पिछले अंक में हमने बात की थी नानकमत्ता में नानकसागर डैम के पार स्थित गॉंवों की बदहाल स्थिति की. बेशक उन गॉंवों की स्थिति दशकों बाद भी बहुत अच्छी नहीं है लेकिन उन समस्याओं में भी एक सबसे बड़ी समस्या जिस की तरफ लोगों और प्रशासन का ध्यान आकर्षित करवाना जरूरी है वह है नाव से डैम को पार करना. अब आप कहेंगे नाव से डैम पार करने में नया क्या है? किसी भी बड़े जलाशय को पार करने का माध्यम नाव ही तो होती है. जी बिल्कुल! किसी भी जलाशय को पार करने का सबसे अहम माध्यम नाव ही होती है लेकिन नानकसागर डैम को पार करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली नावों और उसमें सफर करने की कहानी काफी दिलचस्प, खतरे से भरी और रोमांचित करने वाली है. Nanaksagar Dam
मेरा जन्म नानकसागर डैम के पार के गॉंव ऐचता बिही में हुआ. प्राथमिक शिक्षा आंगनवाड़ी व प्राथमिक विद्यालय से लगभग न के बराबर हुई. बच्चों की पढ़ाई-लिखाई को ध्यान में रखते हुए पिताजी ने नानकमत्ता में घर बनवाया और हमारा संयुक्त परिवार ऐचता बिही से नानकमत्ता आ गया. आमा-बूबू (दादा-दादी) जमीन-जायजाद की देख-रेख के चलते गॉंव में ही रहे. गॉंव से लगाव इतना था कि नानकमत्ता में मन ही नहीं लगता था इसलिए हर शनिवार को हम सारे भाई बहन स्कूल की छुट्टी के बाद नाव में सवार होकर डैम पार आमा-बूबू के पास पहुँच जाते थे. दो दिन वहॉं रूकने के बाद सोमवार की सुबह नाव पकड़ कर वापस नानकमत्ता चले आते थे. यह सिलसिला लगभग 6-7 साल चला और अंत में आमा-बूबू भी गॉंव में सब कुछ बेचकर नानकमत्ता चले आए.
नानकमत्ता से डैम के बीच बने कुएँ की तरफ मुँह कर के खड़े होंगे तो आपके दाँयी ओर क्षितिज में डैम का जो अंतिम छोर नजर आएगा उसे मच्छीझाला कहते हैं और बांयी तरफ के अंतिम छोर को किशनपुर घाट कहा जाता है. दाँये और बॉंये पड़ने वाले इन दोनों छोरों की बात मैं क्यों कर रहा हूँ यह आगे समझ आएगा. डैम पार पड़ने वाले गॉंव देवीपुर के सिक्खों के रोजगार का एक साधन नाव चलाना भी है. वो ही इन नावों को चलाते हैं और सवारियों को आर-पार छोड़ते हैं. ये नावें लकड़ी व टिन की चादर की बनी होती है जिनकी क्षमता एक बार में लगभग 15-20 सवारियों को ले जाने की होती है. दशकों से गॉंव के लोग नाव का उपयोग कर नानकमत्ता आते-जाते रहे हैं और आज भी इन नावों का उपयोग डैम पार करने के लिए होता ही है.
आज डैम पार के गॉंव लगभग 30 किलोमीटर लंबी जर्जर सड़क से जोड़ दिये गए हैं लेकिन अगर 90 के दशक की बात करें तो डैम को पार करने का एक मात्र साधन नाव ही था. तब हर 1-2 घंटे में नावों का आना-जाना लगा रहता था. इन नावों में सिर्फ सवारियॉं को ढोया जाता रहा हो ऐसा बिल्कुल नहीं था. लगभग 20-25 सवारियों से भरी नाव में 8-10 साइकिलें व 2-4 खाद के कट्टे तो अमूमन लदे ही होते थे. नावें हमेशा अपनी क्षमता से अधिक बोझ ढोती थी और पार जाने का कोई विकल्प न होने के कारण लोग ओवर लोडेड नाव में बैठने का ख़तरा मोल ले ही लेते थे. टिन की चादर से बनी पुरानी नावों में बहुत बारीक सुराख होने की वजह से कई बार पानी नाव में भर जाता था जिसे बैठी हुई सवारियॉं डिब्बे की मदद से बीच-बीच में निकालकर डैम में फेंकती रहती थी. इन नावों में सफर करने का सबसे बड़ा ख़तरा यह था कि इनमें लाइफ़ जैकेट का इस्तेमाल न तब होता था और ना ही आज होता है.
मई-जून में चलने वाली लू या जुलाई में होने वाली मूसलाधार बारिश के समय इन नावों में सफर करना खुद की जान को जोखिम में डालने से कम नहीं होता था. कई बार मजबूरी के चलते लोगों को मौसम की फ़िक्र किये बगैर आर-पार जाना पड़ता था. ऐसी स्थिति में यदि नाव में सवार होकर निकलें और किसी चक्रवाती तूफ़ान या बारिश में फँस जाँए तो हालत पाइरेट्स ऑफ कैरेबियन जैसी हो जाती थी. नाव में सवार सब लोग बस दुआएँ करते थे कि किसी तरह नाव बस किनारे लग जाए. हवा इतनी तेज होती थी कि नाव या तो एक छोर में मच्छीझाला या फिर दूसरे छोर में किशनपुर घाट जाकर रुकती थी. मौत से लगभग लाइव एनकाउंटर होने के ऐसे दृश्य के बाद जब सवारियॉं नाव से उतरती तब जाकर उनकी जान में जान आती. ऐसे न जाने कितने ही झंझावातों और ख़तरों को न सिर्फ मैंने बल्कि उन सब लोगों ने उन दिनों महसूस किया होगा जब गॉंवों तक पहुँचने का एकमात्र साधन नाव था. Nanaksagar Dam
डैम पार बसे गॉंवों के लोग जर्जर सड़क मार्ग से 2-3 घंटे का समय लगाकर अपने गॉंवों तक का सफर तय करते हैं लेकिन समय बचाने के लिए कई लोग आज भी नावों का इस्तेमाल कर डैम पार आना-जाना करते ही हैं. पहले की तुलना में नावों का इस्तेमाल कम होने लगा है लेकिन जितना भी होता है वह खतरे से खाली नहीं है. आज भी सवारियों को बिना लाइफ जैकेट के ढोया जाता है. साइकिल के साथ-साथ मोटरसाइकिलें तक नाव में लादकर पार ले जाई जाती है.
डैम में नौकाविहार करने आए पर्यटक भी बिना लाइफ जैकेट के अपनी जान जोखिम में डालकर सैर करते नजर आते हैं. अलबत्ता आज तक नाव से डैम पार करने की वजह से कोई बड़ा हादसा नहीं हुआ है लेकिन कई बार ऐसा लगता है जैसे स्थानीय प्रशासन किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहा हो. किसी बड़े हादसे की वजह से प्रशासन की नींद खुले इससे बेहतर है कि न सिर्फ स्थानीय लोगों के जानमाल की सुरक्षा के लिए बल्कि पर्यटकों की सुरक्षा व विश्वास जीतने के लिए लाइफ जैकेट मुहैया करवाई जाए तथा नावों की गुणवत्ता व नाव चालकों के अनुभव को दुरुस्त किया जाए. Nanaksagar Dam
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नानकमत्ता (ऊधम सिंह नगर) के रहने वाले कमलेश जोशी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातक व भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबन्ध संस्थान (IITTM), ग्वालियर से MBA किया है. वर्तमान में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के पर्यटन विभाग में शोध छात्र हैं
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