फोटो : सुधीर कुमार
उत्तराखण्ड में अलग-अलग विशेषताओं वाली जमीन के लिए अलग शब्द या वाक्यांश इस्तेमाल किये जाते हैं. (Names of Land with Different Characteristics in Kumaon)
‘तलांव’ यानि निचाई वाली ऐसी जमीन जहां सिंचाई की सुविधा हुआ करती है को; सेरा, सीरा, कुलो या पाणी खेत कहा जाता है. ‘उपरांव’ यानि ऊंचाई वाली वह जमीन जहां सिंचाई की सुविधा नहीं हुआ करती को; सिम कहा जाता है. दलदली भूमि, जिसे कृत्रिम सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती, को गांजो या सेमार कहा जाता है. अच्छी समतल जमीन को चौड़, तप्पड़ कहा जाता है. खेती के अयोग्य जमीन को टीत, उखड़ कहलाती है.
कई अलग नामों वाले खेतों के समूह को सार. तोक या तानो कहा जाता है. बाड़ो (बगीचा), गुरो, खेत, कनुलो, पूचुरो, हंगो आदि खेतों की स्थिति के अनुसार उनके नाम हुआ करते हैं. गैर यानि घाटी किनारे के खेत, कुमुनो यानि कृषिरत जमीन, बांजो माने बंजर, परती जमीन. ढलाऊ जगहों के खेत रेलो कहे जाते हैं. जिन खेतों में मालिक द्वारा स्वयं खेती की जाती है उन्हें सीर कहा जाता है. धूप वाली जमीन तैलो तो छाया वाली जमीन सीलो कहलाती है.
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दो खेतों के बीच की दीवार पगार, बिर या भिड़ा कही जाती है. जिस जंगली जमीन पर अस्थायी खेती की जाती है उसे झझर, मान या खिल कहते हैं.
मल्ला यानि ऊपर तो तल्ला मतलब नीचे वाला. उकाल मतलब चढ़ाई, वलार माने उतार. घट यानि पनचक्की तो ओखरियाल मतलब जिस ओखल में धान कूटा जाता है. भेड़ के बाड़े को खोड़ कहा जाता है तो पशुओं के अस्थायी बाड़े को गोठ, खरक या ग्वाड़ कहते हैं.
(हिमालयन गजेटियर : एडविन टी. एटकिंसन के आधार पर)
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जानकारी बहुत अच्छीहै, पर एक भी शब्द सही नहीं है...
"धूप वाली जमीन तैलो तो छाया वाली जमीन सीलो कहलाती है..."
जैसे इसमें तैलो लिखा है , ये तैल होता है....