इन दिनों पहाड़ों में धान की रोपाई चल रही है. मानसून के आगमन में हुई देर के बावजूद कुमाऊँ-गढ़वाल के ग्रामीण इलाकों में धान रोपने का काम चल रहा है. (Paddy Sowing Someshwar Valley Uttarakhand)
उत्तराखंड के कुमाऊँ की सोमेश्वर घाटी राज्य की सबसे उर्वर घाटियों में से एक है. दूर-दूर तक फैले खेत और उनमें काम करती महिलाएं यहाँ साल भर देखे जा सकते हैं. उत्तराखंड के कुमाऊँ की सोमेश्वर घाटी राज्य की सबसे उर्वर घाटियों में से एक है. दूर-दूर तक फैले खेत और उनमें काम करती महिलाएं यहाँ साल भर देखे जा सकते हैं. इस मौसम में इस घाटी की छटा देखते ही बनती है. (Paddy Sowing Someshwar Valley Uttarakhand)
उत्तराखंड के गाँवों में धान की रोपाई का कार्य हमेशा से एक सामूहिक और सामुदायिक गतिविधि रहा है. एक ही गाँव के सभी परिवार मिल कर बारी-बारी सभी लोगों के खेतों में काम करते हैं.
पुराने समय में इस कार्यक्रम के साथ हुड़के की संगत में हुड़किया बौल गायन होना अनिवार्य होता था. अत्यधिक शारीरिक श्रम मांगने वाले इस काम में दिन भर लगी रहने वाली महिलाओं का इस से मनोरंजन होता था. अलबत्ता आजकल विशेषज्ञ गायकों के न मिलने के कारण महिलाओं को इसके बिना ही रोपाई करनी होती है.
पारंपरिक रूप से रोपाई के लिए तैयार किये गए खेतों में बाड़ों पर भट और सोयाबीन भी बोई जाती है. अकेले सोमेश्वर घाटी में दर्जनों किस्मों का चावल उगता है और गांववासियों के बीच बीजों की अदलाबदली का होना आम है. इस घाटी में रहने वालों की आवश्यकता भर धान की पैदावार हो जाती है और बाजार में इसकी उपलब्धता मुश्किल से ही हो पाती है.
सोमेश्वर नगर में कोसी नदी से मिलने वाली साईं नाम की एक गाड़ (धारा) घाटी से होकर बहती है और मौसम की बारिश के हिसाब से उसमें जलस्तर घटता-बढ़ता रहता है. क्षेत्र में प्रमुख गाँवों में खाड़ी, सुतोली, ढामुक, लखनाड़ी, रैत, बरगल्ला, मड़ी, टना, दियारी, बिलौरी, लद्यूड़ा, सलौंज, झुपुलचौरा, चनौली, फल्टा, नैकाना, मालौंज, बड़गाँव, रमलाडूंगरी, लोद, मौवे, बले, बौंत, धौनीगाड़, नाग, क्वेराली और बयालाखाल सम्मिलित हैं.
सोमेश्वर घाटी पारम्परिक खेती की इस शानदार परम्परा को अब तक जीवित रखे हुए है. काफल ट्री की टीम आपके लिए ले कर आई है इस घाटी से धान रोपाई की इस वर्ष की कुछ ताजा तस्वीरें.
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