चार वीर महर भाई और हिलजात्रा की कथा

आज पिथौरागढ़ जिले कुमौड़ गांव में हिलजात्रा का उत्सव मनाया जा रहा है. कुमौड़ की हिलजात्रा का मुख्य पात्र लखियाभूत या लखियादेव है. हिलजात्रा कैसे कुमौड़ गांव में शुरू की गयी इसके विषय में चार वीर महर भाइयों की कथा प्रचलित है.  

माना जाता है कि इस उत्सव का आधार नेपाल में प्रचलित जातें जैसे महेन्द्रनाथ रथजात्रा, गायजात्रा, इन्द्रजात्रा, पंचाली भैरवजात्रा, गुजेश्वरी जात्रा, चकनदेवयात्रा, घोड़ाजात्रा, बालुजात्रा आदि.

माना जाता है कि पिथौरागढ़ में इस उत्सव का आयोजन चार वीर महर भाइयों ने शुरु किया. एक समय पिथौरागढ़ में एक नरभक्षी शेर का बड़ा आतंक था. राजा ने शेर को मारने वाले को मुंहमांगा ईनाम देने की घोषणा कि. चारों वीर महर भाइयों ने शेर को मार गिराया.

राजा ने चारों भाईयों के सम्मान में चंडाक में एक समारोह रखा और चारों भाइयों को मनचाहा पुरस्कार मांगने को कहा. सबसे बड़े भाई कुंवर सिंह कुरमौर ने कहा कि यहां से जितनी भूमि दिख रही है वह मुझे दी जाय. राजा ने सारा क्षेत्र दे दिया. माना जाता है कि कुमौड़ गांव का यह नाम कुरमौर का ही अपभ्रंश है.

इसी तरह अन्य भाई चहज सिंह ने चेंसर का, जाखन सिंह ने जाखनी का और बिणसिंह ने बिण का भाग मांगा. आज इन स्थानों के नामों का आधार भी यही व्यक्तिनाम माने जाते हैं.

एक अन्य कथानुसार एक बार महर भाई इंद्रजात्रा के समय नेपाल भ्रमण पर थे. वहां एक भैंसे की बलि दी जानी थी. भैंसे की सिंग इतनी लम्बी थी कि वह सिर पीछे की और उसके शरीर के आधे से अधिक हिस्से तक फैली थी. इसके कारण इस चोट में भैंसे को नहीं काटा जा सकता था.

महर भाइयों ने राजा की इस समस्या का समाधान किया. एक महर भाई ने ऊँचे स्थान पर चढ़कर भैंसे को हरी घास दिखाई जैसे ही भैंसे ने घास खाने के लिये गर्दन ऊपर उठाई एक अन्य महर भाई ने नीचे से पूरे जोर के साथ खुकरी से भैंसे की गर्दन उड़ा दी.

जब राजा ने प्रसन्न होकर पुरुस्कार देने की बात कही तो महर भाइयों ने इस उत्सव को अपने क्षेत्र में मनाने की अनुमति मांगी और उसमें उत्सव में प्रयुक्त मुखोटों को देने के लिये कहा. राजा ने ख़ुशी से वीर महर भाइयों का अनुरोध मान लिया.

कुछ लोगों ने इसी घटना को पश्चिमी नेपाल के सोराड़ क्षेत्र की देन माना है तो कुछ ने माना है कि मानसरोवर यात्रा के दौरान पहले यात्री सभी माह में आते थे उनके मनोरंजन के लिये इसकी शुरुआत की गयी.

प्रो. डी.डी शर्मा की पुस्तक उत्तराखंड ज्ञानकोष के आधार पर.

-काफल ट्री डेस्क

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Girish Lohani

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