without the recognition he deserves… साहित्य को दुनियावी व्यौपारों के दूरस्थ हाशिए पर रखने वाले समाज को तो क्या ही पता होगा लेकिन साहित्य के केंद्र और उसकी नाभि से निकलने वाला रस पीने वाले लोग भी नहीं जानते कि किस अजस्र स्रोत का जल खींच रहे हैं.

पुस्तक मेलों, लोकार्पणों और लिटरेचर फेस्टिवलों के चमकदार आकाश में दमक–चमक रहे लोग नहीं जानते कि वो जाने कैसे अंधेरे कैद हैं. इन उपग्रहों और ग्रहों को तो ये कभी नहीं पता चल पाएगा कि उनकी चमक के पीछे कैसे शांत, गंभीर और वृहदाकार नक्षत्र हैं.

ख़ैर! विनोद कुमार शुक्ल जैसे सितारों की प्राकृत चमक बरक़रार रहे. उनके चाहने वालों को खूब बधाई!
(PEN/Nabokov Award 2023)

पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक प्राचीन शहर जौनपुर में जन्मे अमित श्रीवास्तव भूमंडलीकृत भारत की उस पीढ़ी के लेखकों में शुमार हैं जो साहित्य की विधागत तोड़-फोड़ एवं नव-निर्माण में रचनारत है. गद्य एवं पद्य दोनों ही विधाओं में समान दख़ल रखने वाले अमित की अब तक चार किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं- बाहर मैं, मैं अंदर (कविता संग्रह), पहला दख़ल (संस्मरण) और गहन है यह अंधकारा (उपन्यास) और कोतवाल का हुक्का (कहानी संग्रह)। सम सामयिक राजनीति, अर्थ-व्यवस्था, समाज, खेल, संगीत, इतिहास जैसे विषयों पर अनेक लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं/ ऑनलाइन पोर्टल पर प्रकाशित हैं। भाषा की रवानगी, चुटीलेपन एवं साफ़गोई के लिए जाने जाते हैं. भारतीय पुलिस सेवा में हैं और फ़िलहाल उत्तराखंड के देहरादून में रहते हैं. taravamitsrivastava@gmail.com

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