समाज

महामाया के शक्तिपीठ

महामाया आदिशक्ति की जाग्रत शक्तियों वाले स्थान सिद्धि शक्ति पीठ कहे जाते हैं. यज्ञ में अपने पति शिव को निमंत्रित न करने के अपमान से आहत हो  दक्ष प्रजापति की पुत्री सती यज्ञ की धधकती अग्नि में कूद कर भस्म हो गयीं. इस कृत्य से शिव  ने अपनी एक जटा को नोच शिला में  पटक दिया. जिससे उनका गण महाबली वीरभद्र प्रकट हुआ. वीरभद्र ने दक्ष के यज्ञ में हाहाकार मचा दिया.देवताओं  ने इस संहार को रोकने के लिए शिव की आराधना की. वीरभद्र ने दक्ष का मस्तक अपनी तलवार से काट दिया था. देवताओं की प्रार्थनासुन  भगवन शिव यज्ञ स्थल पर  आये. उन्होंने यज्ञ स्थल में दक्ष के कटे धड़ को एक बकरे के सर से जोड़ उसे जीवित कर दिया. सती   के अग्नि से दग्ध शरीर को अपने कन्धों में उठा लिया और तांडव करने लगे. समूची धरती में हाहाकार मच गया. त्रैलोक्य काँप उठा.  अब इस कोप को शांत करने की प्रार्थना देवताओं ने भगवन विष्णु से की. शिव सती  का शरीर उठाये तांडव करते मृत्यु लोक में विचरण कर रहे थे. क्रोधित थे. सती  के वियोग से आहत थे.सती  के शरीर को उठाये संहार को  उतारू थे. भगवान विष्णु ने उनकी मनःस्थिति समझ सती  के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से शनैः शनैः काटना आरम्भ किया. वह समझ चुके थे कि  जब तक सती  का शरीर शिव के पास रहेगा,  उनका   क्रोध शांत नहीं होगा. जिन जिन स्थलों  पर सती  के शरीर के अंग भूलोक में  सुदर्शनचक्र से विच्छिन्न हो कर गिरे वह देवी तीर्थों  की मान्यता पा गए. भगवन शिव ने स्वयं इन स्थलों  में शक्ति की साधना की तथा  भैरवों  की  स्थापना की. यह स्थल सिद्धि शक्ति पीठ कहलाये. 

देवी भगवत पुराण में 108 शक्ति पीठ तो तंत्र चूड़ामणि  में 52 शक्तिपीठ वर्णित हैं. शिव चरित्र में 51 शक्ति पीठों के साथ दो गोपनीय शक्ति पीठ भी वर्णित हैं.12 शक्ति पीठ  महासिद्धि शक्ति पीठ कहे गए जिनका क्रम निम्न है :

शक्ति पीठ

1 – अम्बा (गुजरात)  2- कामाख्या (कांची ) 3- कुमारी(कन्याकुमारी) ) 4- कालिका (उज्जैन) 5- गुह्यकेश्वरी(नेपाल) 6- भ्रमराम्बा(मलय) 7 – ललिता(प्रयाग) 8- महालक्ष्मी (कोल्हापुर) 9- मंगलावती (गया) 10- विंध्यवासिनी (विंध्यांचल) 11- त्रिपुरसुन्दरी(बंगाल) एवं12-  विशालाक्षी (वाराणसी) . 

माता सती  के शरीर की ऊर्जा से उत्पन्न 52 स्थान जिन्हें सिद्धि शक्ति पीठ की मान्यता मिली :

 1- मुकुट- बिरजादेवी,बोगड बंगाल,  पूर्वी पाकिस्तान. 
2- सर के केश - देवी बरसाना,  मथुरा. 
3- सिर - हिंगलाज,  करांची से आगे 90 किलोमीटर बलूचिस्तान. 
4- मस्तक- दुर्गादेवी,बांसवाड़ा,राजस्थान. 
5- भृकुटी - चेनयीदेवी, हापुड़,दक्षिण भारत. 
6- नेत्र- महालक्ष्मी देवी,  साहूकारां गेट,  मद्रास. 
7- बांयां कर्ण - कमारीदेवी,  विलासपुर,मध्यप्रदेश. 
8- दांयां कर्ण - भ्रामरीदेवी,  कोयम्बटूर. 
9- कर्ण - विलाक्षादेवी,  बनारस. 
10 कपाल - भ्रमरम्बादेवी,  शैलपर्वत,  दक्षिण भारत. 
11- नासिका - उग्रतारा देवी,  पूर्वी पाकिस्तान. 
12- अधोरिष्ट - कुल्लारादेवी,शैल,अहमदपुर. 
13 ऊर्ध्वदंत - नारायणीदेवी,समीप कन्याकुमारी. 
14 आधी दंतपंक्ति - बारीदेवी,पंचसागर. 
15 जिह्वा - ज्वालादेवी,काँगड़ा,  हिमाचल प्रदेश. 
16- दांया कपोल-  गड़की देवी,  मुक्तिनाथ,  दक्षिण भारत. 
17 - बांयां कपोल - हर्षदेवी,उज्जैन 
18- ठोढ़ी - भद्रकाली देवी,  चाशिका,  पंचवटी. 
19- कंठहार - पद्मावतीदेवी,  तिरुमला,  आंध्रप्रदेश. 
20- कंठग्रीवा - वैष्णो देवी,जम्मू. 
21- दांयां हस्त - विंध्यवासिनी,  मिर्जापुर. 
22- हाथ की उंगली - ललितादेवी,  इलाहाबाद. 
23- बांयी भुजा - देवी पाटन,  तुलसीपुर. 
24- दांयी भुजा -  भवानीदेवी,  सीतापुर. 
25 - कलाई - गायत्री देवी,  पुष्कर 
26 - छाती - त्रिपुर सुंदरी,  उड़ीसा. 
27-  दांया स्तन - शारदादेवी. सतना,  मध्यप्रदेश. 
28-  बायां स्तन - विष्णुमुखीदेवी,  पंजाब. 
29- उदर - वकादेवी,  सौराष्ट्र. 
30- नाभि - भीमसूरी देवी,  जगन्नाथपुरी. 
31- पीठ - कन्याकुमारी. 
32- दायाँ नितम्ब - नर्वदा देवी,कटक. 
33- बायाँ नितम्ब - महाकाली कोलकाता. 
34- योनि - कामाक्षी देवी,  गौहाटी. 
35 - उदनली - ललितादेवी, नैमिषारण्य,  सीतापुर. 
36 - बायीं जाँघ - भवानीदेवी,  अजंता से बारह किलोमीटर दूर तुलसा. 
37- दायीं जांघ - जयन्तीदेवी,   शिलोंग. 
38- दोनों घुटने - गुडयानी देवी,  नेपाल. 
39-  पैर का कड़ा - इन्द्राणीदेवी,श्रीलंका. 
40 दाएं पैर की अंगुली - अर्जुनादेवी,  माउंट आबू. 
41- बांये पैर  का  अंगुष्ट -  मनादेवी,  मदुरै 
42 - दांये पैर का अंगुष्ट - क्षीर सागर देवी, वर्धमान,  सागर. 
43-  पैर  गुल्फ - भद्रकाली,  कुरुक्षेत्र,  हरियाणा. 
44- दाएँ पैर का भाग - सुंदरी देवी,  मद्रास. 
45 - बाएँ पैर का तला - योगाथादेवी,  कोचीन. 
46- तालुका - योगमायादेवी. कोचीन.
47- निचले दन्त - वाराही देवी,  देवीधुरा,  उत्तररखण्ड. 
48- ऊपरी ओष्ठ  - अवन्तिकादेवी,  गुजरात. 
49 - नासिका - शिकारपुर,  बांग्लादेश. 
50 -  वक्ष स्थल - त्रिपुरसुन्दरी देवी,  त्रिपुरा. 
51 - नाभि का अंश - पुण्यागिरि,  चम्पावत,  उत्तराखंड. 
52 - हथेली - कैलाश मानसरोवर. 

शक्ति का प्रारंभिक रूप शिव की पत्नी उमा अर्थात पार्वती हैं जिनके दो स्वरुप हैं. पहला सौम्य स्वरुप जिसमें माता उमा,गौरी,पार्वती,  अर्धनारीश्वर एवं सती(स्वामिभक्त ) तथा अन्नपूर्णा हैं. तो दूसरी ओर   उग्र रूप में काली,  भैरवी,  दुर्गा तथा युद्ध की देवी कौर्रवी के रूप में पूजी जाती  हैं. अगम रूप में दुर्गा मातृदेवी के स्वतंत्र  अस्तित्व  का  प्रतीक हैं. मार्कण्डेय पुराण में दुर्गा की उपासना के सार हैं. पुरुष रूप में त्रिदेव हैं ब्रह्मा,  विष्णु अवं महेश तो स्त्री रूप में नंदा- उमा,  अम्बिका- पार्वती अवं हेमवती की परिकल्पना है. शिव में जिस प्रकार दो आदिदेव रूद्र एवं अग्नि का योग है तो पार्वती में भी अनेक देवी रूप सम्मिलित हैं. रूद्र पत्नी से सम्बद्ध हैं उमा,अम्बिका,पार्वती तथा हेमवती तो काली कराली व अन्य नाम पूर्वकालीन अग्नि पत्नी से संयोजित हैं. 

शिव की पूजा का प्रतीक  लिंग है तो दुर्गा की पूजा योनि स्वरुप में होती है. गढ़वाल मंडल के  टेहरी जनपद में चन्द्रबदनी सिद्धपीठ में योनि की पूजा होती है. मध्य हिमालय में शिव की भांति शक्ति को विशेष  महत्व मिला.  केन उपनिषद (3/12)  में पार्वती को हेमवती अर्थात हिमालय की पुत्री कहा गया जो विद्यादेवी हैं. हिमालय की पुत्री पार्वती,उमा,हेमवती ही कालान्तर में शाक्तों की आराध्यदेवी बनीं. उमा- पार्वती के दोनों जन्मों सती  और उमा की क्रीड़ा स्थली ‘केदारखंड’रहा. सती  का दाह कनखल में हुआ तो उनका जन्म हिमवान में. हिमालय में शक्ति के अनेक स्वरुप हैं:

उमा, नंदा, अम्बिका, गौरी, त्रिपुरसुन्दरी, काली, चामुंडा, चंडिका, शीतला. स्पष्ट है कि मध्य  हिमालय में हिमालय की पुत्री पार्वती अनेक नामों से जानी गयीं जिन्हें पीठ कहा गया. गढ़वाल का  प्रसिद्ध शक्ति पीठ काली मठ  है. मार्कण्डेय पुराण (77/1- 45) में वर्णन है कि माता पार्वती  के शरीर से अम्बिका के निकलने के कारण वह  कृष्णवर्ण  की हो  गईं,  अतः उन्हें काली की संज्ञा दी गई. कालीमठ के साथ ही गढ़वाल के 21 शक्तिपीठ निम्न हैं:

1-  अंगाली  पीठ 2-  भुवनेश्वरी पीठ 3-  चन्द्रबदनी पीठ 4- चंडी देवी 5- चोरकंडी पीठ 6- ज्वाल्पादेवी 7- देवलगढ़ पीठ 8- धारीपीठ 9- कुटेटी 10- कुंजपुरी 11- कूर्मासना पीठ 12- कंसमर्दिन पीठ 13- मैठाणा पीठ 14- मनसा देवी 15- नंदादेवी 16- पुंड्यासिनी 17- सहजापीठ 18- सीतादेवी 19- सुर कंडापीठ 20- शाकुम्भरी देवी एवं 21- राजराजेश्वरी पीठ. गढ़वाल में मात्रि पूजा के पूजन का भी विधान है. अष्ट मात्रक में आठ देवियों की पूजा संपन्न होती है :1- ब्राह्मी,  2- माहेश्वरी 3- कौमारी या अम्बिका 4- शक्ति वैष्णवी 5- वराही 6- नरसिंही 7 – इन्द्री एवम   8- अपराजिता या चंडिका. गढ़वाल में प्रत्येक पट्टी एवम ग्राम में एक कुल देवता एवम  एक कुलदेवी की मान्यता है.जिनका स्मरण,  पूजा एवम विशेष अवसरों पर मनौती संपन्न की जाती है. 

कुमाऊं में शक्ति की पूजा नंदा, उमा,अम्बिका,  गौरी,पार्वती, चंडी, चंडिका, भद्रकाली, कोटकाली जयंती, मंगला, नंदा, हेमवती,  ज्वाला,काली व दुर्गा के रूप में होती है. अल्मोड़ा में नंदादेवी के मंदिर अल्मोड़ा में रणचूलकोट ( कत्यूर ), मागर ( मल्लादानपुर ), व सनेती ( नाकुरी ) में स्थित हैं. अम्बिका देवी के मंदिर अल्मोड़ा, ताकुला, गैथाना  एवं अवं बोरारौ पट्टी में बने हैं. त्रिपुर सुंदरदेवी अल्मोड़ा एवम बेड़ीनाग में पूजी जाती हैं. अल्मोड़ा छकाता व चौन तथा पिथौरागढ़  में उल्का देवी के मंदिर विद्यमान हैं. भ्रामरी  देवी का प्राचीन मंदिर रणचूलाकोट कत्यूर में है. पुष्टि  देवी,जागेश्वर में विराजती हैं. गंगोलीहाट,देवीपुर कोटा तथा दारुण  में कालिका,  कमस्यार में भद्रकाली व नैनी में धौलकाली की आराधना की जाती है. 

कुमाऊं के मुख्य शहर कस्बों एवं ग्रामों में देवी के विविध स्वरूपों की पूजा – अर्चना की जाती है. अल्मोड़ा में यक्षिणी, पातालदेवी, कसारदेवी, जाखनदेवी, त्रिपुरसुन्दरी, उल्का, नंदा झूला देवी, दन्या में धौलादेवी, गंगोलीहाट व जागेश्वर में चामुण्डा, अल्मोड़ा व जागेश्वर में शीतलादेवी, रानीखेत में झूलादेवी, नंदा एवं कालिका, सल्ट में अम्बिका, कालिका व कोट कालिका सिलौटी में चंद्रघंटा, सेटा पट्टी में वैष्णवी, कत्यूर में  भ्रामरी, चितइ में गायत्री, नैणी में नैणकालिका, मासी में नैथणा देवी, हर्घों में नंदादेवी डोला गांव सालम व अल्मोड़ा में वानरी देवी गुल्ली गोलछीना पुतरेश्वरी में नारसिंही, द्वाराहाट में दूनागिरि,मानिला में मानिला देवी,पुंगराऊं में कोटगाड़ी, लखरकोट में कालिका,भौन गाओं में भौन की देवी, देवीधुरा में वाराहीदेवी,लोहाघाट में झूमादेवी, अखिलतारिणी चम्पावत में रतनेश्वरी,चंपा देवी,  हिंगलादेवी,  पिथौरागढ़ में ग्यारादेवी, ध्वज में नंदादेवी, छाना में चंडिका, उल्का देवी व चण्डिकाघाट में चंडिका विराजमान हैं बेतालघाट में उपरद्यो, नैनीताल में नयनादेवी व पाषाण देवी, रानीबाग में जियारानी,   काठगोदाम में शीतलादेवी, रामनगर में बालसुंदरी तथा काशीपुर में ज्वालादेवी पूजनीय हैं. 

शारदीय नवरात्र (असोज माह )  व बासंतिक नवरात्र नवरात्र(चैत्र माह ) में महामाया के विविध रूपों की उपासना की जाती है शक्ति समुदाय के शास्त्र ग्रन्थ आश्विन,चैत्र, पौष व आषाढ़ मास में नवरात्र का माहात्म्य वर्णित करते हैं. इसके साथ ह कृष्णा जन्माष्टमी को कालरात्रि, अश्विन शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मोहरात्रि,  शिवरात्रि को सिद्ध रात्रि एवं दीपावली की अमावस्या (महानिशा ) में शक्ति की उपासना सम्पन्न की जाती है. 

सर्वस्वरूपा,  सर्वेश्वरी एवम समस्त प्रकार की शक्तियों से सम्पन्न दिव्यरूपी दुर्गा देवी समस्त भयों से मुक्ति प्रदान करती हैं.  

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जीवन भर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुल महाविद्यालयों में अर्थशास्त्र की प्राध्यापकी करते रहे प्रोफेसर मृगेश पाण्डे फिलहाल सेवानिवृत्ति के उपरान्त हल्द्वानी में रहते हैं. अर्थशास्त्र के अतिरिक्त फोटोग्राफी, साहसिक पर्यटन, भाषा-साहित्य, रंगमंच, सिनेमा, इतिहास और लोक पर विषदअधिकार रखने वाले मृगेश पाण्डे काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.

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Girish Lohani

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