भुवन चन्द्र पन्त

व्यापारिक केन्द्र की शक्ल में उभरता कैंची धाम

पांच दशक पूर्व तक ख्यातिप्राप्त कैंचीधाम महज 10-15 परिवारों का एक छोटा सा गांव हुआ करता था. तब बाहरी व्यक्ति जब इस गांव का नाम सुनता तो हैरत में पड़ जाता. कैंची – यह भी भला किसी गांव का नाम हो सकता है. दरअसल इस गांव के नामकरण का इतिहास भी डेढ़ सौ साल से ज्यादा पुराना नहीं है. हल्द्वानी से रानीखेत के लिए जब मोटरमार्ग का निर्माण हुआ तो पहाड़ी से घाटी पर उतरने के लिए दो हेयर पिन बैण्ड बने, जो कैंची की शक्ल में दिखते हैं और इसके पास बसने वाली बसासत को कैंची गांव नाम दिया गया. जब कि राजस्व अभिलेखों में आज भी यह तल्ला निगलाट के नाम से जाना जाता है, जो कभी मल्ला निगलाट ग्राम सभा का एक हिस्सा हुआ करता था लेकिन आज तल्ला निगलाट अलग से ग्राम सभा बन चुकी है. कैंचीधाम की ख्याति के चलते तल्ला निगलाट ग्राम नेपथ्य में जाकर केवल राजस्व अभिलेखों तक सीमित रह चुका है.
(Neem Karoli Dham Uttarakhand)

यहां के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि, जिसमें मुख्यतः सब्जी उत्पादन, बागवानी व दुग्ध उत्पादन हुआ करता था. सभी कृषि, बागवानी उत्पादों तथा दुग्ध विपणन का केन्द्र निकटस्थ भवाली कस्बा हुआ करता था. कुछ गरीब परिवार मेहनत मजदूरी करके अपनी आजीविका चलाते थे. मात्र एक-दो छोटी दुकानें थी जो अपने रिहायशी घरों में ही संचालित होती थी.

1962-63 के दौरान जब बाबा नींब करौरी की चरण-रज इस भूमि पर पड़ी और मन्दिर निर्माण का कार्य प्रारम्भ हुआ तो स्वाभाविक है कि मन्दिर निर्माण में लगे मजदूरों के आने से स्थानीय दुकानदारों का काम बढ़ा. जो स्थानीय ग्रामीणों की खरीददारी पर ही निर्भर थे, वाह्य मजदूरों व पास के गांवों, विशेषरूप से पाडली गांव के मजदूरों के आने से इन दुकानों में ग्राहकों की आवक बढ़ी. 15 जून 1964 में मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद तो देश-विदेश के बाबा के भक्तों का तांता लगना शुरू हुआ. रोडवेज स्टेशन का निर्माण हुआ, पोस्ट आफिस खुला, वन विभाग के विश्राम गृह का निर्माण हुआ और मन्दिर के पास ही नई दुकान खुल गई. महाराज जी के जीवनकाल में ही नैनीताल से रोडवेज की बसें भक्तों को लेकर छोड़ जाती और पुनः सायंकाल उनको लेने आती. हालांकि इन भक्तों से स्थानीय दुकानदारों को कोई ग्राहक नहीं मिलते. बाबा जी के भक्तों में देश के ही नहीं विदेशों से हिप्पी लोगों की भी बड़ी तादाद हुआ करती लेकिन स्थानीय दुकानदारों के हिस्से उनसे कुछ काम नहीं मिलता था.

महाराज जी मार्च-अप्रैल में कैंची आते और दीपावली के बाद वृन्दावन चले जाते. इन 6-7 महीनों में मन्दिर में काफी चहल-पहल रहती. सुबह से शाम तक बाबा जी के कैंची में उपस्थिति पर्यन्त भण्डारा चलता. स्थानीय लोग भी इस भण्डारे में भरपूर प्रसाद ग्रहण करते और भण्डारे के कार्यों में हाथ बंटाते. वृन्दावन की कीर्तन मण्डली द्वारा अखण्ड राम संकीर्तन से पूरी घाटी गुंजायमान रहती. कैंची मन्दिर परिसर में दो मुख्य भण्डारे हुआ करते, जिनमें एक प्रतिवर्ष 15 जून को स्थापना दिवस व दूसरा गुरू पूर्णिमा पर्व पर. समय के प्रवाह में भक्तों का सैलाब यहां निरन्तर बढ़ता गया. अब यह कैंची गांव न होकर कैंचीधाम के नाम से जाना जाने लगा. 10 सितम्बर 1973 को बाबा नींब करौरी के महाप्रयाण के बाद भी बाबा के भक्तों का यहां आना उसी आस्था के साथ बदस्तूर जारी ही नहीं रहा, बल्कि निरन्तर बढ़ता चला गया.
(Neem Karoli Dham Uttarakhand)

सितम्बर 2015 में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अमेरिका यात्रा पर गये. वहा 27 सितम्बर  2015 को उन्होंने फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग से मुलाकात की. मार्क जुकरबर्ग ने जब अपनी सफलता के पीछे भारत में स्थित कैंची धाम के बाबा नींब करौरी का जिक्र किया तो कैंची धाम व बाबा नींब करौरी का नाम राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया में छा गया. जो आज तक इस धाम से परिचित नहीं थे, उनके जुबान पर भी कैंची धाम व किस्मत बनाने वाले नींब करौरी बाबा छा गये. इसके बाद पड़ने वाले 15 जून के समारोह में जो जन सैलाब बढ़ा, वह सिवाय कोविड काल के साल दर साल बढ़ते जा रहा है.

पिछले वर्ष 17 नवम्बर 2022 को जब क्रिकेटर विराट कोहली अपनी पत्नी अनुष्का के साथ कैंचीधाम पहुंचे तो इस खबर ने भक्तों के बीच आग में घी का काम किया. परिणाम ये रहा कि जो कैंचीधाम गर्मियों के दरम्यान ही अधिक भीड़-भाड़ वाला रहता था, पिछली जाड़ों की कड़कती ठण्ड में भी सुबह से शाम तक दर्शनार्थियों से गुलजार रहा. भवाली में बाहर से आने वाले श्रद्धालु स्थानीय लोगों से पूछते सुने गये – यहां से विराट कोहली का मन्दिर कितनी दूर है? उनका आशय उस मन्दिर से था, जहां विराट कोहली गये थे. खबरों की मानें तो इस साल 15 जून को केवल एक दिन में कैंची धाम में दर्शनार्थियों की संख्या 3 लाख 20 हजार के करीब बतायी गयी है.

भक्तों की किस्मत कितनी चमकी? ये तो वे ही जानें लेकिन कैंचीधाम में जो किसी भी तरह का व्यापार कर रहे हैं, बेशक उनकी किस्मत जरूर चमकी होगी. किसी धार्मिक आयोजन अथवा समारोह के पीछे यदि किसी को रोजगार मिल रहा है प्रकारान्तर से यह भी पुण्य का काम है. बशर्ते की मजबूरी में अवसर तलाशने की नीयत न हो.
(Neem Karoli Dham Uttarakhand)

वर्तमान में कैंचीधाम एक छोटे से गांव से एक कस्बे के रूप में तब्दील हो रहा है. स्थानीय लोग अपने परम्परागत व्यवसाय कृषि, बागवानी व दुग्ध उत्पादन को छोड़कर छोटे-बड़े व्यापार को आजीविका का जरिया बना चुके हैं. कृषि योग्य खेत जंगली जानवरों व बन्दरों के आतंक से बंजर पड़े हैं उन्हीं बंजर खेतों पर अब होम स्टे बन रहे हैं. अपनी सामर्थ्यानुसार जिसके पास जैसा भी घर है,उसका एक हिस्सा होम स्टे में तब्दील हो चुका है. बड़े-बड़े होटल व रैस्टोरेन्ट बन चुके हैं, कई प्रतिष्ठानों के आउटलेट खुल चुके है, 25-30 स्थाई दुकानें खुल चुकी हैं जबकि 15 जून के दौरान फुटपाथ दुकानों की पूरे हाईवे के दोनों ओर, यहां तक कि पगडंडियों पर भी दुकानों की भरमार रहती हैं. स्थाई दुकानें अथवा होटल रैस्टोरेन्ट केवल स्थानीय ग्रामीणों के ही नहीं हैं बल्कि कैंचीधाम में व्यापारिक संभावनों पर बाहरी लोगों की निगाहें भी हैं और कुछ बाहरी लोग तो इसका लाभ भी ले रहे हैं.

कैंचीधाम दर्शन को आने वाले भक्तों के लिए टैक्सी संचालक अपनी-अपनी गोटी फिट करने में लगे हैं. कई इसी बहाने में कैंचीधाम का वीडियों बनाकर अपने फोन नंबर की पब्लिसिटी के साथ भक्तों तक परोस रहे हैं, दूसरे कई लोग कैंचीधाम का वीडियों बनाकर व्लागर के रूप में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.
(Neem Karoli Dham Uttarakhand)

यह सुकून देने की बात है कि कैंचीधाम के बदौलत हर किसी को कुछ न कुछ मिल रहा है. दूसरी ओर आहत करने वाली खबर ये आ रही हैं , कि वहां से लौटने वाले कई श्रद्धालुओं की शिकायतें भी मिल रही हैं. मसलन स्थानीय व्यापारियों द्वारा लूट-खसोट मचायी जा रही है. होटल व होम स्टे का किराया सामान्य दरों से कई गुना अधिक वसूला जा रहा है, प्रसाद के तौर पर मन्दिर में चढ़ाने हेतु लड्डू सामान्य से कई-कई गुना बढ़ी दरों में बेचे जा रहे हैं , यही बात श्रद्धालुओं द्वारा महाराज जी को चढ़ाये जाने वाले कंबलों पर भी कही गयी है.

इस जनसैलाब का एक खामियाजा यहां के पर्यावरण को भुगतना पड़ रहा है. दर्शनार्थी पर्यटक की हैसियत से यहां आते हैं और भोगवादी मनोवृत्ति के चलते कूड़ा-कचरा यहां फैला जाते हैं, जबकि उन्हें पता है कि यहां नियमित कूड़ा उठाने के लिए कोई पर्यावरण मित्र नियुक्त नहीं हैं. आस्था के इस पवित्र स्थल को कुछ लोग पिकनिक स्पॉट या पर्यटन स्थल का सा बर्ताव करते देखे गये हैं. यह तो नगरपालिका भवाली की दरियादिली व धाम के प्रति अटूट श्रद्धा का परिणाम है कि पालिका ने अपनी सीमा से बाहर होने के बावजूद पालिका अध्यक्ष संजय वर्मा के नेतृत्व में पर्यावरण मित्रों का सहयोग लेकर धाम से कूड़ा निस्तारण करवा रहे हैं. वहीं शिप्रा कल्याण समिति, अपने अध्यक्ष जगदीश नेगी के नेतृत्व में बारहों मास कैंचीधाम तथा पवित्र शिप्रा नदी से कूडा-कचरा उठाने में सतत् लगे रहते हैं. कुछ समय पूर्व तो कैंचीधाम के पास बहने वाली शिप्रा नदी को दर्शनार्थियों द्वारा पिकनिक स्पॉट बना दिया गया था , जहां स्नान करने तथा नदी के आस-पास मल-मूत्र विसर्जन की खबरें भी आई थी, जिस पर प्रशासन को हस्तक्षेप करना पड़ा. कैंचीधाम जो देश-विदेश के श्रद्धालुओं का आस्था का केन्द्र बन चुका है, उस स्थान की शुचिता व मर्यादित आचरण ही धाम की गरिमा को अक्षुण्ण रख पायेगा. जिला प्रशासन तथा मन्दिर प्रशासन को भी समय-समय पर मुस्तैदी से इस ओर नजर रखने की जरूरत है. धाम को धाम ही रहने दें, बाबा नींबकरौरी की रहमत है कि उन्होंने सबको आजीविका अवसर दिया है, इसे बाबा का प्रसाद समझ ग्रहण करें. अगर सोने की मुर्गी वाली सोच विकसित होगी तो कुदरत हमें बख्सेगी नहीं. अपने आचरण से बाबा नींब करौरी के कृपाभाजन बनें, कोपभाजन नहीं.
(Neem Karoli Dham Uttarakhand)

– भुवन चन्द्र पन्त

भवाली में रहने वाले भुवन चन्द्र पन्त ने वर्ष 2014 तक नैनीताल के भारतीय शहीद सैनिक विद्यालय में 34 वर्षों तक सेवा दी है. आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से उनकी कवितायें प्रसारित हो चुकी हैं.

इसे भी पढ़ें: लोकगायिका वीना तिवारी को ‘यंग उत्तराखंड लीजेंडरी सिंगर अवार्ड’ से नवाजा गया

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार

लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…

6 days ago

भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …

6 days ago

ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए

तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…

1 week ago

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

2 weeks ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

2 weeks ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

3 weeks ago