“ईजा यौ साल कभैं नी आण चैं,” आमा के मुह से एक दर्द भरे लहजे में यह बात निकली. मैं जब आज बैंक गया था तब आमा मुझे वही मिली. आमा ने जिस स्नेह से मुझसे बात करी उसे मैं लफ़्ज़ों में बयां नहीं कर सकता. हालांकि मैं आमा से पहली बार मिला था पर पहाड़ में यह स्नेह और अपनेपन की भावना कूट-कूट कर भरी है. (Optimism of Kumaoni Ama)
खैर, आमा बैंक में अपने किसान निधि के रूपयों के बारे में जानकारी लेने आयी थी. आमा ने बताया कि वह 8-10 किमी. पैदल चल कर आयी है क्योंकि आजकल गाड़ी वाला 100 रु. किराया मांग रहा है और आमा ने बताया कि वह वापसी मैं भी पैदल ही जाएगी.
वैसे आप सभी को बता दूँ कि आमा की उम्र लगभग 68 बरस है. आमा ने बताया कि उनके पास 3 गायें भी हैं जिनके दूध से उन्होंने 15 किलो घी बनाया है, इस घी को वे साथ लायी हैं और बैंक का काम निपटा कर डेयरी में बेच देगी. ये सब बताते हुए आमा बोली की “नाती मेर किताब में इन्टरी करै दे”. जब मैं इन्टरी करा कर लाया तो आमा ने अपने बच्चों के बारे में बताया — “नाती! 5 नान छी, 2 बम्बई में पराईभेट नौकरी करछी अब वैं फस गी और 3 घर ग लैबरी करनी, बम्बई वाल आफि दुख मे छी और घर वाल के कामक नेहै.” बहादुर पहाड़ी बेटा और दुष्ट राक्षसी की कथा
आमा ने बताया किस तरह कोरोना महामारी ने उनकी और उनके बच्चों की जिंदगी में असर डाला है. आमा ने दुआ की कि ऐसा साल कभी फिर न आये. आमा ने जब यह कह रही थीं तो उनकी आखें नम थीं. आमा को यह दुख अंदर से खाए जा रहा था कि उसके बच्चे बम्बई में फस गए है. लेकिन आमा का कहना था कि यह दुख जिन्दगी का अंत नहीं है. उनके भीतर आशा थी कि जल्द ही सब कुछ पहले जैसा होगा. उनका कहना था कि जब तक हाथ पैर काम करते हैं तब तक इंसान को मेहनत करनी चाहिए. आमा और बातें बता ही रही थी कि उनके साथ आयी दूसरी आमा ने उनको बुलाया और कहा “हिट काम हेगो, घर जै बाद खां बनाड़ छू.” दोनों आमा अपने घर को चली गयी.
आमा तो चली गई पर उनकि दो बातें मेरे दिल में घर कर गई, पहली जो उन्होंने मुझे इतना स्नेह दिया और दूसरी बात है आशावादी होऔर मेहनती होना.
आमा कि बातें वाकई मे जादुई थीं. मुझे उम्मीद है कि जल्द आमा से फिर मुलाकात होगी.
मूल रूप से उत्तराखण्ड के ऐतिहासिक कस्बे द्वाराहाट के रहने वाले नवनीत कुमार एक ट्रेनी पायलट हैं.
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