कला साहित्य

अजब है मूली पर यह फसक

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हिन्दुस्तानी टेलीविजन और सिनेमा की दुनिया को बनाने और बदलने का रास्ता दिखाने वाले मनोहरश्याम जोशी की किस्सागोई से कौन अपरचित है. यह लेख उनके उपन्यास ‘क्याप’ का एक हिस्सा है – सम्पादक
(Manohar Shyam Joshi Kyap)

बाहर वालों को हमारी उस किस्म की गप्पें भी पसंद आयीं, जिनमें हम ऐसा जताते थे मानों गिनीज बुक आफ रिकार्ड में जा सकने योग्य सभी अद्भुत घटनायें और चीजें हमारे इलाके में होती हों. फर्ज़ कीजिये किसी ने जौनपुर की मूली का जिक्र किया कि वह बहुत ही बड़ी और भारी होती है. इस पर हमारी तरफ वाला बड़े विनम्र स्वर में कहता-

महाराज, मैंने आपकी वो जौनपुर वाली मूली तो देखी नहीं ठहरी. अपने नाना जी के बाड़े में जो मूली होने वाली हुई उसके बारे में जरूर जानता हूं. एक दिन क्या हुआ मामी ने कहा- जा रे बाड़े में से एक मूली उखाड़ ला. साग के लिये और कुछ तो है नहीं आज. (Manohar Shyam Joshi Kyap)

अरे मामी – मैंने कहा- एक मूली का क्या होने वाला हुआ इतने बड़े परिवार में. मामी ने कहा- तू पहले जा के देख तो सही. वहां जाकर देखा महाराज तो बाप रे बाप! एक-एक हाथ तो जमीन के ऊपर निकली ठहरी मूलियां. जमीन के भीतर का किसे पता और मोटाई पूछते हो तो मैनें अंगवाल डाली तो हाथ छोटे पड़ गए कहा. हिलाता हूं तो हिली ही नहीं. कुदाल से खोदना शुरू किया तो मेरी कबर-जसी बन गई, लेकिन मूली फिर भी नहीं निकली. तो मैंने अंगवाल डाल कर खूब जोर से हिलाया. थोड़ी हिलती-सी देखी तो पीछे को झुक कर जोर लगाकर खींचा. मूली तो निकल गई महाराज, लेकिन मैं उसके अंगवाल डाले-डाले ही ढिणमिणाते-ढिणमिणाते सीधा तल्ला गांव जा पहुंचा.

अब मेरे को कितनी चोट लगी क्या बताऊं, लेकिन महाराज ,उस मूली को कुछ नहीं हुआ. फिर तल्ला गांव वालों ने मेरी दवा-पानी की और कुल्हाड़ी से मूली के चार टुकड़े किए एक-एक टुकड़े को दो-दो आदमी उठाकर ऊपर ले गये मल्ला गांव. (Manohar Shyam Joshi Kyap)

मनोहर श्याम जोशी

manohar shyam joshimanohar shyam joshi

मनोहर श्याम जोशी ने हिन्दी कथा साहित्य को न केवल ‘कुरू-कुरू स्वाहा’, ‘कसप’, ‘हरिया हरक्यूलीज की हैरानी’, ‘टटा प्रोफेसर’, ‘क्याप‘ जैसे अद्भुत उपन्यास दिये हैं बल्कि हिन्दी पत्रकारिता को नई दिशा देने के साथ ही हिन्दुस्तानी टेलीविजन और सिनेमा की दुनिया को बनाने और बदलने का रास्ता भी दिखाया है। उनके समूचे लेखन को एक शब्द में समेटने की पाठकीय जुर्रत करूं तो मैं उसे एक असमाप्त ‘फसक’ (गप्प) कहना चाहूंगा. उनकी गप्प का एक दुर्लभ रूप उस समय देख्नने को मिला था जब म.गा.अं.हि.विश्वविद्यालय, वर्धा के ‘हिन्दी कथा साहित्य और उपन्यास’ वाले वर्कशाप (नैनीताल,११ जून से १ जुलाई २००२ ) में वे मेरे अध्यापक बने थे और खुद को ‘वीर बालक’ तथा हम प्रतिभागियों को ‘दंड पेले हुए हिन्दी के मास्टर’ कह-कह कर दो दिनों तक ‘उत्तर आधुनिकता और हिन्दी उपन्यास’ जैसे विषय को अपने अंदाज में पढाते रहे. इन दो दिनों में उन्होंने भारतीय मनीषा में उपन्यास की पड़ताल, उपन्यास और भारतीयता की अवधारणा, परम्परा और आधुनिकता का द्वन्द्व, आस्था और तर्क जैसे मुद्दों पर बोलते हुए इस पर जोर दिया था कि ‘उत्तर आधुनिक कथा साहित्य का लक्ष्य किस्सागोई की वापसी है’.
(Kyap Manohar Shyam Joshi)

यह पोस्ट कबाड़खाना ब्लॉग से साभार ली गयी है.

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