छह-सात दशक पहले, हिंदी सिनेमा में रोमानी उत्थान के गीतों की जो धारा बहनी शुरू हुई, लंबे अरसे तक उनका प्रभाव बना रहा. इन गीतों के जरिए सिनेप्रेमियों को लौकिक प्रेम को अभिव्यक्त करने के कई रंग सुनने को मिले.
उस दौर के गीत चित्रमय तो होते ही थे, साथ-साथ अंतर्भावनाओं को व्यंजित करने में भी असाधारण रूप से सफल होते थे. इन गीतों की चित्रमयी भाषा ने प्रेम की अनेक प्रकार से व्यंजना की, तो श्रोताओं को खास अनुभवों के दौर में स्वयं को समझने में मदद भी दी.
कौन आया कि निगाहों में चमक जाग उठी..
यह वक्त(1965) फिल्म का एक कर्णप्रिय गीत है. साहिर लुधियानवी के बोलों को रवि की धुन के साथ, आशा भोसले ने बड़े खूबसूरत अंदाज में गाया है. यह गीत मीना (साधना) पर फिल्माया गया.
नायिका अपने मनभावन को याद करते हुए गीत गाती हैं. गीत के आरंभ होते ही राजू (राजकुमार) खास अंदाज में उस आलीशान मकान में एंट्री करता है. उधर नायिका कक्ष की साज-सज्जा में जुटी हुई दिखती है. उसके हाथों में ताजे फूल रहते है, जिन्हें वह चुन-चुनकर फूलदान में सजाती है और आत्मलीन होकर गीत गाती रहती है. वह मुग्ध होकर अपने ही खयालों में गुम दिखती है.
तो राजू अपने खास स्टाइल में चाबी घुमाते हुए सीढ़ियाँ चढ़ता हुआ नजर आता है. इस बात से बेखबर नायिका अपने मनोभावों को व्यंजित करती चली जाती है.
गीत के बोलों में मानवीकरण का खूबसूरत नमूना दिखाई पड़ता है. आखरी अंतरे को वह पियानो पर गाती है. उसकी पीठ की तरफ खड़ा राजू चुपचाप इस खूबसूरत गाने को सुन रहा होता है. गीत खत्म होने पर, वह अपने खास अंदाज में ताली बजाकर उसका उत्साहवर्धन करता है.
गीत में खास बात यह है कि दोनों के मन में अपने-अपने मुताबिक भाव उमड़ते हुए दिखाई पड़ते हैं. बाद में जाकर यह रहस्योद्घाटन होता है कि वह दरअसल इस गीत को रवि (सुनील दत्त) की याद में गा रही थी.
‘ये कौन आया..रोशन हो गई महफिल किसके नाम से…’ यह फिल्म साथी (1968) का एक पॉपुलर गीत है. मजरूह सुल्तानपुरी के बोलो को नौशाद का साथ मिला और सुर है लता मंगेशकर का.
यह गीत आभूषणों से सजी-सँवरी रजनी (सिमी ग्रेवाल) पर फिल्माया गया. वह किसी जलसे में गा रही होती है. पहले ही अंतरे में रवि (राजेंद्र कुमार) को महफिल में आते हुए दिखाया जाता है. फिर वे मेहमाननवाजी में जुटे हुए दिखाई देते हैं. नायिका उल्लास से गीत गाती हैं. गीत में हृदय के सूक्ष्म भावों का बड़ा सुंदर चित्रण हुआ है. गीत के बोलों में मन के भावों का खूबसूरत मानवीकरण किया गया है
गीत के बोलों से स्पष्ट हो जाता है कि किसी खास (राजेंद्र कुमार) की आमद से महफिल खुशनुमा हो गई है. नायिका अपने भावों को इस गीत के माध्यम से मानों सारे जहाँ को बतला देना चाहती है.
दरअसल फिल्म साथी, त्रिकोणीय प्रेम पर आधारित है. जिसमें जहाँ एक ओर अनाथ रवि को रजनी के माता-पिता संरक्षण देते हैं और रजनी रवि के प्रति एकनिष्ठ रूप से आकर्षित रहती है. तो दूसरी ओर रवि, नर्स शांति (वैजयंती माला) के त्याग और समर्पण को देखकर उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता.
फिल्म के आरंभ में यह महफिल, रवि के डॉक्टरी पूरी करने के बाद, विदेश से घर वापसी पर रजनी द्वारा थ्रो की जाती है.
‘सामने ये कौन आया दिल में हुई हलचल…’
यह फिल्म जवानी दीवानी (1972) का गीत है. आर डी बर्मन के संगीत के साथ, आनंद बक्शी के बोलो को किशोर कुमार का स्वर मिला.
गीत की पृष्ठभूमि एक क्लब की दिखाई देती है, तो स्वाभाविक रूप से वहाँ बैंड हैं, हुड़दंग है. एक किस्म से यह भी कहा जा सकता है कि, हल्का सा उस दौर का हिप्पी प्रभाव दिखाई पड़ता है.
नायिका (जया भादुरी) बेनी सिन्हा (नरेंद्र नाथ) के संरक्षण में क्लब में आई हुई दिखाई देती है. वह उसको अपनी निगरानी में रखने की कोशिश करता हुआ नजर आता है, तो विजय (रणधीर कपूर) नायिका को केंद्रित कर, चेंज कर-करके गीत गाता है. वह उसके रक्षक को निष्प्रभावी करने में सफल हो जाता है.
शुरू में तो नायिका असहज दिखाई देती है. गीत के अंत तक उसके चेहरे पर खुशी दिखाई पड़ती है. रौनक छाने लगती है.
ललित मोहन रयाल
उत्तराखण्ड सरकार की प्रशासनिक सेवा में कार्यरत ललित मोहन रयाल का लेखन अपनी चुटीली भाषा और पैनी निगाह के लिए जाना जाता है. 2018 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘खड़कमाफी की स्मृतियों से’ को आलोचकों और पाठकों की खासी सराहना मिली. उनकी दो अन्य पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य हैं. काफल ट्री के नियमित सहयोगी.
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