नकुलेश्वर मंदिर पिथौरागढ़ जिले में स्थित है. माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडव भाइयों में नकुल द्वारा किया गया था इसीकारण इसे नकुलेश्वर कहा जाता है. सड़क से कुछ किमी की दूरी पर स्थित इस मंदिर में 30 से अधिक पुरानी पत्थर की मूर्तियों के अतिरिक्त इससे लगे धारे हैं.
(Nakuleshwar Temple Pithoragarh Uttarakhand)
जिला मुख्यालय से 10 किमी से भी कम दूरी पर स्थित इस मंदिर में सबसे पुरानी मूर्ति गुप्तकाल के शुरुआत की लगती है. वैसे कला और शिल्प के आधार पर इस मंदिर की अधिकांश मूर्तियां नवीं से सोलहवीं सदी के बीच की लगती हैं. हालांकि मंदिर में मौजूद सबसे पुरानी विष्णु की प्रतिमा पांचवी सदी की बताई जाती है.
नकुलेश्वर मंदिर में एक-एक मूर्ति की भव्यता पर दिनों-दिन बात की जा सकती. कुछ वर्ष पहले मंदिर की अधिकांश मूर्तियों में पीले रंग किये जाने से मूर्तियों की भव्यता कम हो गयी है. मंदिर में पूजे जाने वाली एक मातृका में वाराही, इन्द्राणी, चामुंडा और वामावर्त गणेश अंकित हैं. एक अन्य जगह महिषमर्दिनी की स्वतंत्र मूर्ति भी मंदिर में मौजूद है. दोनों के विषय में विस्तार से पढ़िये:
(Nakuleshwar Temple Pithoragarh Uttarakhand)
उत्तराखंड में मातृका पट पूजने की पुरानी परम्परा रही है. पुराणों में माना गया है की मातृका में निरुपित सात देवियां, सात मानवीय गुणों की सूचक हैं. अलग-अलग मातृका पट में इनकी संख्या दो, तीन या चार के रुप में मिलती हैं. नकुलेश्वर मंदिर की इस तस्वीर में वाराही, इन्द्राणी, चामुंडा और वामावर्त गणेश अंकित हैं. यहां गणेश को वामावर्त बैठा हुआ उनकी सूंड़ की दिशा के आधार पर कहा गया है. ललितासन गणेश की सामान्य मूर्तियों में उनका उसी ओर का पैर मुड़ा रहता है जिस ओर सूंड़ मुड़ती है जबकि इस मूर्ति में दोनों अलग-अलग दिशा में हैं.
ललितासन सीन लम्बोदर त्रिशूल, दन्त, यज्ञोपवीत आदि से सज्जित हैं उनके साथ चामुंडा, इन्द्राणी और वाराही की मूर्ति को बार-बार देखा जाना चाहिये. उनके मुख, वक्ष, स्कन्ध, केश और आभूषण का बारीक़ शिल्प अद्भुत है.
(Nakuleshwar Temple Pithoragarh Uttarakhand)
यह प्रतिमा उत्तराखंड में मौजूद सभी प्रतिमाओं में सबसे सुंदर मानी जाती है. उनके एक दाएं हाथ में तलवार है तो दूसरे में त्रिशूल है. त्रिशूल का अगला भाग महिषासुर की पीठ पर धंसा है. एक बाएं हाथ में ढाल और दूसरे में उन्होंने महिषासुर के बाल पकड़े हैं. उनके वाहन सिंह ने मुंह से महिषासुर को दबोच कर रखा है.
महिषमर्दिनी ने स्वयं अपने दाएं पैर से महिषासुर को दवा कर रखा है. सुंदर बाल और मुकुट धारण की महिषमर्दिनी के दोनों कानों के कुंडल अलग-अलग प्रकार के हैं. उनके गले में हार है और माला कमर तक लटकती साफ देखी जा सकती है.
(Nakuleshwar Temple Pithoragarh Uttarakhand)
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