मोहम्मद अली बॉक्सिंग का वर्ल्ड हैवीवेट चैम्पियन बन चुका था जब 1966 के साल अमेरिका ने अपनी दादागीरी के चलते वियतनाम जैसे छोटे से देश पर हमला बोल दिया. अमेरिका के हर युवा को युद्ध में अनिवार्य रूप से शामिल होने के आदेश हुए लेकिन अली ने साफ़ मना कर दिया.
(Muhammad Ali Hindi)
जब भी उससे सार्वजनिक रूप से इस बारे में सवाल किये जाते वह ख़ुद की बनाई एक तुकबन्दी गाकर जवाब दिया करता:
कीप आस्किंग मी, नो मैटर हाउ लॉन्ग
ऑन द वॉर इन विएतनाम, आई सिंग दिस सॉन्ग
आई एन्ट गॉट नो क्वारल विद द विएत कान्ग
इसके बाद उसने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “मेरी अंतरात्मा इजाजत नहीं देती कि मैं एक शक्तिशाली अमेरिका की खातिर अपने भाइयों की हत्या करने जाऊं. मैं उन पर गोली चलाऊँ भी तो किस लिए? उन्होंने मुझे कभी गाली नहीं दी, मुझे ज़िंदा जलाने की कोशिश नहीं की, न मुझ पर अपने कुत्ते छोड़े. उन्होंने मुझसे मेरी नागरिकता नहीं छीनी. उन्होंने मेरे माँ-बाप के साथ हत्या और बलात्कार जैसे पाप नहीं किये. उन पर गोली चलाऊँ तो क्यों? मैं उन गरीबों पर कैसे गोली चला सकता हूँ?”
अली के इस खुले विरोध को राजद्रोह माना गया और उसे पांच साल की सज़ा सुनाई गई. पासपोर्ट छीन कर बॉक्सिंग लाइसेंस निरस्त कर दिया गया. यह अलग बात है कि वकीलों ने उसे जेल जाने से बचा लिया लेकिन एक एथलीट के तौर पर उसके जीवन के सबसे अच्छे साल तबाह हो गए.
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खुले आम किये गए इस सरकारी दमन को शुरू में लोगों ने खूब समर्थन दिया. मोहम्मद अली के घर में तीन टेलीफोन थे. तीनों दिन-रात बजते रहते. जब भी उन्हें उठाया जाता दूसरी तरफ से कोई न कोई नफ़रत भरा स्वर होता. कोई उसे नमकहराम नीग्रो कहता तो कोई डरपोक चूहा. जो पुलिस वाले कभी उसे एस्कॉर्ट करने में गर्व महसूस करते थे वे उसे जल्दी सबक सिखाने की धमकियां देने लगे.
लेकिन मोहम्मद अली अंतर्राष्ट्रीय ख्याति का एथलीट थी. धीरे-धीरे दुनिया भर में उसके लिए समर्थन जुटना शुरू हुआ. अब ऐसे लोगों के फोन आने लगे जो उसके कदम को साहसपूर्ण, नैतिक और बिलकुल उचित मानते थे. अली को स्कूल-कॉलेजों, सेमिनारों-सभाओं में भाषण देने को बुलाया जाने लगा.
एक दिन मोहम्मद अली के भाई रहमान ने उसे फोन थमाकर बोला कि इंग्लैण्ड से कोई बूढ़ा आदमी उससे बात करना चाहता है.
बूढ़े ने खांटी ब्रिटिश अंग्रेज़ी वाले लहजे में पूछा, “क्या पत्रकारों ने ठीक वही बातें लोगों को बताईं जो तुमने कही थी?”
मोहम्मद अली ने हामी भरते हुए कहा, “आप यह बताइये दुनिया भर के लोग यह क्यों जानना चाहते हैं कि मैं विएतनाम के बारे में क्या सोचता हूँ? मैं न तो कोई नेता हूँ न राजनैतिज्ञ. मैं तो महज़ एक एथलीट हूँ.”
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“देखो भाई” बूढ़े ने कहा, “अमेरिका द्वारा विएतनाम में किया जा रहा यह युद्ध दूसरी लड़ाइयों से ज़्यादा पाशविक है. तुम एक चैम्पियन फाइटर हैं और आम तौर पर दुनिया भर के चैम्पियन खिलाड़ी वही कहते-करते हैं जैसा दुनिया कह-कर रही होती है. कोई भी दूसरा खिलाड़ी खुशी-खुशी लड़ने चला गया होता. तुमने अपने व्यवहार से लोगों को हक्का-बक्का कर दिया.”
अली को बूढ़े की आवाज़ पसंद आई. उसने बूढ़े को बताया वह जल्द ही इंग्लैण्ड आकर वहां के हैवीवेट चैम्पियन हेनरी कूपर से लड़ने आने वाला है. उसने पूछा, “आपको क्या लगता है कूपर जीतेगा या मैं?
बूढ़े ने हंसते हुए कहा, “हेनरी कूपर काबिल बॉक्सर है लेकिन मैं आपको चुनूंगा.”
मोहम्मद अली ऐसे मौकों पर अक्सर जो कहता था उसने फिर से कहा, “तुम जितने बेवकूफ दिखाई देते हो, असल में हो नहीं.”
अली ने बूढ़े को हेनरी से साथ होने वाले मुकाबले में आने का न्यौता दिया.
बातचीत से पहले बूढ़े ने अपना नाम बर्ट्रेंड रसेल बताया था. ज़ाहिर है मोहम्मद अली ने उसका नाम नहीं सुन रखा था.
कुछ सालों बाद अली इंग्लैण्ड गया लेकिन बूढ़ा फाइट देखने नहीं आ सका. अलबत्ता दोनों के बीच अगले दो साल तक चिठ्ठियों और ग्रीटिंग कार्ड्स का सिलसिला चलता रहा.
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एक दिन अली एक अखबार के दफ्तर में बैठा वर्ल्ड बुक एन्साइक्लोपीडिया खोले बैठा था. उसने इत्तफ़ाकन लम्बी गर्दन वाले एक बूढ़े की फोटो वाला पन्ना खोला. नाम लिखा था – बर्ट्रेंड रसेल. आगे लिखा था – बीसवीं शताब्दी के महानतम गणितज्ञ और दार्शनिक.
मोहम्मद अली सकपका गया. उसने उसी वक़्त कागज़ कलम निकाल कर चिठ्ठी लिखना शुरू किया. रसेल से क्षमा माँगते हुए अली ने लिखा कि वह इस बात पर शर्मिन्दा है कि उस रोज़ अपने बचकानेपन में उसने उनसे न जाने क्या-क्या कह दिया था.
रसेल ने जवाब में लिखा, “मोहम्मद अली, मुझे तुम्हारा चुटकुला पसंद आया था. वैसे तुम जितने बेवकूफ दिखाई देते हो, असल में हो नहीं.”
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