बाल शोध मेला (सीखने- सिखाने की अनूठी पहल) सरकारी विद्यालयों में होते नवाचार
8 फ़रवरी 2020
स्थान: पिथौरागढ़
विद्यालय: राजकीय प्राथमिक विद्यालय मनकटिया
प्रधानाध्यापिका: श्रीमती दीपा पाण्डेय
सहायक अध्यापक:- भूपेंद्र कोहली
छात्र संख्या: 21 (Migration in Uttarakhand School Children Pithoragarh)
आज जी.पी.एस मनकटिया जो कि कोट भालद्याऊ नामक गांव की ग्राम सभा है, में जाने का मौका मिला. जाना इसलिए हो पाया क्यूंकि वहां एक बाल-शोध मेले का आयोजन किया जाना था, और सच कहूं तो मैंने इससे पहले लोक-महोत्सव, छलिया-महोत्सव, शरदोत्सव आदि तो पिथौरागढ़ में होते देखे ही हैं, पर बाल शोध मेला कभी ना देखा, ना कभी ऐसे किसी इवेंट में भागीदारी रही, और मेला भी ऐसे स्कूल में जहां आंगनबाड़ी से लेकर पांचवी तक की कक्षाएं चलती हो, तो ऐसे में शोध जैसा शब्द हैरान तो करता ही है पर साथ में जिज्ञासा से भी भर देता है, तो इन्हीं कुछ मन में उठते प्रश्नों के साथ मैं विद्यालय पहुंच गई और बच्चे अपने सदाबहार अंदाज़ में सबका खुले दिल से स्वागत कर रहे थे, कुछ गुब्बारों से खेलने में मशगूल थे, कुछ दौड़ कर सामान ला रहे थे ,ले जा रहे थे. Migration in Uttarakhand School Children Pithoragarh
तभी मेरी नज़र स्टालों में पड़ी, कुछ बच्चे स्टॉल लगाकर लोगों से संवाद कर रहे थे, तो किसी ने मेले में दुकान सजाई थी. Migration in Uttarakhand School Children Pithoragarh
वहीं कई मॉडल तो एकदम हैरान करने वाले थे, जैसे कि एक बांध का मॉडल, बच्चों का वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी बनाना, उनका मिट्टी के एक ढेर में पृथ्वी के विभिन्न धरातल को दिखा पाना मेरी सोच से तो परे था, इतने छोटे बच्चे और शहर से इतनी दूर इतने बेह्तरीन मॉडल बनाकर तैयार किये हुए थे की एक पल के लिए आप खुद सोचने लगेंगे, क्या ये सच में सरकारी स्कूलों के बच्चों द्वारा किया गया काम है? वही स्कूल जहां पर अमूमन लोगों कि यही सोच रहती है की यहाँ पढ़ाई नहीं होती, या आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्र जहां पर पढ़ते हैं.अब वह हिस्सा आता है जो मुझे और भी हैरान कर गया,वो थे बच्चों के शोध.बच्चों ने एक शोध की पलायन पर जिसमें उन्होंने तीन गांव का यह डाटा सबके सामने ला दिया कि किन -किन लोगों ने पलायन किया? किस सन् में किया? क्यों किया? और अब उनके परिवार का कौनसा सदस्य गांव में रह गया है? और यह बात हैरान कर गई की कैसे गांव सिमटते जा रहे हैं, और शहर बढ़ते ही जा रहे हैं, उनके शोध में हर उस व्यक्ति का नाम था जो अब गांव में नहीं है, और कब से नहीं है, पलायन क्यों होता है? कैसे रोका जाए? Migration in Uttarakhand School Children Pithoragarh
इस पर भी बच्चों ने जो वजह गिनाई वो आश्चर्यचकित करती है, इसमें एक कविता जो दिल को छू गई उसकी कुछ पंक्तियां थी- “ चाबियां पलायन कर गयी, ताले लगे हैं दरवाजों पर. अब कौन दौड़ कर जाएगा शहर से उन बूढी आवाजों पर?”
पलायन की वजहें उन्होंने जहाँ रोजगार, स्वास्थ्य तो गिनाई ही, उसके अतिरिक्त आर्थिक संपन्नता और गरीबी को भी पलायन का कारण माना था, उस मेले में आए समुदाय के लोगों की भागीदारी को देखते हुए ये महसूस होता है कि कैसे अब भी उनका गांव पलायन के विरुद्ध खड़ा है, जहां एक तरफ गांव के गांव खाली हो चुके हैं वहां मनकटिया, जलतूरी जैसे- गांव भी है जहां के लोग अब भी अपनी जड़ो से जुड़े रहना चाहतें हैं.
इसके अलावा आस-पास के गांव में कौनसी योजनाएं कार्य कर रही हैं? इनसे क्या लाभ है? किनको इससे लाभ है? इस पर भी एक शोध थी. अपने आस-पास के सारे व्यंजन, वाद्ययंत्र, पहेलियां, कौन बच्चा कितना जंक खाता है? या गांव में कितने बालक बालिकाएं हैं ? कितने बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं और कितने प्राइवेट में ? इन सभी डाटा में बच्चों ने बेहतरीन कार्य किया था.इसके अलावा उस क्षेत्र के और भी स्कूल आए थे और सबके अपने स्टॉल लगे हुए थे, और सारे बच्चे अपने स्टाल्स के बारे में आत्मविश्वास से बता पा रहे थे, इतने आत्मविश्वास से भरे और सरकारी स्कूलों की ओर आस जगाते बच्चों को भी देखने का मौका मिला इसके लिए मै खुद को भाग्यशाली मानती हूं, वरना मैं शायद जीवन भर सरकारी स्कूल मतलब यही मानती की जहां बच्चे प्राइवेट स्कूल के बच्चों से कमतर होते हैं.
पर अब मेरी भी सोच बदली है और इसका श्रेय मनकटिया और मनकटिया में आएं बच्चों को जाता हैं. अगर पलायन जैसे गंभीर विषय को इतने छोटे बच्चे ऐसे समझ पाएं हैं तो इसका श्रेय ना केवल उनके शिक्षकों को जाता है बल्कि उस समुदाय को भी जाता है जो हमें एक ऐसी पीढ़ी देने जा रहे हैं जो हमसे कहीं ज्यादा विचारक, चिंतनशील और कर्मठ होगी.सरकारी विद्यालयों के बच्चे अगर ये कर पा रहे हैं तो अब जरूरत है इसे और प्रोत्साहन देने की ,सही मायनों में विद्यालय आनंदालय होते होंगे अगर उन्हें ऐसे शिक्षित किया जा रहा होगा. Migration in Uttarakhand School Children Pithoragarh
इस मेले ने मुझे बहुत कुछ सिखा दिया या यूं कहें मेरी सोच बदल दी.
–हर्षा भण्डारी
अजीम प्रेमजी फाउंडेशन ,पिथौरागढ़
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Nice article, Harsha!!!
बच्चों से बड़ा क्रिएटीव कोई नहि होता... अति उत्तम