कॉलम

शैलेश मटियानी लिख चुके थे अपने पागलपन का रोजनामचा

शैलेश मटियानी को हममें से कितने लोग जानते हैं? सौ, दो सौ, चार सौ या हजार-दो हजार. यही न? कुछ ने सिर्फ नाम सुना होगा या एकाध कहानी पढ़ी होगी. आज से तीस-पैंतीस साल या थोड़ा और पहले पढ़ाई-लिखाई से फारिग हो कर कहीं ठिकाने लग चुके, किसी बैंक में हिन्दी अफसर हो चुके या कहीं कोई और अफसरी कर रहे या किसी स्कूल या कालेज में पढ़ा रहे लोगों से भी अगर आप यह सवाल पूछ लें तो अव्वल तो वे बचना चाहेंगे. वे कन्नी काटेंगे. वे अपनी दाढ़ी के बाल खुजलाएंगे. वे बगलें झांकेंगे. वे धुली धुलाई अपनी शर्ट की कालर झाड़ेंगे और धोबी या धोबन की सात पीढ़ियों को तारेंगे. पक्का जानिए कि वे सारे जतन करेंगे, जो सवाल टालने को जरूरी होते हैं. जब आप अड़ ही गये तो याद करने की कोशिश में कनपटी खुजलाएंगे और कहेंगे: पढ़ा तो है, लेकिन बहुत पहले. याद नहीं आ रहा कि क्या पढ़ा. यह हैं शैलेश मटियानी. (Mithilesh Singh Remembers Shailesh Matiyani)

हमारी-आपकी यादों की किसी कोटरी में बरसों बरस से अटके हिन्दी कथाकार शैलेश मटियानी जिन्होंने विकल्प जैसी पत्रिका का संपादन किया, जिन्होंने दूधनाथ सिंह और मार्कंडेय और उपेंन्द्र नाथ अश्क और पानू खोलिया जैसे कितने चेहरों और कितनी कितनी धाराओं-अंतर्धाराओं को साझा मंच दिया, जिन्होंने लिखा कम, लेकिन जो लिखा, उसे मिन्हा कर के हिंदी कथा संसार की निरंतर प्रवहमान विकास यात्रा की कोई तस्वीर आप नहीं बना पाएंगे. बनेगी तो वह अधूरी होगी और अधूरी ही रह जाएगी. (Mithilesh Singh Remembers Shailesh Matiyani)

इलाहाबाद वह शहर रहा, जिस पर शैलेश मटियानी सौ जान से कुरबान थे. जौक को दिल्ली की गलियों से जितनी मोहब्बत रही होगी, उससे कहीं ज्यादा मोहब्बत शैलेश मटियानी को इलाहाबाद के कर्नलगंज, कीडगंज, मिंटो रोड, मम्फोर्डगंज, सिविल लाइंस या अल्लापुर से थी. लिखने-पढ़ने के बुनियादी काम के अलावा बंबई के ढाबों में  एक से एक किस्म के खाने बनाने का विपुल अनुभव और आम की एक से एक बेहतरीन किस्मों को पहचाने की तमीज अपने साथ लेकर इलाहाबाद आए थे शैलेश मटियानी. यह जानते हुए कि इलाहाबाद में वह ताकत नहीं है जो सिर्फ लिखने- पढ़ने के बूते आपको दो जून की रोटी मुहय्या करा सके.

आज आलमारी में किताबें टटोलते हुए अचानक दिख गये शैलेश मटियानी. आंखों के आगे तैर गया इलाहाबाद. तैर गयी उनके जवान हो रहे बेटे की लाश. उसका  खून किया गया था और पुलिस के लिए यह कोई खास घटना नहीं थी. अगर मैं भूल नहीं रहा तो यह 1980 का दशक था.  बम मार कर उस बच्चे की हत्या हुई थी और पुलिस इसे अदावत मान रही थी. कैसी अदावत भाई? जो लड़का मनसोख नहीं है, जिसकी लफंगों से यारी नहीं है, जिसके बाप के पास लिखने के अलावा आमदनी का कोई जरिया नहीं है, जिसके पास इलाहाबाद में अपना कोई घर नहीं है, जिसका कोई आपराधिक रिकार्ड नहीं है और जो जवान हो रहा हो- उसे तुम मार डालोगे? और पुलिस कहेगी- निजी अदावत का मामला लग रहा यह? बुद्धिजीवियों का वह शहर, मेरा अपना शहर, मेरा महबूब शहर, मेरी सघन यादों और उन यादों से जुड़े सैकड़ों दरीचों का वह शहर इलाहाबाद उस रोज पहली मर्तबा मुझे बहुत नपुंसक लगा था. मैं बहुत रोया. बहुत बहुत रोया था उस रोज. अंदाजा लगाइए, कैसे झेली होगी उस आदमी ने यह पीड़ा? कैसे रखा होगा अपने परिवार को उस दुसह दौर में? कैसे खींची होगी घर खर्च की गाड़ी? कितनी बार जीतेजी मरा होगा वह शख्स?

लेकिन वह मरा नहीं. बचा रह गया. अलबत्ता पागल हो गया. उसे पहाड़ की याद आई. उसे अपने पुरखे याद आए. उसे अपना घर याद आया. यादें आती रहीं और वह भूलता रहा. वह अपने वतन लाया गया, ताकि लिखना-पढ़ना नये सिरे से शुरू हो और उसे मंटो बनने से बचाया जा सके. लेकिन ऐसा नहीं हो पाया और वही हुआ. इस बार वह सचमुच का मर गया. यह इलाहाबाद एपिसोड के बहुत बाद का वाकया है. कहां मरा, कैसे मरा और क्यों मरा- आप इस पचड़े में न पड़ें. आप अपनी नींद खराब न करें. जुनून का यही हश्र होता है कि या तो आप मार डाले जाते हैं या लूशुन की तरह ‘पागल की डायरी’ लिखने को छोड़ दिये जाते हैं. शैलेश मटियानी लिख चुके थे अपने पागलपन का रोजनामचा. उन्हें जाना ही था.

उनका जो कथा संग्रह मेरे हाथ आया है, वह है: बर्फ की चट्टानें. कुल जमा छह कहानियां हैं इसमें और एक भी कहानी ऐसी नहीं है, जिसे आप पढ़ें और बेचैन न हों. पहाड़ की भाषा और जीवन का खुरदरापन. आग से तपते तवे पर पानी की बूंदें गिरती हैं तो कोई आवाज आपको सुनाई देती है? वह आवाज कैसी होती है? उस आवाज जैसी ही हैं उनकी कहानियां. दादा! मेरे साथ रहो. सिर्फ आज की रात. तुम मुझे सुन पा रहे हो?

लेखक

-मिथिलेश कुमार सिंह

(यह लेख www.sarthaksamay.com से साभार लिया गया है.)

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

View Comments

Recent Posts

यम और नचिकेता की कथा

https://www.youtube.com/embed/sGts_iy4Pqk Mindfit GROWTH ये कहानी है कठोपनिषद की ! इसके अनुसार ऋषि वाज्श्र्वा, जो कि…

20 hours ago

अप्रैल 2024 की चोपता-तुंगनाथ यात्रा के संस्मरण

-कमल कुमार जोशी समुद्र-सतह से 12,073 फुट की ऊंचाई पर स्थित तुंगनाथ को संसार में…

23 hours ago

कुमाउँनी बोलने, लिखने, सीखने और समझने वालों के लिए उपयोगी किताब

1980 के दशक में पिथौरागढ़ महाविद्यालय के जूलॉजी विभाग में प्रवक्ता रहे पूरन चंद्र जोशी.…

5 days ago

कार्तिक स्वामी मंदिर: धार्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का आध्यात्मिक संगम

कार्तिक स्वामी मंदिर उत्तराखंड राज्य में स्थित है और यह एक प्रमुख हिंदू धार्मिक स्थल…

1 week ago

‘पत्थर और पानी’ एक यात्री की बचपन की ओर यात्रा

‘जोहार में भारत के आखिरी गांव मिलम ने निकट आकर मुझे पहले यह अहसास दिया…

1 week ago

पहाड़ में बसंत और एक सर्वहारा पेड़ की कथा व्यथा

वनस्पति जगत के वर्गीकरण में बॉहीन भाइयों (गास्पर्ड और जोहान्न बॉहीन) के उल्लेखनीय योगदान को…

1 week ago