हाल ही में अमेजन प्राइम पर वेबसीरीज ‘पंचायत’ का दूसरा भाग आया था. जिसकी तारीफ़ सभी ने सुनी भी होगी. संयोग ऐसा बना कि मुझे पिछले तीन दिनों में उत्तराखंड के गांवों को नज़दीक से देखने का मौक़ा मिला. अल्मोड़ा से बागेश्वर के अंतिम छोर तक गया. जहां 17 गांवों के ग्राम प्रधान से मुलाक़ातें भी हुई और गांव के विकास और माहौल को लेकर बातचीत भी.
(Panchayat in Uttarakhand)
यह पंचायत भी दिलचस्प थी. जाति किस कदर पहाड़ों में बसी है यह इस दौरान जाना. सामान्य वर्ग के ग्राम प्रधानों की तुलना में अनुसूचित जाति के ग्राम प्रधानों में सरलता ज़्यादा दिखी. उनमें संकोच का भाव दिखा और जानकारी का अभाव दिखा. सरकार की कोई योजनाएं चल रही है और यह साफ़ नज़र आ रहा है कि ज़मीनी स्तर पर योजनायें पहुँच तो रही हैं पर सही तरीक़े से अंजाम तक नहीं पहुँच पा रही हैं.
गांवो में सुराज विकेंद्रीकरण से ही आ सकता है. इसका असर भी दिखता है गांवो में. सड़क की बात करें तो लगभग हर गाँव में सड़क पहुंच चुकी है. चाहे कच्ची हो या पक्की़. ज़्यादातर सड़कों पर डामरीकरण हुआ है. अभी गांवों में धान की रोपाई का सीज़न है तो ज़्यादातर गांव के लोग खेतों में थे. ग्राम प्रधान अपने स्तर पर बेहतरीन काम कर रहे हैं यह दो तीन युवा नौजवान ग्राम प्रधानों से पता चला. कई ऐसे भी दिखे जिनकी रूचि नहीं है गांवो की प्रगति को लेकर. इसमें से कुछ ऐसे भी थे जो दिल्ली-मुंबई महानगरों में नौकरी के बाद वापस गाँवों में आए और अब जन प्रतिनिधि बन कर काम कर रहे हैं.
(Panchayat in Uttarakhand)
सरकार और एनजीओ गांवो में कई स्कीम चला रहे हैं लेकिन विभागीय स्तर पर कई ख़ामियां और ख़ानापूर्ति भी दिखी. इसे लेकर नाराज़गी भी दिखी. कुल मिलाकर कई गाँव में पलायन का असर भी दिखा. गांवों में शौचालय लगभग हर जगह हैं पर गांव अभी पूरी तरह से शौच मुक्त नहीं हुए हैं. गांव के लोग अभी भी मूलभूत चीजें ही पाना चाहते हैं.
यात्रा के दौरान कई बनराक्षस भी गांवों में मिले. पंचायत सचिव तो नहीं मिले पर यह पता चला कि उनकी मौज हैं. ग्राम प्रधान बदलते रहते हैं पर पंचायत सचिव के अच्छे दिन ख़त्म नहीं होते. जेई और ऐई भी मज़े में हैं. कुल मिलाकर यह कह सकता हूं कि उत्तराखंड के गांवों की पंचायत भी अमेजन वाली पंचायत वेबसीरीज जैसी दिलचस्प है बस पहाड़ों महिलाओं का जीवन बहुत संघर्ष भरा है उनको सलाम.
(Panchayat in Uttarakhand)
हेमराज सिंह चौहान
विविध विषयों पर लिखने वाले हेमराज सिंह चौहान पत्रकार हैं और अल्मोड़ा में रहते हैं.
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
इसे भी पढ़ें: पहाड़ी गांवों और शहरी कस्बों के बीच चौड़ी होती खाई
Support Kafal Tree
.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…