सुन्दर चन्द ठाकुर

रोने वाली बुढ़िया की कहानी से जानिये जीवन में सकारात्मक नजरिए से क्या फर्क पड़ता है

हमारे जीवन में कैसी स्थितियां हैं, इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता, पर उनके प्रति हमारे नजरिए से बहुत ज्यादा फर्क पड़ता है. कई बार यह नजरिया हमारी खुशी और कई बार दुख की वजह बनता है. ऐसा भी संभव है कि हमारे जीवन में चीजें और स्थितियां एक जैसी ही रहें, लेकिन हमारा उनके प्रति अलग-अलग नजरिया होने के कारण उनका हम पर अलग-अलग प्रभाव पड़े. जब हम सकारात्मक नजरिए से चीजों, लोगों और स्थितियों को देखते हैं, तो हमें उनका उजला पक्ष दिखाई देता है. नजरिया अगर नकारात्मक हो, तो हमें उन्हीं चीजों, लोगों और स्थितियों का अंधकार भरा पक्ष दिखाई देता है. नजरिए के इस प्रभाव को समझने के लिए एक छोटी-सी कथा पढ़ें :
(Mind Fit 19 Column)

एक बार एक गरीब बूढ़ी महिला थी, जो हमेशा रोती ही रहती थी. उसकी दो बेटियां थीं. उसने अपने जीवनभर की कमाई लगाकर दोनों बेटियों की शादी की थी. बड़ी बेटी की शादी छतरी के दुकानदार से हुई थी, जबकि छोटी बेटी का पति धोबी का काम करता था.

धूप वाले दिन बूढ़ी महिला अपनी बड़ी बेटी के बारे में सोचती – ओह इतना अच्छा मौसम है, धूप ख्रिली हुई है, ऐसे में कोई छाता क्यों खरीदेगा. बड़ी बेटी की तो दुकान ही बंद हो जाएगी. वह जितना बारिश और बेटी के बारे में सोचती, उतना उदास होती जाती और रोने लगती. इसी तरह जब बारिश होती, तो वह अपनी छोटी बेटी के बारे में सोचने लगती – ओह, अब उसके गीले कपड़े कैसे सूखेंगे. उसका तो काम ही कपड़े धोना और उन्हें इस्त्री करना है. उसका तो धंधा ही चौपट हो जाएगा. वह क्या कमाएगी और क्या खाएगी. वह बारिश का मौसम को देखते हुए कुछ इसी तरह सोचती रहती और उदास होकर रोने लगती.

इस तरह धूप होती अथवा बारिश, दोनों ही स्थितियों में वह बेहद उदास हो जाती और आंसू बहाने लगती. यानी कि धूप होती, तो वह बड़ी बेटी को याद करते हुए रोती. बारिश होती, तो छोटी बेटी को याद करते हुए. उसके पड़ोसी भी उसे चुप नहीं करवा पाते. वे मजाक में उसे ‘रोने वाली बुढ़िया’ कहने लगे.
(Mind Fit 19 Column)

एक दिन बूढ़ी महिला एक संत से मिली. वह यह जानने को बहुत उत्सुक थे कि वह हमेशा क्यों रोती रहती है. बूढ़ी महिला ने उन्हें वजह बताई, तो वह हंसने लगे. अब तुम्हें रोने की जरूरत नहीं. मैं तुम्हें खुश होने का रास्ता बताऊंगा – संत मुस्कराते हुए बोले. बूढ़ी महिला के मन में संत के प्रति अगाध श्रद्धा थी. उसने उनके पैरों में अपना सिर रख दिया. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि कोई उसे दुख से बाहर निकलने का रास्ता भी सुझा सकता है. वह संत के सामने हाथ जोड़कर बैठ गई.

तब संत ने उसे कहा कि तुम्हें कुछ नहीं, बस एक छोटा-सा बदलाव करना है. धूप वाले दिन तुम्हें अपनी छोटी बेटी के बारे में सोचना है कि उसके कपड़े सूख जाएंगे और धंधा खूब चलेगा व बारिश वाले दिन अपनी बड़ी बेटी के बारे में सोचना है कि उसकी छतरियां खूब बिकेंगी और उसकी अच्छी कमाई होगी. बूढ़ी महिला को अंतत: बात समझ में आई. उस दिन के बाद धूप हो या बारिश, लोगों ने उसे रोने की बजाय मुसकराते हुए ही देखा. अब लोग उसे ‘रोने वाली बुढ़िया’ की जगह ‘मुस्कराने वाली बुढ़िया’ पुकारने लगे.

इस बूढ़ी महिला की तरह हम भी अपने गलत नजरिए के कारण दुखी हैं. हर चीज के दो पक्ष होते हैं – उजला और अंधकार भरा. यह हम पर निर्भर करता है कि हम क्या देखते हैं. कोरोना महामारी जैसी चीज के भी आप दो पक्ष देख सकते हैं. जिन्हें उदास और निराश होना है, वे मृत्यु और तकलीफों को देख सकते हैं. जिन्हें खुश रहना है, वे कोरोना महामारी के चलते जीवन में आए अनगिनत सकारात्मक बदलावों को देख सकते हैं. चीजों और स्थितियों की तरह ही लोग भी होते हैं. हर इंसान में अच्छे और बुरे दोनों गुण होते हैं.

यह हम पर निर्भर है कि हम दूसरों के अवगुणों को देखते हुए उनके प्रति नेगेटिव भावनाओं से भरे रहते हैं या फिर उनके गुणों को देखकर उनके लिए अच्छा महसूस करते हैं. याद रखें कि हमारी खुशियों पर हमारे अलावा किसी का वश नहीं. अगर हमारा नजरिया पॉजिटिव हैं, तो हम नेगेटिव चीजों में भी कुछ अच्छा खोज लेंगे. अंधेरे में भी हमें रोशनी का सुराग मिलने लगेगा.
(Mind Fit 19 Column)

-सुंदर चंद ठाकुर

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सुन्दर चन्द ठाकुर

कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.

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