कुमाऊनी में सभी दीर्घ स्वरों के हृस्व रूप भी मिलते हैं. कहीं-कहीं यह हृस्वात्म्कता अर्थ्भेदक भी है. जैसे – (Main Characteristics of Kumaoni Language)
आ'म = दादी,नानी
आम = फल विशेष
खे'ल = खेल
खेल = क्रीड़ा
ओ'ड़ = दो खेतों के बीच में लगाया जाने वाला सीमा सूचक पत्थर
ओड़ = मिस्त्री
कुमाऊनी में घोष महाप्राण व्यंजन की अपेक्षा घोष अल्पप्राण ध्वनियों के प्रयोग की प्रवृत्ति मिलती है, जैसे दूध, हाथ के स्थान पर दूद, हात आदि. ल के स्थान पर कुछ बोलियों में व का प्रयोग होता है जैसे – बाल का बाव, काल का काव. ण तथा न में व्यत्यय है जैसे कि पाणि-पानि, स्यैनि- स्यैणि. कुमाऊं के अलग-अलग क्षेत्रीं में ये दोनों रूप मिलते हैं. कुमाऊनी में आम तौर पर हृस्वत्व की प्रवृत्ति मिलती है. ( Main Characteristics of Kumaoni Language )
कुमाऊनी में ल, ले, कणि, कें, क, स, थें, लिजि, हुणि, क, कि, र, रि, में, मुणि, मझि, म आदि परसर्ग प्रयुक्त होते हैं. सहायक क्रिया के लिए छ का प्रयोग होता है, जैसे कि ऊ जांछ – वह जाता है. त्वील कां जाणछु – तूने कहां जाना है? भविष्यकालिक प्रयोग ल, लि, ला आदि से बनाते हैं. क्षेत्रीय आधार पर क्रिया रूपों में पर्याप्त भिन्नता है, जैसे – ‘वह जा रहा है’ के लिए ऊ जाणौ, ऊ जाणौछ, ऊ जामरौ, ऊ जणारयो, ऊ जानरयोछ आदि रूप बनाते हैं.
कुमाऊनी में कुछ विशिष्ट संबोधनसूचक अव्यय प्रयुक्त होते हैं. जैसे – हला, हली, ला, ली, हंवे, हंहो आदि. वाक्य रचना में बल, पै, हड़ि, द आदि अव्ययों के प्रयोग से कुमाऊनी में विशिष्ट भावों की अभिव्यक्ति होती है. तद्भव शब्दावली कुमाऊनी की रीढ़ है. स्थानीय शब्दावली भी विशिष्ट और समृद्ध है जैसे – खोर (सिर), खाप (मुंह), खुट (पैर), ढाड़ (पेट), बोट (पेड़) आदि.
गंधसूचक तथा ध्वनिसूचक अनेक शब्द कुमाऊनी में ऐसे हैं जो हिन्दी आदि भाषाओं में नहीं मिलते जैसे हन्तरैन (कपड़ा जलने की गंध), चुरैन (मूत्र की गंध), सुसाट-गुगाट (पानी के तीव्र प्रवाह की ध्वनि) आदि. (Main Characteristics of Kumaoni Language )
कुमाऊनी में अन्य भाषाओं जैसे अरबी, फारसी, अंगरेजी, पुर्तगाली, तुर्की, तिब्बती के अतिरिक्त गुजराती, मराठी, बंगाली आदि भारतीय भाषाओं से भी शब्द आये हैं. अरबी-फारसी के उपसर्ग और प्रत्यय भी कुमाऊनी में मिलते हैं. कुमाऊं क्षेत्र के हिन्दी कथाकारों ने अपने उपन्यासों और कहानियों में कुमाऊनी के मुहावरों, कहावतों, विशेष भावाभिव्यंजक शब्दों का प्रचुर प्रयोग किया है. इसे हिन्दी पर कुमाऊनी का प्रभाव कहा जा सकता है.
(भारतीय लोक भाषा सर्वेक्षण द्वारा प्रकाशित ‘उत्तराखंड की भाषाएँ’ के पहले अध्याय से. इस अध्याय का लेखन कैलाश चन्द्र लोहनी, उमा भट्ट तथा चंद्रकला रावत ने संयुक्त रूप से किया है.)
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