(महादेवी वर्मा : 26 मार्च 1907 — 11 सितम्बर 1987)
हमेशा श्वेत वस्त्र धारण करने, आजीवन सख्त तखत पर सोने और जीवन भर आईना नहीं देखने वाली. हिंदी की महान छायावादी साहित्यकार महादेवी वर्मा की आज पुण्यतिथि है.
उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में जन्मने वाली हिंदी की प्रख्यात साहित्यकार महादेवी वर्मा का उत्तराखण्ड से गहरा लगाव था. यहां का अप्रतिम प्राकृतिक सौंदर्य और नीरव शांति उन्हें अपनी तरफ आकर्षित करते थे.
1937 में महादेवी वर्मा बदरी-केदार की यात्रा पर आई थीं, इस दौरान उन्हें उत्तराखंड का प्राकृतिक सौंदर्य और यहां की फिजा इस कदर भाई कि उन्होंने यहीं बसने का मन बना लिया. साहित्य सृजन के लिए उन्हें यह स्थान इतना भा गया कि उन्होंने यहां के प्रधान से अपने लिए घर बनवाने के लिए जगह मांगी. उन्होंने इन हसीं वादियों में ग्रीष्मकालीन प्रवास के लिए घर का निर्माण किया जिसे आज मीरा कुटीर के नाम से जाना जाता है.
इसके बाद वह हर साल गर्मियों में इलाहाबाद से यहां आया करती थीं. गर्मीभर वह यहीं पर रहकर साहित्य सृजन किया करती थीं. यहीं पर उन्होंने अपने कविता संग्रह दीपशिखा की कविताएं लिखीं, अतीत के चलचित्र और स्मृति की रेखाएं के कुछ शब्दचित्र भी इसी भवन में सृजित हुए.
उनके साहित्यक मित्र धरमवीर भारती, सुमित्रानंदन पंत, इलाचंद जोशी और तमाम लेखक उनसे मिलने रामगढ़ आया करते थे. इलाचंद्र जोशी ने साल 1960 में इसी भवन घर में रहकर अपना उपन्यास ‘ऋतुचक्र’ लिखा. इसके अलावा भी कई महान रचनाओं को इसी भवन में पूरा किया गया
सुमित्रानंदन पंत की अनेक प्रकृति संबंधी कविताएं, डॉ धर्मवीर भारती के यात्रा-संस्मरण. डॉ धीरेंद्र वर्मा, गंगा प्रसाद पांडे आदि ने अपनी अनेकों रचनाओं को यहीं पर अंतिम रूप दिया.
बताया जाता है कि रामगढ़ तथा आसपास के क्षेत्र की अनेक निर्धन बालिकाओं को महादेवी वर्मा अपने साथ इलाहाबाद ले गई थीं और वहां से पढ़ा-लिखाकर उन्हें आत्मनिर्भर भी बनाया.
‘मीरा कुटीर’ के कुछ हिस्से उसी तरह संजोकर रखे गए हैं जैसे कि वह महादेवी वर्मा के समय में थे. उनके द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली वस्तुयें आज भी सलामत हैं. साल में दो-एक दफा यहाँ साहित्यकारों का जमावड़ा भी लगता है. महादेवी कि याद में कुछ अनुष्ठानिक कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते हैं.
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