महाराजा के पार्क, पिथौरागढ़ में नब्बे के दशक में जन्मे बच्चों की मीठी याद का एक जरुरी हिस्सा हमेशा रहेगा. पिथौरागढ़ शहर से लगभग 4 किमी की दूरी पर बने इस पार्क का नाम अब वॉर मेमोरियल पार्क हो चुका है.
झूलाघाट रोड पर बना यह पार्क शहर भर के बच्चों के लिये विशेष आकर्षण रहा है. इस पार्क में मौजूद एक छोटे से तालाब में रखे कुछ बतख बच्चों ही नहीं बड़ों को भी विशेष रुप से आकर्षित करते हैं. तालाब के किनारे दौड़ने वाले काले सफ़ेद खरगोश बच्चों के पहले जंगली दोस्त हुआ करते थे.
पार्क के गेट पर पहले एक छोटा सा बोर्ड हुआ करता था जिसमें छोटे अक्षरों में महाराजा के पार्क लिखा रहता था लेकिन शहर भर के लिये यह हमेशा महाराजा पार्क रहा.
दरसल 1995 में विधिवत शुरु हुआ यह पार्क 1965 के वीरों को श्रद्धांजलि देने के लिये बनाया गया था. जून 1995 में इसका उद्घाटन मेजर जनरल एच.एस.बग्घा ने किया था.
1965 के सितम्बर की 8 तारीख को भारत पाक के मध्य हुये युद्ध के दौरान विश्व के सबसे बड़े टैंक युद्ध में दर्ज एक युद्ध हुआ. यह युद्ध इतिहास में आसल उत्ताड़ का युद्ध नाम से दर्ज है.
महाराजा के इसी युद्ध का हिस्सा रहे सियालकोट में स्थित एक भारतीय सेना की पोस्ट हुआ करती थी. महाराजा के नाम पर भारतीय सेना के कब्जे के लिये 17 जांबाज सैनिकों शहीद हुये.
इन सैनिकों ने 33 पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया और 55 को युद्धबंदी बना लिया. इन जाबांजों की याद में सेना अस्पताल के ठीक सामने झूलाघाट रोड से लगे विशाल पार्क का निर्माण 1994 में 69 माउन्टेन ब्रिगेड ने शुरु किया.
इस पार्क में हाल में ही एक कुमांऊनी सैनिक का स्टैच्यू लगा है. इस स्टैच्यू के नीचे लिखा है :
कुमांऊनी बहादुर वीर, अदम्य साहसी, हट्टे-कट्टे तथा 5 ½ फीट लम्बे कुमांऊ समुदाय के परम्परागत पहाड़ी योद्धा होते हैं. तृतीय कुमांऊ ( राइफल्स ) कुमांऊनियों को पहली बटालियन है, जिसने कुमांऊनियों को पहली बार लड़ाकू कौम की पहचान दिलायी. कुमांऊनी वीर योद्धा की प्रतिमा, तृतीय कुमांऊ ( राइफल्स ) की स्थापना के सौवे वर्ष को शतवर्षीय उत्सव के उपलक्ष्य में बटालियन द्वारा स्थापित की गयी है. यह प्रतिमा कुमाऊंनी योद्धाओं द्वारा मातृ भूमि की रक्षा हेतु दिये गये बलिदान हेतु समर्पित है.
वॉर मेमोरियल पार्क के ठीक बीच में कारगिल के शहीदों के नाम भी दर्ज हैं. यह नाम एक शिला पट्टिका में पार्क के बीचों बीच दर्ज हैं.
पार्क के अंतिम छोर से ठीक सामने मां कामाख्या देवी का मंदिर दिखता है. यही पर बच्चों के लिये झूले लगे हैं. पार्क का यह हिस्सा बच्चों का हमेशा पसंदीदा हिस्सा रहा है.
यह दो तरह की फिसल पट्टी हुआ करती थी. एक बड़ी हाथीनुमा आकार की और एक छोटी बिना किसी ख़ास आकार की. फिलहाल दोनों के हाल बहुत बुरे हैं इसलिये इस हिस्से के अलावा पार्क के बांकि हिस्सों की तस्वीरें देखिये.
मूलरूप से पिथौरागढ़ के रहने वाले नरेन्द्र सिंह परिहार वर्तमान में जी. बी. पन्त नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ हिमालयन एनवायरमेंट एंड सस्टेनबल डेवलपमेंट में रिसर्चर हैं.
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