कथा

मक्खी और शेर की लड़ाई : लोककथा

एक जंगल की गुफा में एक शेर रहा करता था. एक दिन जंगल से लौटने पर उसने देखा की उसकी गुफा में एक मक्खी भिन-भिन करती मौज कर रही है. शेर ने मक्खी को घूरते हुये देखा तो मक्खी बेचारी सन्न. अब शेर बेचारा मक्खी का भी क्या शिकार करता. करता तो मक्खी तो उसके मुंह हुई जीरे की फांक और अगर कहीं जंगल में बात फ़ैल जाती की शेर मक्खी का शिकार किया है तो उसकी क्या ही इज्जत रह जाती.
(Makkhi or Sher Folk Stories)

शेर अपनी गुफा में लेट गया. मक्खी एक कोने में दुबक गयी. मक्खी को क्या पता शेर के दिमाग में क्या पक रहा है. उसे लगा खूब शिकार खाकर आया होगा सो बक्श दिया. सारी डर के मारे सारी रात आंखों से नींद गायब. नन्ही सी जान कितना सहती बेचारी की सुबह आंख लग गयी.

शेर ने देखा की मक्खी बड़े इत्मीनान से सोई हुई है. पहले तो उसे लगा की दिन के खाने की शुरुआत इसी से की जाय फिर ध्यान आया किसी ने देख लिया तो क्या कहेगा. शेर चला जंगल की ओर. दिन-दोपहरी मक्खी की आंख खुली उसने देखा शेर गुफा में है नहीं. उसे लगा शायद शेर भला जानवर है सो उसने वहीं ठहरने की ठानी.
(Makkhi or Sher Folk Stories)

शाम को शेर लौटा तो देखा की मक्खी अब भी वहीं है. आज मक्खी ने शेर को देखकर भिन-भिनाना भी बंद न किया. शेर को इस बात का बड़ा बुरा लगा. उसे लगा मक्खी उससे डर नहीं रही है यह तो बड़ी फजीहत की बात है. शेर बोला- अरे ओ मक्खी भिन-भिनाना बंद कर और निकल मेरी गुफा से.

दिनभर खाली बैठी मक्खी को अब लगने लगा था शायद शेर उसका आदर करता है. उसने बड़ी विनम्रता से कहा- मुझे मांफ कर दो जंगल के राजा पर मैं भी तो एक जीव हूँ मुझसे थोड़ा सम्मानपूर्वक बात कीजिये.

शेर ने हंसते हुये कहा- सम्मान और मक्खी का. चल निकल यहां से. वरना अभी दबोचकर खा जाऊँगा.

मक्खी को शेर की बात बड़ा गुस्सा आया और आव देखा न ताव सीधा शेर की नाक पर बैठकर बोली- ले दबोच कर दिखा.
(Makkhi or Sher Folk Stories)

शेर तो अपने आपे से बाहर हो गया. जंगल के राजा को यह गुस्ताखी कैसे बर्दाश्त होती. उसने पूरी ताकत से अपना पंजा नाक पर दे मारा. आह… बेचारे शेर की नाक कपोरी गयी और मक्खी तो उड़कर गुफा के कोने में चली गयी. अब शेर से रहा न गया सीधा मल्ल युद्ध के लिये जैसा तैयार हो गया. मक्खी बेचारी को अब जान बचाने को शेर से भिड़ना ही पड़ा. शेर ने लगाया बल मक्खी ने लगाई बुद्धि. मक्खी कभी शेर के कान में बैठ जाती तो कभी पेट में. मक्खी और शेर के युद्ध में शेर ने अपना पूरा शरीर कपोर दिया. अपनी शक्ति और हार से बौराये शेर के पूरे शरीर से खून निकलने लगा. जब शेर बुरी तरह थककर गिर गया तो मक्खी वहां से नौ दो ग्यारह हो गयी.      
(Makkhi or Sher Folk Stories)

मक्खी ने यह बात जंगल में किसी को भी नहीं बताई. कहते हैं तब से शेर मक्खी तो देखते ही अपना मुंह मोड़ लेता है फिर चाहे वह कितनी ही भिन-भिन क्यों न करे.

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

काफल ट्री फाउंडेशन

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

1 day ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

1 week ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

1 week ago

इस बार दो दिन मनाएं दीपावली

शायद यह पहला अवसर होगा जब दीपावली दो दिन मनाई जाएगी. मंगलवार 29 अक्टूबर को…

1 week ago

गुम : रजनीश की कविता

तकलीफ़ तो बहुत हुए थी... तेरे आख़िरी अलविदा के बाद। तकलीफ़ तो बहुत हुए थी,…

1 week ago

मैं जहां-जहां चलूंगा तेरा साया साथ होगा

चाणक्य! डीएसबी राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय नैनीताल. तल्ली ताल से फांसी गधेरे की चढ़ाई चढ़, चार…

2 weeks ago