बहुत पहले उनकी एक प्रकाश्य पुस्तक के नाम ने आकर्षित किया था. नाम था – नागपुर के नक्षत्र. दो साल पहले जब उनके शास्त्री विहार स्थित आवास पर मिलने गया तो अपनी कुछ किताबों के आदान-प्रदान के बाद मैंने पूछा, नागपुर के नक्षत्र तो आपने दी ही नहीं. उन्होंने ठंडी साँस लेकर कहा कि वो फाइनल नहीं कर सका.
(Obituary for Dr. Yogambar Bartwal)
डॉ. योगम्बर सिंह बर्त्वाल का, 28 अगस्त को निधन हो गया. 75 वर्षीय बर्त्वाल नेत्र विज्ञानी के रूप में प्रदेश के राजकीय चिकित्सालयों में सेवा देते रहे और दून हॉस्पिटल से सेवानिवृत्त हुए थे. 1948 में रड़ुवा (चमोली) में जन्मे बर्त्वाल की स्वाभाविक रुचि साहित्य और इतिहास में थी. स्मरण शक्ति उनकी विलक्षण थी. प्रदेश के महत्वपूर्ण व्यक्तित्वों की जानकारी उनकी फिंगर टिप पर रहती थी.
अपनी कैप्टन धूम सिंह चौहान पुस्तक मैंने जब उन्हें भेंट की तो बड़ा आश्चर्य हुआ ये जानकर कि कैप्टन चौहान की महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ तो उन्होंने बिना किताब खोले ही गिना दी थी. ये भी कि उनके गाँव से तीन लोगों ने प्रथम विश्व युद्ध में भाग लिया था. पुस्तक पढ़ने के बाद जब उन्होंने बधाई देकर काम की सराहना की तो मुझे अपने प्रयास की सफलता का पूरा विश्वास हो गया था. ऐसा इसलिए कि डॉ. बर्त्वाल ही वो व्यक्ति थे जो किसी भी इतिहास कृति में तथ्यात्मक और अवधारणात्मक त्रुटियाँ निकाल सकते थे. उनसे आमने-सामने या फोन पर लम्बी रोचक-ज्ञानवर्द्धक बातें हुआ करती थी, जिनसे कई नये प्रोजेक्ट्स पर कार्य करने की प्रेरणा मिलती थी.
सत्तर पार की उम्र में भी उनका अध्ययन, जोश और लेखन किसी को भी चौंका सकता है. अपर गढ़वाल के पहले ख्यातिलब्ध राजनेता नरेन्द्र सिंह भण्डारी पर उनका शोध-संकलन दो साल पहले ही प्रकाशित हुआ है. पत्र विधा के वो उस्ताद थे. यायावर ययाति के पत्र, जो बाद में पुस्तकाकार छपी, युगवाणी पत्रिका में क्रमिक रूप से छपते रहे हैं और अत्यंत लोकप्रिय रहे हैं. इसके साथ ही मंगसीरू उत्तराखण्ड में भी उनकी लोकप्रिय रचना रही है.
चन्द्रकुँवर बर्त्वाल के लिए तो उनका लगाव जुनून के स्तर का था. उनके नाम से शोध संस्थान की स्थापना की. स्वयं इसके संस्थापक सचिव के रूप में आजीवन कार्य करते रहे. जगह-जगह समारोह-गोष्ठियाँ आयोजित करवायी. मूर्तियों की स्थापना करवायी और सबसे महत्वपूर्ण, उनकी अप्रकाशित रचनाओं को खोज कर उनकी ज्ञात कविताओं के साथ पुस्तक रूप में प्रकाशित किया. खास कर चंद्रकुँवर की डायरी और गद्य रचनाएँ, इसी किताब के माध्यम से प्रकाश में आयी.
(Obituary for Dr. Yogambar Bartwal)
डॉ. बर्त्वाल सृजनधर्मियों के बीच कुछ अड़ियल, कुछ पूर्वाग्रही भी समझे जाते थे. मेरा अपना अनुभव उनके बारे में ये था कि तर्कपूर्ण बात को वो स्वीकारते भी थे, अनावश्यक बहस नहीं करते थे. हमारी उम्र में बीस साल का अंतर होने पर भी एक बार जब मैंने उनसे कहा कि इस थ्योरी को आप किसी से न कहना और न लिखना, नहीं तो लोग हँसेंगे. इस पर उन्होंने क्यों कहे बगैर ही आत्मचिंतन किया और अमल भी.
नागपुर के नक्षत्रों पर हमने विस्तार से चर्चा की थी. डॉ. बर्त्वाल द्वारा चिह्नित और वो जिनको नक्षत्रों की सूची में शामिल किया जाना था. गौरतलब है कि नागपुर, अपर गढ़वाल के ब्रिटिशकालीन परगने का नाम था, जिसमें वर्तमान चमोली व रुद्रप्रयाग जिले का बड़ा भूभाग आता है. हमारे गाँवों की दूरी बमुश्किल दस किमी होगी पर परिचय पत्र-पत्रिकाओं के जरिए ही हुआ था. डॉ. योगम्बर सिंह बर्त्वाल के निधन पर मेरी स्वतः-स्फूर्त वन लाइनर टिप्पणी यही है कि नागपुर का एक चमकीला नक्षत्र धरती से बिछुड़ कर नभ में सुशोभित हो गया है.
विनम्र श्रद्धांजलि डॉ. योगम्बर बर्त्वाल जी. आशा है, हम आपके अधूरे प्रोजेक्ट्स को पूरा कर सकेंगे.
(Obituary for Dr. Yogambar Bartwal)
1 अगस्त 1967 को जन्मे देवेश जोशी फिलहाल राजकीय इण्टरमीडिएट काॅलेज में प्रवक्ता हैं. उनकी प्रकाशित पुस्तकें है: जिंदा रहेंगी यात्राएँ (संपादन, पहाड़ नैनीताल से प्रकाशित), उत्तरांचल स्वप्निल पर्वत प्रदेश (संपादन, गोपेश्वर से प्रकाशित), शोध-पुस्तिका कैप्टन धूम सिंह चौहान और घुघती ना बास (लेख संग्रह विनसर देहरादून से प्रकाशित). उनके दो कविता संग्रह – घाम-बरखा-छैल, गाणि गिणी गीणि धरीं भी छपे हैं. वे एक दर्जन से अधिक विभागीय पत्रिकाओं में लेखन-सम्पादन और आकाशवाणी नजीबाबाद से गीत-कविता का प्रसारण कर चुके हैं.
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